
कुछ रिश्ते खून के नहीं होते, कुछ रिश्ते रेत पर पड़े वे निशान होते हैं जो लहरों के साथ गुम दिखते तो हैं, पर गुम होते नहीं -कभी सपनों में कभी जगे जगे से ख्यालों में आते हैं और चिर परिचित एहसास दे जाते हैं !

रश्मि प्रभा
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दरारें
पहले रिश्तों में कुछ दरारें रहती थीं
अब दरारों में रिश्ते रहते हैं
पहले दरारों को हम सीते थे
आज उन्हीं दरारों में हम जीते हैं
कभी ये रिश्ते धरोहर की तरह संजोये जाते थे
आज सिर्फ दिखाने को ढोए जाते हैं
कभी ये रिश्ते चाशनी से मीठे
आज के रिश्ते ख़मीर से खट्टे
देखने में उपर से मजबूत
नीचे बेज़ार, बेदम,खोखले
आज रिश्तों का दम घुटने लगा है
इन दरारों में पनपने की जगह ही कहाँ है
ऐ इंसान जागो
इन रिश्तों को आज़ाद करो
इन्हें खुली हवा चाहिए
इन्हें संभलने को कुछ वक़्त चाहिए
रिश्तों में चाशनी नहीं
चाशनी को बहने को
दिल में कुछ जगह चाहिए.
रचना दीक्षित
http://rachanaravindra.blogspot.com/
"अपने बारे में क्या कहूँ,
अपनी तलाश, अभी बाकी है.
जब भी झाँका है अन्दर, अपने
एक एतबार अभी बाकी है."
बन जाएगी, पहचान अपनी भी एक दिन
उम्र तमाम अभी बाकी है.
इन्हें संभलने को कुछ वक़्त चाहिए
ReplyDeleteरिश्तों में चाशनी नहीं
चाशनी को बहने को
दिल में कुछ जगह चाहिए.
sahi lekhan hai aur bilkul satya hai-----
चाशनी को बहने को
ReplyDeleteदिल में कुछ जगह चाहिए.
बहुत सही एवं सच्ची बात ...इस बेहतरीन प्रस्तुति के लिये आभार ।
रिश्तों का दर्द और महत्त्व बहुत खूबसूरती से उकेरा है।
ReplyDeleteकभी ये रिश्ते धरोहर की तरह संजोये जाते थे
ReplyDeleteआज सिर्फ दिखाने को ढोए जाते हैं
बहुत बढ़िया रचना जी ,आज के रिश्तों की विवेचना जिन शब्दों में की गई, उस ने कविता को सार्थक बना दिया है
रश्मि जी ,आप की २ पंक्तियां बहुत ख़ूबसूरत हैं
बधाई हो आप बहुत बढ़िया रचनाएं पढ़वाने का पुण्य कमा रही हैं
Rachna jee bahut sundar kavita ekar aayi hai ...
ReplyDeletejaise jaise ham duniyadaari mein fanste jaate hai ... rishton kee ahmiyat bhool jaate hain ... hamein phir se samajhna hoga ki dhan daulat, naam yash se kahin badhkar hain rishte ...
रिश्तों को खुली हवा चाहिए ...तंग सिकुड़ते कमरे से आज़ादी ...
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति !
Waaah...
ReplyDeleteRishte sacche mann se ho, na ki dikhawe ke... bahut hi behtarin shabd..!
पहले रिश्तों में कुछ दरारें रहती थीं
ReplyDeleteअब दरारों में रिश्ते रहते हैं
पहले दरारों को हम सीते थे
आज उन्हीं दरारों में हम जीते हैं
रचना जी इन खूब सूरत पंक्तिओं के साथ आप को नमस्कार !
काव्य अभिव्यक्ति बेहद सुंदर है , साधुवाद .
अच्छी रचना के लिए आप को बधाई .
सादर !
पहले रिश्तों में कुछ दरारें रहती थीं
ReplyDeleteअब दरारों में रिश्ते रहते हैं
पहले दरारों को हम सीते थे
आज उन्हीं दरारों में हम जीते हैं
रचना जी ने आज बदले हुये समय का सच बहुत सुन्दर शब्दों मे कहा है। शानदार रचना।रचना दीक्षित जी को पढना हमेशा ही अच्छा लगता है\बधाई रचना जी।
रिश्तों में चाशनी नहीं
ReplyDeleteचाशनी को बहने को
दिल में कुछ जगह चाहिए.
bahut sach!
jab se single family system aaya hai sach me ek family me bhi duriyan ban gayee hai:(
rishton men chashni ka nahi use bahane ke liye jagah chaahiye ..bahut sundar prastuti
ReplyDeleteपरिचयात्मक पंक्तियाँ और रचना दोंनो ही ह्रदय स्पर्शी भावों से भरी हुईं हैं,वाह!
ReplyDeleteनववर्ष की मंगल कामनयें!
सच कहा है .किसी भी चीज़ को पनपने के लिए खुली हवा चाहिए .रिश्तों को भी.
ReplyDeleteबेहतरीन अभिव्यक्ति.
behtrin abhivykti
ReplyDeletebahut sunder rachna
"पहले रिश्तों में कुछ दरारें रहती थीं
ReplyDeleteअब दरारों में रिश्ते रहते हैं
कभी ये रिश्ते धरोहर की तरह संजोये जाते थे
आज सिर्फ दिखाने को ढोए जाते हैं"
रचना जी, मैंने आपकी रचनाएँ पढ़ता रहता हूँ .यह रचना भी मानवीय मूल्यों में गिरावट की गाथा का विस्तार है.गहरी संवेदना से उपजी ये रचना स्वयं में एक दीप्त धरोहर जैसी है जो उन मूल्यों की खोज में लगे लोगों का मार्गदर्शन करेगी ऐसा मेरा विश्वास है.अत्यंत प्रेरणादायी.
रचना जी को पढना हमेशा ही अच्छा लगता है....रचना जी ने आज बदले हुये समय का सच बहुत सुन्दर शब्दों मे कहा है।
ReplyDeleteरचना जी को पढना हमेशा ही अच्छा लगता है....रचना जी ने आज बदले हुये समय का सच बहुत सुन्दर शब्दों मे कहा है।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया... दोनों के दोनों...
ReplyDeleteमैं भी हमेशा चाशनी का डब्बा लेकर घूमती रहती हूँ और कोशिश करती हूँ, बहाने खोजती हूँ दिलों में जगह पाने की...
bahut sunder kavita.
ReplyDeleteरश्मि जी मेरी कविता को अपने ब्लॉग पर स्थान व सम्मान देने के लिए बहुत बहुत आभार. सभी पाठकों का मेरी कविता पढ़ने और विवेचना करने के लिए हृदय से धन्यवाद.
ReplyDeleteरचना दीक्षित
बेहतरीन प्रस्तुति.
ReplyDeleteदरारों में रिश्ते ...
ReplyDeleteरिश्तों पर आज की सच्चाई को बहुत अच्छे से उकेरा है ..एक सुंदर रचना
isi chaahiye par to sab kuchh ruk jata...sundar abhivyakti, shubhkaamnaayen.
ReplyDelete"पहले रिश्तों में कुछ दरारें रहती थीं
ReplyDeleteअब दरारों में रिश्ते रहते हैं
कभी ये रिश्ते धरोहर की तरह संजोये जाते थे
आज सिर्फ दिखाने को ढोए जाते हैं"waah