(कन्या भ्रूण हत्या पर कविता )
खिलने दो खुशबू पहचानो, कलियों को मुसकाने दो
आने दो रे आने दो, उन्हें इस जीवन में आने दो
जाने किस-किस प्रतिभा को तुम
गर्भपात मे मार रहे हो
जिनका कोई दोष नहीं, तुम
उन पर धर तलवार रहे हो
बंद करो कुकृत्य – पाप यह,
नयी सृष्टि रच जाने दो
आने दो रे आने दो, उन्हें इस जीवन में आने दो
खिलने दो खुशबू पहचानो, कलियों को मुसकाने दो
जिस दहेज-दानव के डर से
करते हो ये जुल्मो-सितम
क्यों नहीं उसी दुष्ट-दानव को
कर देते तुम जड़ से खतम
भ्रूणहत्या का पाप हटे, अब ऐसा जाल बिछाने दो
खिलने दो खुशबू पहचानो, कलियों को मुसकाने दो
बेटा आया, खुशियां आईं
सोहर-मांगर छम-छम-छम
बेटी आयी, जैसे आया
कोई मातम का मौसम
मन के इस संकीर्ण भाव को, रे मानव मिट जाने दो
खिलने दो खुशबू पहचानो, कलियों को मुसकाने दो
चौखट से सरहद तक नारी
फिर भी अबला हाय बेचारी?
मर्दों के इस पूर्वाग्रह मे
नारी जीत-जीत के हारी
बंद करो खाना हक उनका, उनका हक उन्हें पाने दो
खिलने दो खुशबू पहचानो, कलियों को मुसकाने दो
चीरहरण का तांडव अब भी
चुप बैठे हैं पांडव अब भी
नारी अब भी दहशत में है
खेल रहे हैं कौरव अब भी
हे केशव! नारी को ही अब चंडी बनकर आने दो
खिलने दो खुशबू पहचानो, कलियों को मुसकाने दो
मरे हुए इक रावण को
हर साल जलाते हैं हम लोग
जिन्दा रावण-कंसों से तो
आंख चुराते हैं हम लोग
खून हुआ है अपना पानी, उसमें आग लगाने दो
खिलने दो खुशबू पहचानो, कलियों को मुसकाने दो
नारी शक्ति, नारी भक्ति
नारी सृष्टि, नारी दृष्टि
आंगन की तुलसी है नारी
पूजा की कलसी है नारी
नेह-प्यार, श्रद्धा है नारी
बेटी, पत्नी, मां है नारी
नारी के इस विविध रूप को आंगन में खिल जाने दो
खिलने दो खुशबू पहचानो, कलियों को मुसकाने दो
मनोज भावुक
2 जनवरी 1976 को सीवान (बिहार) में जन्मे और रेणुकूट (उत्तर प्रदेश ) में पले- बढ़े मनोज भावुक भोजपुरी के सुप्रसिद्ध युवा साहित्यकार हैं। पिछले 15 सालों से देश और देश के बाहर (अफ्रीका और यूके में) भोजपुरी भाषा, साहित्य और संस्कृति के प्रचार-प्रसार में सक्रिय भावुक भोजपुरी सिनेमा, नाटक आदि के इतिहास पर किये गये अपने समग्र शोध के लिए भी पहचाने जाते हैं। अभिनय, एंकरिंग एवं पटकथा लेखन आदि विधाओं में गहरी रुचि रखने वाले मनोज दुनिया भर के भोजपुरी भाषा को समर्पित संस्थाओं के संस्थापक, सलाहकार और सदस्य हैं। तस्वीर जिंदगी के( ग़ज़ल-संग्रह) एवं चलनी में पानी ( गीत- संग्रह) मनोज की चर्चित पुस्तके हैं। ‘तस्वीर जिन्दगी के’ तो इतना लोकप्रिय हुआ कि इसका दूसरा संस्करण प्रकाशित किया जा चुका है और इस पुस्तक को वर्ष 2006 के भारतीय भाषा परिषद सम्मान से नवाज़ा जा चुका है। एक भोजपुरी पुस्तक को पहली बार यह सम्मान दिया गया है।अभी हाल ही में भाऊराव देवरस सेवा न्यास,लखनऊ द्वारा मनोज भोजपुरी भाषा में उल्लेखनीय योगदान के लिए पंडित प्रताप नारायण मिश्र स्मृति-युवा साहित्यकार सम्मान २०१० से नवाजे गए हैं.
भ्रूण हत्या पर सार्थक अभिव्यक्ति
ReplyDeleteकन्या-भ्रूण ह्त्या जैसे महापाप से मानवता के आहत होने से निकली कराह को भावुक कवि 'मनोज' जी ने समुचित स्वर दिये हैं.
ReplyDeleteसाधुवाद.
बहुत ही बेहतरीन रचना...
ReplyDeleteहृदयस्पर्शी...
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति..
ReplyDeleteभ्रूण हत्या पर बहुत उत्कृष्ट प्रस्तुति और तस्वीर ह्रदय स्पर्शी ---बहुत बधाई
ReplyDeleteभ्रूण हत्या पर बहुत उत्कृष्ट प्रस्तुति और तस्वीर ह्रदय स्पर्शी ---बहुत बधाई
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDelete