माँ ...
रश्मि प्रभा
परिक्रमा करते हुए मैंने जाना
मैं अपनी रूह के पास हूँ
कोई डर नहीं
कोई संशय नहीं ....
परिक्रमा करते हुए बस हाथ बढाने की देर है
और तुम पास ...
रश्मि प्रभा
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कैसे न करूं मैं परिक्रमा आपकी .....!!!
मां ...आप
हर बात मन में कैसे
जज्ब सी कर लेती हैं
देखिए ना मेरा स्नेह
आपको धूरी बना
बस आपकी ही
परिक्रमा करता रहता है
कुछ पूछने पर
आंखो में उसके
नजर आती है
आपकी तस्वीर
ये कैसी है तलाश इसकी
जो कभी खत्म
नहीं होती ....।
मां ..आप
हर बात को इतनी सहजता से
कैसे ले लेती हैं
जब हम नाराज होते हैं तो
आप झांककर हमारी आंखों में
मुस्करा के कहती हैं
तुम्हारा चेहरा
बिल्कुल अच्छा नहीं लगता ऐसे
बताओ तो मुझे क्या हुआ
और हम शुरू हो जाते हैं
टेप रिकार्ड का प्ले बटन दबा दिया हो
किसी ने जैसे
शिकायतें और शिकायतें
और उस वक्त
हम ध्यान देते तो देखते
आपका हांथ हमारे सिर पर होता
बस इतनी सी बात
हां मां बात इतनी सी है
इसका अहसास हुआ हमें
आपकी मुस्कराहट में
उस धवल हंसी से
जाना कितना सुकून है
आपके साये में
तो कहिए
कैसे न करूं मैं परिक्रमा आपकी .....!!!
सीमा ' सदा '
बहुत बढ़िया लिखले बनी.. आभार.. राउर प्रतिक्रिया के हमरो बा इंतिजार.. एक बेर जरूर आइब.. राउर स्वागत बा..
ReplyDeleteमाँ के आँचल में इतना स्नेह , प्रेम और विश्वास है तो परिक्रमा तो बनती है :)
ReplyDeleteसुन्दर कविता!
behad khoobsurat ehsaas........
ReplyDeletebahut sundar....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भावाव्यक्ति।
ReplyDeleteसुन्दर और सार्थक रचना के लिए बहुत- बहुत आभार बधाई .
ReplyDeleteकृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधारने का कष्ट करें.
सर्वप्रथम सदा जी को प्रणाम और रश्मि दी को आभार प्रेषित करता हूँ.
ReplyDeleteभाव बहुत ही सुन्दर हैं चूँकि विषय ही आपने ऐसा चुना है जो सदा वन्दनीय है. आशा है भविष्य में ऐसे ही भावों में गुंथे काव्य में कथ्य, बुनावट और कला के भी दर्शन होंगे. हार्दिक शुभकामनाएँ ! सादर
bahut sundar bhav
ReplyDeleteहां मां बात इतनी सी है
इसका अहसास हुआ हमें
आपकी मुस्कराहट में
उस धवल हंसी से
जाना कितना सुकून है
आपके साये में
behtreen prstuti...
ReplyDeletesundar rachna....
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत..!!!
ReplyDeleteमाँ ...
ReplyDeleteपरिक्रमा करते हुए मैंने जाना
मैं अपनी रूह के पास हूँ...
इन पंक्तियों में रचना का मूल तथ्य सामने आता है ..आपका बहुत-बहुत आभार इस रचना प्रस्तुति के लिये ।
माँ ...
ReplyDeleteपरिक्रमा करते हुए मैंने जाना
मैं अपनी रूह के पास हूँ ...
आपका बहुत-बहुत आभार ...इस रचना को वटवृक्ष में शामिल करने के लिये ... ।
बहुत सुंदर भाव भीनी कविता ! माँ ऐसी ही होती है...
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