माँ ... कहते पूरी कायनात दुआओं के बोल बोलती है
या खुदा उन दुआओं के संग ये हादसा क्यूँ !

रश्मि प्रभा














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मां
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वो दो बूढ़ी आंखें तेरा हर दम रस्ता तकती हैं
दिल में जो इक दर्द छिपा है कह न किसी से सकती हैं
जबसे तुम ने ला कर उन को वृद्धाश्रम में डाला है
टूटे ख़्वाबों के रेज़ों को गुमसुम सी वो चुनती हैं
क्यों बेटा क्या भूल गए तुम बचपन में जब रोते थे
नर्म से उन के हाथ तुम्हारे अश्कों को चुन लेते थे
अपने आंसू पी कर उस ने तुम को दूध पिलाया है
तेरे होठों की मुस्कानें ही उस का सरमाया है
छोटी सी तकलीफ़ पे तेरी वो बेकल हो जाती थी
तुझ को क्या मालूम न जाने क्या क्या वो सह जाती थी
जिस ऊँचाई पर हो बेटा ये उस की ही मेहनत है
शोहरत जो तुम ने है पाई उस की दुआ की बरकत है
जिस की उंगली थाम के तुम ने बचपन में चलना सीखा
उस की लाठी कौन बनेगा ये है कभी तुम ने सोचा ?
उस की ख़ामोशी को बेटा कमज़ोरी तुम मत जानो
बच्चों की ख़ुशियों की ख़ातिर ही वो चुप है ,सच मानो

कल को जब तुम बूढ़े होगे और तुम्हारा बेटा तुम को
वृद्धाश्रम में छोड़ के वो भी मुड़ कर न देखेगा तुम को
हाँ
तब ये दिन याद आएंगे ,उन की शफ़क़त याद आएगी
आँसू से लबरेज़ निगाहें और मायूसी याद आएगी
लेकिन
तब क्या कर पाओगे मुआफ़ी भी न मांग सकोगे
अब भी वक़्त है बेटा संभलो, वरना फिर तुम पछ्ताओगे
उम्र के आख़िर दौर में उन के दुख ले कर सुख ही सुख दे दो
उन के आँसू पोंछ के बेटा अपने लिए तुम जन्नत ले लो

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सरमाया= दौलत ; शफ़क़त = स्नेह ,प्यार ; लबरेज़ =भरा हुआ



इस्मत जैदी (तेरे पास ये जो ज़मीर है यही तेरी दौलते ख़ास है/ तू बचा के रखना इसे ’शेफ़ा’ यही ज़िंदगी का दवाम है)

14 comments:

  1. उम्र के आख़िर दौर में उन के दुख ले कर सुख ही सुख दे दो
    उन के आँसू पोंछ के बेटा अपने लिए तुम जन्नत ले लो

    बहुत ही सुन्‍दर एवं भावमय प्रस्‍तुति ....।

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  2. बेहद भावप्रवण प्रस्तुति।

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  3. हाय रे ये ज़माना... ऐसे लोग क्या बच्चे कहलाने के लायक होते हैं???
    परन्तु एक माँ उन्हें बछा ही कहेगी... क्योंकि वो माँ है...

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  4. शुक्रिया रश्मि जी ,
    आप सभी का बहुत बहुत शुक्रिया जिन्होंने इस नज़्म को पढ़ने के लिये वक़्त निकाला

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  5. भावुक कर देने वाली बेहतरीन नज़्म !
    आभार इस्मत जैदी जी।

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  6. उस की ख़ामोशी को बेटा कमज़ोरी तुम मत जानो
    बच्चों की ख़ुशियों की ख़ातिर ही वो चुप है ,सच मानो

    बहुत मार्मिक प्रस्तुति , पर यह आज का कटु सत्य है.वृद्धावस्था में माँ को केवल प्यार के अलावा कुछ नहीं चाहिए होता है,लेकिन वह भी उसको नहीं मिल पाता. बहुत ही भावुक कर दिया आपकी रचना ने..आभार .

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  7. वो दो बूढ़ी आंखें तेरा हर दम रस्ता तकती हैं
    दिल में जो इक दर्द छिपा है कह न किसी से सकती हैं
    जबसे तुम ने ला कर उन को वृद्धाश्रम में डाला है
    टूटे ख़्वाबों के रेज़ों को गुमसुम सी वो चुनती हैं

    ....औलाद के लिया क्या क्या नहीं करना पड़ता है माँ को! लेकिन औलाद जब खून के आसूं रुलाती है तो एक आह निकलती है फिर भी माँ सदा दुआ करती है औलाद के लिए...
    ..वर्तमान परिवेश की जीती जागती प्रस्तुति के लिया आभार

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  8. पता नहीं वो कैसे बच्चे होते है जो अपने माता पिता को भूल जाते है .... बहुत भावमयी प्रस्तुति ... आभार

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  9. jannat ko paane ka sabse sunder raasta.........

    bahut sunder rachna...........

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  10. आपके ब्लॉग पर हर पोस्ट संवेदना से लबरेज़ होती है जो आपके नरम दिल की परिचायक है.ये पोस्ट भी उसी तरह बेहतरीन.

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  11. बहुत ही सुन्‍दर एवं भावमय प्रस्‍तुति ...

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  12. कल को जब तुम बूढ़े होगे और तुम्हारा बेटा तुम को
    वृद्धाश्रम में छोड़ के वो भी मुड़ कर न देखेगा तुम को
    हाँ

    बहुत सुंदर
    कौन चूका सका माँ कर्ज भगवान भी नहीं

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