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मां
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वो दो बूढ़ी आंखें तेरा हर दम रस्ता तकती हैं
दिल में जो इक दर्द छिपा है कह न किसी से सकती हैं
जबसे तुम ने ला कर उन को वृद्धाश्रम में डाला है
टूटे ख़्वाबों के रेज़ों को गुमसुम सी वो चुनती हैं
क्यों बेटा क्या भूल गए तुम बचपन में जब रोते थे
नर्म से उन के हाथ तुम्हारे अश्कों को चुन लेते थे
अपने आंसू पी कर उस ने तुम को दूध पिलाया है
तेरे होठों की मुस्कानें ही उस का सरमाया है
छोटी सी तकलीफ़ पे तेरी वो बेकल हो जाती थी
तुझ को क्या मालूम न जाने क्या क्या वो सह जाती थी
जिस ऊँचाई पर हो बेटा ये उस की ही मेहनत है
शोहरत जो तुम ने है पाई उस की दुआ की बरकत है
जिस की उंगली थाम के तुम ने बचपन में चलना सीखा
उस की लाठी कौन बनेगा ये है कभी तुम ने सोचा ?
उस की ख़ामोशी को बेटा कमज़ोरी तुम मत जानो
बच्चों की ख़ुशियों की ख़ातिर ही वो चुप है ,सच मानो
कल को जब तुम बूढ़े होगे और तुम्हारा बेटा तुम को
वृद्धाश्रम में छोड़ के वो भी मुड़ कर न देखेगा तुम को
हाँ
तब ये दिन याद आएंगे ,उन की शफ़क़त याद आएगी
आँसू से लबरेज़ निगाहें और मायूसी याद आएगी
लेकिन
तब क्या कर पाओगे मुआफ़ी भी न मांग सकोगे
अब भी वक़्त है बेटा संभलो, वरना फिर तुम पछ्ताओगे
उम्र के आख़िर दौर में उन के दुख ले कर सुख ही सुख दे दो
उन के आँसू पोंछ के बेटा अपने लिए तुम जन्नत ले लो
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सरमाया= दौलत ; शफ़क़त = स्नेह ,प्यार ; लबरेज़ =भरा हुआ
इस्मत जैदी (तेरे पास ये जो ज़मीर है यही तेरी दौलते ख़ास है/ तू बचा के रखना इसे ’शेफ़ा’ यही ज़िंदगी का दवाम है)
उम्र के आख़िर दौर में उन के दुख ले कर सुख ही सुख दे दो
ReplyDeleteउन के आँसू पोंछ के बेटा अपने लिए तुम जन्नत ले लो
बहुत ही सुन्दर एवं भावमय प्रस्तुति ....।
बेहद भावप्रवण प्रस्तुति।
ReplyDeleteहाय रे ये ज़माना... ऐसे लोग क्या बच्चे कहलाने के लायक होते हैं???
ReplyDeleteपरन्तु एक माँ उन्हें बछा ही कहेगी... क्योंकि वो माँ है...
शुक्रिया रश्मि जी ,
ReplyDeleteआप सभी का बहुत बहुत शुक्रिया जिन्होंने इस नज़्म को पढ़ने के लिये वक़्त निकाला
भावुक कर देने वाली बेहतरीन नज़्म !
ReplyDeleteआभार इस्मत जैदी जी।
उस की ख़ामोशी को बेटा कमज़ोरी तुम मत जानो
ReplyDeleteबच्चों की ख़ुशियों की ख़ातिर ही वो चुप है ,सच मानो
बहुत मार्मिक प्रस्तुति , पर यह आज का कटु सत्य है.वृद्धावस्था में माँ को केवल प्यार के अलावा कुछ नहीं चाहिए होता है,लेकिन वह भी उसको नहीं मिल पाता. बहुत ही भावुक कर दिया आपकी रचना ने..आभार .
वो दो बूढ़ी आंखें तेरा हर दम रस्ता तकती हैं
ReplyDeleteदिल में जो इक दर्द छिपा है कह न किसी से सकती हैं
जबसे तुम ने ला कर उन को वृद्धाश्रम में डाला है
टूटे ख़्वाबों के रेज़ों को गुमसुम सी वो चुनती हैं
....औलाद के लिया क्या क्या नहीं करना पड़ता है माँ को! लेकिन औलाद जब खून के आसूं रुलाती है तो एक आह निकलती है फिर भी माँ सदा दुआ करती है औलाद के लिए...
..वर्तमान परिवेश की जीती जागती प्रस्तुति के लिया आभार
इसे पेश करने का शुक्रिया आज ब्लॉगजगत के सामने एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया ऐसे लोगों ने
ReplyDeleteपता नहीं वो कैसे बच्चे होते है जो अपने माता पिता को भूल जाते है .... बहुत भावमयी प्रस्तुति ... आभार
ReplyDeletejannat ko paane ka sabse sunder raasta.........
ReplyDeletebahut sunder rachna...........
आपके ब्लॉग पर हर पोस्ट संवेदना से लबरेज़ होती है जो आपके नरम दिल की परिचायक है.ये पोस्ट भी उसी तरह बेहतरीन.
ReplyDeletebahut sunder rachna
ReplyDelete......
बहुत ही सुन्दर एवं भावमय प्रस्तुति ...
ReplyDeleteकल को जब तुम बूढ़े होगे और तुम्हारा बेटा तुम को
ReplyDeleteवृद्धाश्रम में छोड़ के वो भी मुड़ कर न देखेगा तुम को
हाँ
बहुत सुंदर
कौन चूका सका माँ कर्ज भगवान भी नहीं