
कभी नदी कभी गर्भ ... निर्माण का स्रोत
कभी मैं कभी तुम ... अंकुरित साँसें
टप से गिरी बूंदें ... कहीं आंसू, कहीं ओस , कहीं बीज बन गए ....

रश्मि प्रभा
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आँसू की नदी
झरना देख
पर्वत ने कहा
मेरे सीने में भी
आँसू की नदी बहती है
नदी ने सुन लिया
एक धुँध सी उठी
पूरा जंगल
नम हो गया !!
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गर्भ में तुम्हारे !
गिरे अम्बर का
चकनाचूर बदन,
फटी बिवाइयों और
सूख चुके
फफोलों की अकड़न
आ ! ढक दूँ-
सफ़ेदझक बादलों के
कातर डैनों से
आ ! सींचदूँ तुझे
समेटकर मेरे
रोमछिन्द्रों में बचे कुछ
संभावित स्वेदजल से
ताकि
तुम्हारी देह पा जाए-
कुछ नमी
मेरी
भीगी संवेदनाओं से
और ऐसे में
संभव ही हो
नवजात अंकुरण
गर्भ में तुम्हारे !
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नरेन्द्र व्यासद्वारा बी.डी. व्यास
कीकानी व्यास चौक, बीकानेर -(राज.) 334005
http://www.aakharkalash.
09636208300
बहुत ही सुन्दर शब्द रचनायें ...।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भाव और बहुत सुंदर .. अभिव्व्यक्ति
ReplyDeleteसफ़ेदझक बादलों के
ReplyDeleteकातर डैनों से
आ ! सींचदूँ तुझे
समेटकर मेरे
रोमछिन्द्रों में बचे कुछ
संभावित स्वेदजल से
ताकि
तुम्हारी देह पा जाए-
कुछ नमी
मेरी
भीगी संवेदनाओं से
बहुत सुन्दर प्रेमभिव्यक्ति। नरेन्द्र जी को बधाई इस सुन्दर रचना के लिये।
बहुत सुदर रचना !!
ReplyDelete"तुम्हारी देह पा जाए-
ReplyDeleteकुछ नमी
मेरी
भीगी संवेदनाओं से
और ऐसे में
संभव ही हो
नवजात अंकुरण
गर्भ में तुम्हारे !"
भावों की बेहतरीन प्रस्तुति.हर प्रकार के सृजन का आधार नमी है-चाहे वह आँखों की नमी हो या फिर धरा की.मन को भाती रचना..
सुदर रचना !!
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत एहसास ...अच्छी अभिव्यक्ति
ReplyDeletebahut sunder rachana....
ReplyDeleteतुम्हारी देह पा जाए-
ReplyDeleteकुछ नमी
मेरी
भीगी संवेदनाओं से
और ऐसे में
संभव ही हो
नवजात अंकुरण
गर्भ में तुम्हारे !
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kafi bhawpurn kavita hai.khoobsoorat hai.
बहुत भावपूर्ण रचनाएँ !
ReplyDeleteNarendra ji, sundar kavitaon ke liye sadhuvaad sweekar karein.
ReplyDeletesaadar
बहुत सुंदर रचना | बधाई |
ReplyDeleteपूरा जंगल
ReplyDeleteनम हो गया....
कुछ नमी
मेरी
भीगी संवेदनाओं से!
नरेन्द्र व्यास जी को भावपूर्ण काव्य-रचना के लिए बधाई और शुभकामनाएं!
-सुधीर सक्सेना सुधि, जयपुर
कितनी सुन्दरता से सुन्दर भावों को सुन्दर रचना में प्रस्तुत...
ReplyDeleteNarendra vyas ji
ReplyDeleteaapki kalam soch ko shabdon mein pesh karne hka huar bakhoobi jaanti hai. Kya tewar hai iZhaar ke.
ओंधे मुँह
गिरे अम्बर का
चकनाचूर बदन,
फटी बिवाइयों और
सूख चुके
फफोलों की अकड़न
आ ! ढक दूँ-
Waah..............!!
वाह क्या बात है, बेहद भावपूर्ण रचनाएँ !
ReplyDeletebahot achchi lagi .
ReplyDeleteअत्यन्त भाव-गर्भित एवं चित्रात्मक अभिव्यक्ति के लिए हार्दिक बधाई!
ReplyDeleteनरेन्द्र जी की रचनाओं को पढकर अच्छा लगा।
ReplyDeleteमेल द्वारा सूचना के लिए आभार।
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सचमुच मुकर्रर है कयामत?
कमेंट करें, आशातीत लाभ पाएं।
आप तो यकायक गंभीर कवितायें कहने में जुट गये।
ReplyDeleteसंवेदनाओ मै भीगा हुआ एक कोमल अहसास ..नव सृजनका आधार नमी ...बेहद खूबसुरत शब्दों मै सजी एक् परिकल्पना ,...लाजवाब लेखनी ,बधाई हो भाई
ReplyDeleteसंवेदनाओ मै भीगा हुआ एक कोमल अहसास ..नव सृजनका आधार नमी ...बेहद खूबसुरत शब्दों मै सजी एक् परिकल्पना ,...लाजवाब लेखनी ,बधाई हो भाई
ReplyDeletepriya bhai narendr vyaas jee aapki dono kavitaon ne achchha prabhav chhoda hai itnee sundar rachnaon ke liye badhai
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर रचनायें !
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