एक ज़रूरत होना भी प्यार है
पर इज़हार आदत न होकर प्यार ही हो
तो थकी रूह को पंख मिल जाते हैं
===================================================================
आदत
गाल पर हाथ रख ,मुस्कुराते हुए ,
उसने कहा.......
अब तुम्हारी आदत सी हो गयी है
तो हमने भी मुस्कुरा कर यही कहा ...
न हूँ मैं सुबह की भाप उड़ाती एक प्याला चाय ,
न रबरबैंड में लिपटा बरामदे में फेंका अखबार ,
ऐसा भी तो कह सकते थे ....
अब तुम्हारा साथ अच्छा लगता है ,
बिन बात यूँ ही खिलखिलाना ,
कुछ कहते - कहते रुक जाना ,
एक साथ बोलना या ,
अचानक चुप हो जाना ,
बस एकटक देखना
क्या है जो यकायक ,
रोक देता है...
क्यों नहीं कह पाते,
मन की परतों मे है जो दबा ,
कुछ अनकहा - अनछुआ सा ,
जो हमेशा हवा में टंगा रह जाता है ,
पृष्ठभूमि बन जाता है .....!!!!!!
पूनम जैन कासलीवाल
भावों की गहराई में गोता!!
ReplyDeleteशानदार प्रस्तुति
बहुत बढ़िया रचना |
ReplyDeleteमेरी रचना देखें-
मेरी कविता:सूखे नैन
बहुत सुन्दर भावो का समावेश्।
ReplyDeleteबहुत ही भावमय करते शब्दों का संगम ।
ReplyDeleteइज़हार आदत न होकर प्यार ही हो.......kya damdar soch hai,uspar ye khoobsurat kavita....kahoon to kya kahoon.....
ReplyDeleteman ke bhaavon ko badi khoobsurti ke saath bayan kiya hai.
ReplyDeleteभावमय करते शब्दों का सुन्दर संगम....
ReplyDeleteमेरी घरेलु भाषा भोजपुरी है.. इच्छा हुई की भोजपुरी में प्रतिक्रिया दूँ...
ReplyDeleteबहुत बढ़िया लिखले बनी.. आभार.. राउर प्रतिक्रिया के हमरो बा इंतिजार.. एक बेर जरूर आइब.. राउर स्वागत बा...
मन कि भावनाओं से औतप्रोत सुंदर अभिवयक्ति ...
ReplyDeletekhoobsurat.. zazbaato se bheegi bheegi aur end.. toh gazab! :)
ReplyDeleteवाह!
ReplyDeletelajawaab
ReplyDelete