
सांप और सीढ़ी .... पूरी ज़िन्दगी के उतार चढ़ाव की तस्वीर
अनवरत सीढ़ी के लिए मशक्कत
सांप का डर ....और 99 का चक्कर !
सीढ़ी की चाह लिए हर इन्सान विष उगलने लगता है
और प्रश्नों की आग में सीढियां धधकने लगती हैं !
पर सच तो यही है !!!

रश्मि प्रभा
===============================================================
सर्प और सोपान
जीवन का कटु यथार्थ है , सांप सीढ़ी का खेल
त्रासदी है मानव जीवन की, इन संपोलो से मेल
मनुष्य और सर्प के रिश्ते , है बो गए विष बेल
ना जाने कितने अश्वसेन, कितने विश्रुत विषधर भुजंग
बढ़ा रहे शोभा कुटिल ह्रदय की, जैसे वो उनका हो निषंग
ताक में रहता है वो , कब छिड़े महाभारत जैसा कोई प्रसंग
है जरुरत इस धरा को , जन्मेजय के पुनः अवतरण का
पाने को, गरल से छुटकारा,है जरुरत अमिय के वरण का
या फिर जरुरत है हमे , हम अनुसरण करे महान करण का
अगर मानव हो सतर्क , वो गरल वमन नहीं कर सकता है
लाख कोशिशे , लाख जतन, प्रत्यंचा पर नहीं चढ़ सकता है
कर हन्त, कुटिल विषदंत का , जीवन आगे बढ़ सकता है.
यू तो सोपान भी है प्रतीक , मनुष्य के अभिमान का
जो रह गए , उसे चिढाती,जो चढ़ गए ,उनके सम्मान का
हे मानव , सुधि लो, वक्त है सांप सीढ़ी के बलिदान का

आशीष राय
http://ashishkriti.blogspot.com
अभियांत्रिकी का स्नातक , भरण के लिए सम्प्रति कानपुर में एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में चाकरी ,साहित्य पढने की रूचि.है तो कभी कभी भावनाये उबाल मारती हैं तो साहित्य सृजन भी हो जाता है .
यू तो सोपान भी है प्रतीक , मनुष्य के अभिमान का
ReplyDeleteजो रह गए , उसे चिढाती,जो चढ़ गए ,उनके सम्मान का ...।
बेहतरीन अभिव्यक्ति ...प्रस्तुति के लिये आभार ।
This comment has been removed by the author.
ReplyDeletebadhiyaa rachna
ReplyDeleteआदरणीय रश्मि जी
ReplyDeleteआपका बहुत आभार मेरी रचना को वट वृक्ष पर स्थान देने के लिए.
khubsurat!!!
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeleteसांप का डर ....और 99 का चक्कर !
ReplyDeleteसांप और सीढ़ी .... पूरी ज़िन्दगी के उतार चढ़ाव की तस्वीर
ReplyDeleteअनवरत सीढ़ी के लिए मशक्कत
सांप का डर ....और 99 का चक्कर !
रश्मि जी
गहरे भाव हैं...
यू तो सोपान भी है प्रतीक , मनुष्य के अभिमान का
ReplyDeleteजो रह गए , उसे चिढाती,जो चढ़ गए ,उनके सम्मान का
हे मानव , सुधि लो, वक्त है सांप सीढ़ी के बलिदान का
सुन्दर अभिव्यक्ति...
वाह क्या बिम्ब हैं .खेल खेल में जीवन का यथार्थ .बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteत्रासदी है मानव जीवन की इन संपोलों से मेल ...
ReplyDeleteजीवन के इस रंग की भी अपनी ही कहानी है ...
बहुत गहन अभिव्यक्ति ..
चुन कर मोती समेट रही हैं आप ...
आभार !
जीवन का कटु यथार्थ !
ReplyDelete"यू तो सोपान भी है प्रतीक , मनुष्य के अभिमान का
ReplyDeleteजो रह गए , उसे चिढाती,जो चढ़ गए ,उनके सम्मान का
हे मानव , सुधि लो, वक्त है सांप सीढ़ी के बलिदान का"
आशीष जी, अति सुंदर.आम जीवन से सांप-सीढ़ी का बिम्ब लेकर जो विचार आपने सामने रखे हैं उसमें एक नायाब सन्देश है जो आज हमारी जरूरत है.बधाई.
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति| धन्यवाद|
ReplyDeleteभाषा और भावना ... दोनों सुन्दर है आशीष जी के रचना में ...
ReplyDelete"यू तो सोपान भी है प्रतीक , मनुष्य के अभिमान का
जो रह गए , उसे चिढाती,जो चढ़ गए ,उनके सम्मान का
हे मानव , सुधि लो, वक्त है सांप सीढ़ी के बलिदान का"
बहुत सुन्दर !
नववर्ष की मंगल कामना!
ReplyDeleteदोनों ही रचनाएं बेहतरीन हैं रश्मि जी
ReplyDeleteआशीष जी की रचना में हिंदी के कठिन शब्दों का प्रयोग इतनी सुंदरता से हुआ कि कहीं भी कविता को बाधित नहीं करता और न ही ज़बर्दस्ती घुसाया हुआ लगता है
आप दोनों को बधाई !
सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDelete