
मेरे घरौंदे से तेरे नाम की खुशबू आती हैबंद कमरों से तेरे नाम की सदा आती हैमैं लाख अनसुना करूँ-इमरोज़- तेरा नाम मेरे लबों पर आ जाता हैमैं गाती भी नहींपर सुर मेरे अन्दर पिघलता हैएक इमरोज़ खुदा मेरे नाम कर जायेये ख्याल मेरे दिल में भी उतरता है.........
किताबे-इश्क़ की पाक आयतें...
मेरे महबूबमुझे आज भी याद हैं
वो लम्हे
जब तुमने कहा था-
तुम्हारी नज़्में
महज़ नज़्में नहीं हैं
ये तो किताबे-इश्क़ की
पाक आयतें हैं...
जिन्हें मैंने हिफ्ज़ कर लिया है...
और
मैं सोचने लगी-
मेरे लिए तो
तुम्हारा हर लफ़्ज़ ही
कलामे-इलाही की मानिंद है
जिसे मैं कलमे की तरह
हमेशा पढ़ते रहना चाहती हूं...
पत्रकार, शायरा और कहानीकार... उर्दू, हिन्दी और पंजाबी में लेखन...दूरदर्शन केन्द्र और देश के प्रतिष्ठित समाचार-पत्रों दैनिक भास्कर, अमर उजाला और हरिभूमि में कई वर्षों तक सेवाएं दीं...ऑल इंडिया रेडियो, दूरदर्शन केन्द्र से समय-समय पर कार्यक्रमों का प्रसारण... ऑल इंडिया रेडियो और न्यूज़ चैनल के लिए एंकरिंग भी की है...देश-विदेश के प्रतिष्ठित समाचार-पत्रों व पत्रिकाओं के लिए लेखन जारी...मेरी ' गंगा-जमुनी संस्कृति के अग्रदूत' नामक एक किताब प्रकाशित... फ़िलहाल 'स्टार न्यूज़ एजेंसी' और 'स्टार वेब मीडिया' में समूह संपादक का दायित्व संभाल रही हैं...
मेरे लिए तो
ReplyDeleteतुम्हारा हर लफ़्ज़ ही
कलामे-इलाही की मानिंद है
बहुत ही सुन्दर भावमय करते शब्द ...इस बेहतरीन प्रस्तुति के लिये बधाई ।
सिर्फ एक आह निकली... "वाह"...
ReplyDeleteसचमुच प्यार इसे ही तो कहते है। शानदार रचना। आभार।
ReplyDeleteक्या बात है
ReplyDeleteप्यार इसे ही तो कहते है। शानदार रचना। ..बहुत सुंदर .
रश्मि जी
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर रचना है...
मेरे घरौंदे से तेरे नाम की खुशबू आती है
बंद कमरों से तेरे नाम की सदा आती है
aap dono ki hi rachnayye
ReplyDeletebhaut sunder hai
....
बस , मोहब्बत हो गयी
ReplyDeleteदोनों रचनाएँ उम्दा हैं ... बहुत खूब ...
ReplyDeletebahut achchi rachnaye hain
ReplyDeleteहमेशा की तरह बेहतरीन रचना!
ReplyDeleteजब तुमने कहा था-
ReplyDeleteतुम्हारी नज़्में
महज़ नज़्में नहीं हैं
ये तो किताबे-इश्क़ की
पाक आयतें हैं...
ise kahte hai sonch vah kya bat hai
तुम्हारा हर लफ़्ज़ ही
ReplyDeleteकलामे-इलाही की मानिंद है
जिसे मैं कलमे की तरह
हमेशा पढ़ते रहना चाहती हूं
.
अस्ताख्फिरुल्लाह
रश्मि जी चित्र तो खतरनाक डाला है पर नज्म़ बहुत प्यारी है
ReplyDeleteफिरदौस बहन, आप उन चन्द लोगो मे से हैं जिनकी सीधी पहुँच मेरे दिल तक है, और आपकी यह रचना भी मेरे दिल मे बस गई।
ReplyDeleteमासूम जी "अस्ताख्फिरुल्लाह" का अर्थ स्पष्ट करें तो हम सब के लिए लाभप्रद होगा। आपने फिरदौस बहन के ब्लोग पर बहुत सुन्दर टिप्पणी की है पर मेरी सीमित जानकारी मे इस शब्द का अर्थ आपकी उस टिप्पणी से मेल नही खाती, संभव है मैं गलत होऊं, कृपया स्पष्ट करें
अपने महबूब का हर लफ़्ज ....याद आता है ...
ReplyDeleteहिफ़्ज कर लिया है --हर पल,हर लम्हा...
क्योंकि वो पाक है उतना ही---जितनी कि कुरान की आयत...
या कहूँ पवित्र भी उतना ही---जितनी कि गीता की इबादत....
भावों की बेहतरीन अभिव्यक्ति के लिए आभार.....
फ़िरदौस...अपने आप मे एक परिचय...
शुक्रिया रश्मि जी...
और हाँ मासूम जी के लिखे इस शब्द "अस्ताख्फिरुल्लाह" का अर्थ मैं भी जानना चाहती हूँ... पहली बार पढ़ा है...
ReplyDeleteAstaghfirullah
ReplyDeleteMeaning:An Arabic phrase meaning "I ask Allah forgiveness."
Masoom ji, I don't see any reason why one should seek forgiveness for this poem. Any how, it's your view i can't impose my view on you.
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर रचना.....बधाई...
ReplyDeleteमेरे घरौंदे से तेरे नाम की खुशबू आती है ...
ReplyDeleteमेरे लिए तो
तुम्हारा हर लफ़्ज़ ही
कलामे-इलाही की मानिंद है...
प्यार- इश्क -इबादत इन रचनाओं से निकलकर फिजाओं में जा ठहरा है!