
और तय है ...
एक दिन जाना है !
जानते हैं हम -
तुम्हारा क्या गया जो रोते हो
क्या लाए थे
क्या पाना है .......सब कुछ बेमानी हो जाता है ! तो जब तक चलती हैं साँसें ,
आते हैं ख्वाब और चाहते हैं एक दूसरे से कुछ कहना तो उठाइये किसी एक का
नाम , जिसे पढ़ना , जिससे कुछ सुनना आपको पसंद हो ... लिखिए अपने ख्याल
'उसके नाम ' .
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उसके नाम
(अब परिचय क्या देना ....अपनी ही सोचों में लिखी है , अपनी ही ज़िंदगी पर ...शायद कभी कभी आ जाती है ऐसी सोच ..लगता है कि इतने सालों में भी साथ रहने पर मन की भावनाओं को उसने समझा नहीं ...क्या परिचय दूँ ? )
मैं और तुम
और ज़िन्दगी का सफर
चल पड़े थे
एक ही राह पर ।
पर तुम बहुत व्यावहारिक थे
और मैं हमेशा
ख़्वाबों में रहने वाली ।
कभी हम दोनों की सोच
मिल नही पायी
इसीलिए शायद मैं
कभी अपने दिल की बात
कह नही पायी ,
कोशिश भी की गर
कभी कुछ कहने की
तो तुम तक मेरी बात
पहुँच नही पायी ।
मैं निराश हो गई
हताश हो गई
और फिर मैं अपनी बात
कागजों से कहने लगी ।
मेरे अल्फाज़ अब
तुम तक नही पहुँचते हैं
बस ये मेरी डायरी के
पन्नों पर उतरते हैं
सच कहूं तो मैं
ये डायरियां भी
तुम्हारे लिए ही लिखती हूँ
कि जब न रहूँ मैं
तो शायद तुम इनको पढ़ लो
और जो तुम मुझे
अब नही समझ पाये
कम से कम मेरे बाद ही
मुझे समझ लो ।
जानती हूँ कि उस समय
तुम्हें अकेलापन बहुत खलेगा
लेकिन सच मानो कि
मेरी डायरी के ज़रिये
तुम्हें मेरा साथ हमेशा मिलेगा ।
बस एक बार कह देना कि
ज़िन्दगी में तुमने मुझे पहचाना नहीं
फिर मुझे तुमसे कभी
कैसा भी कोई शिकवा - गिला नहीं ।
चलो आज यहीं बात ख़त्म करती हूँ
ये सिलसिला तो तब तक चलेगा
जब तक कि मैं नही मरती हूँ ।
मुझे लगता है कि तुम मुझे
मेरे जाने के बाद ही जान पाओगे,
और शायद तब ही तुम
मुझे अपने करीब पाओगे ।
इंतज़ार है मुझे उस करीब आने का
बेसब्र हूँ तुम्हें समग्रता से पाने का
सोच जैसे बस यहीं आ कर सहम सी गई है
और लेखनी भी यहीं आ कर थम सी गई है
मैं और तुम
और ज़िन्दगी का सफर
चल पड़े थे
एक ही राह पर ।
पर तुम बहुत व्यावहारिक थे
और मैं हमेशा
ख़्वाबों में रहने वाली ।
कभी हम दोनों की सोच
मिल नही पायी
इसीलिए शायद मैं
कभी अपने दिल की बात
कह नही पायी ,
कोशिश भी की गर
कभी कुछ कहने की
तो तुम तक मेरी बात
पहुँच नही पायी ।
मैं निराश हो गई
हताश हो गई
और फिर मैं अपनी बात
कागजों से कहने लगी ।
मेरे अल्फाज़ अब
तुम तक नही पहुँचते हैं
बस ये मेरी डायरी के
पन्नों पर उतरते हैं
सच कहूं तो मैं
ये डायरियां भी
तुम्हारे लिए ही लिखती हूँ
कि जब न रहूँ मैं
तो शायद तुम इनको पढ़ लो
और जो तुम मुझे
अब नही समझ पाये
कम से कम मेरे बाद ही
मुझे समझ लो ।
जानती हूँ कि उस समय
तुम्हें अकेलापन बहुत खलेगा
लेकिन सच मानो कि
मेरी डायरी के ज़रिये
तुम्हें मेरा साथ हमेशा मिलेगा ।
बस एक बार कह देना कि
ज़िन्दगी में तुमने मुझे पहचाना नहीं
फिर मुझे तुमसे कभी
कैसा भी कोई शिकवा - गिला नहीं ।
चलो आज यहीं बात ख़त्म करती हूँ
ये सिलसिला तो तब तक चलेगा
जब तक कि मैं नही मरती हूँ ।
मुझे लगता है कि तुम मुझे
मेरे जाने के बाद ही जान पाओगे,
और शायद तब ही तुम
मुझे अपने करीब पाओगे ।
इंतज़ार है मुझे उस करीब आने का
बेसब्र हूँ तुम्हें समग्रता से पाने का
सोच जैसे बस यहीं आ कर सहम सी गई है
और लेखनी भी यहीं आ कर थम सी गई है
"उस के नाम "
___________
लिख पाती ’उस के नाम’ अगर
मैं अपने सारे सुख लिखती
उस के मन की अंगनाई में
वासंती रुत छाई रहती
उस के जीवन की बगिया में
फूलों के रंग बिखर जाते
वो जिस की बातों में खो कर
सदियों से प्यासी रूहें भी
सपने बुनतीं ख़ुशहाली के
वो जिस के शब्दों की माया
वो जिस की मर्यादित काया
मानवता के पथ पर चलकर
करती उद्धार चरित्रों का
करती उपचार विचारों का
’उस’ जीवन की अफ़रा तफ़री
’उस’ मन के अंतर्द्वन्द्व सभी
’उस’ दिल में बसे दुख दर्दों को
मैं हर न सकी तो जीवन क्या ?
पर वो जो भाग्य विधाता है
बस वो ही क़िस्मत लिखता है
जो हाथों में मेरे होता
मैं उस के सारे दुख हरती
लिख पाती उस के नाम अगर
तो अपने सारे सुख लिखती
"uske naam".........bahut bahut sunder.........gahan bhaav...............
ReplyDeleteमेरे अल्फाज़ अब
ReplyDeleteतुम तक नही पहुँचते हैं
बस ये मेरी डायरी के
पन्नों पर उतरते हैं
दोनों कविताएं मर्म को स्पर्श करने वाली हैं।
गहन सोच की गहन अभ्व्यिक्ति।
दोनों रचनाएँ बहुत सुन्दर है ... अपने अलग रंगों में रचे बसे ...
ReplyDeleteमुझे इन दो पंक्तियाँ बहुत सुन्दर लगी -
लिख पाती ’उस के नाम’ अगर
मैं अपने सारे सुख लिखती
प्यार ऐसा ही होता है ...
बहुत बहुत धन्यवाद रश्मि जी
ReplyDeleteसंगीता जी के साथ स्थान पाना स्वयं में एक ईनाम है मेरे लिये
कि जब न रहूँ मैं
तो शायद तुम इनको पढ़ लो
और जो तुम मुझे
अब नही समझ पाये
कम से कम मेरे बाद ही
मुझे समझ लो ।
जानती हूँ कि उस समय
तुम्हें अकेलापन बहुत खलेगा
लेकिन सच मानो कि
मेरी डायरी के ज़रिये
तुम्हें मेरा साथ हमेशा मिलेगा ।
बहुत सुंदर !
बेहतरीन अंदाज़ ए बयान !
ये औरत का ही चरित्र है जो वह किसी भी हाल में रहे अपनों के हित में ही सोचती है
sangeeta jee aut ismat sahiba ko is sundar lekhan ke liye badhai.
ReplyDeleteलेकिन सच मानो कि
ReplyDeleteमेरी डायरी के ज़रिये
तुम्हें मेरा साथ हमेशा मिलेगा ।
मेरे शब्द बोलेंगे मेरे जाने के बाद ..वाह बहुत ही सुन्दर पत्र.संगीता जी !
उस’ जीवन की अफ़रा तफ़री
’उस’ मन के अंतर्द्वन्द्व सभी
’उस’ दिल में बसे दुख दर्दों को
मैं हर न सकी तो जीवन क्या ?
बहुत सुन्दर प्रस्तुति इस्मत जी !
इस्मत जैदी जी ,
ReplyDeleteआपके इस अपनत्त्व से बहुत अच्छा लग रहा है ....
आपकी रचना एक सुखद एहसास को जगाती है ....बहुत सुन्दर भावों को आपने शब्द दिए हैं ....भावपूर्ण प्रस्तुति
मेरे अल्फाज़ अब
ReplyDeleteतुम तक नही पहुँचते हैं
बस ये मेरी डायरी के
पन्नों पर उतरते हैं
सच कहूं तो मैं
ये डायरियां भी
तुम्हारे लिए ही लिखती हूँ
कि जब न रहूँ मैं
तो शायद तुम इनको पढ़ लो
और जो तुम मुझे
अब नही समझ पाये
कम से कम मेरे बाद ही
मुझे समझ लो ।
*****************
लिख पाती ’उस के नाम’ अगर
मैं अपने सारे सुख लिखती
उस के मन की अंगनाई में
वासंती रुत छाई रहती
उस के जीवन की बगिया में
फूलों के रंग बिखर जाते
वो जिस की बातों में खो कर
सदियों से प्यासी रूहें भी
सपने बुनतीं ख़ुशहाली के
दोनों ही रचनाएं बहुत अच्छी हैं...सुन्दर अभिव्यक्ति...
दोनों ही रचनाएँ बेहतरीन लगीं. भावपूर्ण सराहनीय प्रस्तुति.
ReplyDeleteरिश्तों में बंधे रहना, रिश्तों को ढोना या फिर अपने हिसाब से रिश्तों को खुद बनाना इन्हीं बिन्दुओं पर यह कविता रची गयी है ।
ReplyDeleteदोनों ही रचनाएँ बहुत खूबसूरत हैं .... आभार हम तक पहुँचाने के लिए ...
ReplyDeleteमुझे लगता है कि तुम मुझे
ReplyDeleteमेरे जाने के बाद ही जान पाओगे,
और शायद तब ही तुम
मुझे अपने करीब पाओगे ।
इंतज़ार है मुझे उस करीब आने का
बेसब्र हूँ तुम्हें समग्रता से पाने का
सोच जैसे बस यहीं आ कर सहम सी गई है
और लेखनी भी यहीं आ कर थम सी गई है
bhavon ka athaah samundar... bahut gehraai hai in panktiyon mein... saadar.
बहुत अच्छा लगा आपके ब्लॉग पर आकर ..दोनों ही रचनाएँ बेहतरीन लगीं. भावपूर्ण सराहनीय प्रस्तुति.
ReplyDeleteकभी समय मिले तो हमारे ब्लॉग//shiva12877.blogspot.com पर भी अपनी एक दृष्टी डालें .... धन्यवाद
दोनो रचनायें बहुत ही सुन्दर जिनकी प्रस्तुति के लिये आभार ।
ReplyDeleteये डायरियां भी
ReplyDeleteतुम्हारे लिए ही लिखती हूँ
कि जब न रहूँ मैं
तो शायद तुम इनको पढ़ लो
और जो तुम मुझे
अब नही समझ पाये
कम से कम मेरे बाद ही
मुझे समझ लो ।
बहुत मार्मिक और भावपूर्ण..नारी के प्रेम और कशिश को चित्रित करती उत्कृष्ट प्रस्तुति.
जो हाथों में मेरे होता
मैं उस के सारे दुख हरती
लिख पाती उस के नाम अगर
तो अपने सारे सुख लिखती
निस्वार्थ प्रेम की बहुत भावपूर्ण प्रस्तुति.
दोनों ही रचनाएँ दिल को छू लेती हैं .
दोनों रचनाएँ बहुत सुंदर!...प्रस्तुति वाकई बेहद सुंदर!
ReplyDeleteदोनों ही कविताएँ बहुत ही सार्थक हैं और यथार्थ कि ओर इशारा करती हुईं.
ReplyDeleteये किसी एक की व्यथा नहीं है बल्कि इस समग्र संसार में लाखों ऐसे लोग हैं जिन्हें शब्दों ने व्यक्त किया और उन्हें शब्दों को पढ़कर ही समझा जा सका. पर बहुत देर बाद. वे या तो मुखरित हो ही नहीं पाए या फिर उन्हें मुखरित होने का अवसर ही नहीं मिला
संगीता जी और इस्मत जी दोनों ही हिंदी ब्लॉग जगत में कविता के सशक्त हस्ताक्षर है . आभार इन दोनी कवियत्रयो की रचना की हमसे बाटने के लिए
ReplyDeletedono hi rachaaaen apane aap men bahut behtreen hai ....dono rachanakaron ko bahut bahut badhaiyan
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