मैं हूँ तो अहम् है
रश्मि प्रभा
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मैं के वर्चस्व की चाह है
ऐसे में सुकून - बस ख्वाब है ....
रश्मि प्रभा
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मेरा आपसे रिश्ता
"मैं" कुछ पढ़ूं और
अगर, वो
बहुत ही विस्मयकारी,, रूचिकर और बेहतरीन हो
तो "मैं" सोचता हूँ, "मैं" तो कभी भी ऐसा उत्कृष्ट नहीं सोच पाऊंगा
और मुझे ग्लानि होती है
कि कितनी साधारण है मेरी सोच
कि क्या मुझे अपनी ‘सोच’ को, सोच कहना भी चाहिए?
ऐसी हीनभावना उठाने वाली किताब
"मैं" पटक देता हूं।
"मैं" कुछ पढ़ूं
और वो साधारण हो
तो "मैं" सोचता हूँ,
लो, इससे बेहतर तो "मैं" लिख सकता हूं!
"मैं" लिखता ही हूं।
"मैं" इस तरह की चीजें क्यों पढ़ूं?
और "मैं" किताब पटक देता हूं।
फिर
"मैं" ने कुछ लिखा,
और किसी ने नहीं पढ़ा
तो भी "मैं"
अपनी किताब उठाता हूं
और पटक देता हूं।
इन लोगों की समझ में कुछ नहीं आयेगा।
फिर मैंने
दूसरों का लिखा पढ़ना,
खुद लिखना,
और अपना लिखा दूसरों को पढ़ाना
छोड़ दिया।
अब मुक्त हूं,
हर तरह के
"मैं" पन से।
राजे_शा
बेहतरीन प्रस्तुति ।
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति...
ReplyDeleteto me.. it's just.. "khatarnaak!!"
ReplyDeletebut beautifully said...:)
kathan aur kavita donon hi sunder.....
ReplyDeleteयह "पनही बाधक था ...बहुत सुंदर
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ख्याल्।
ReplyDeleteसुन्दर कविता... बहुत बढ़िया
ReplyDeleteबेहतरीन रचना | बढ़िया प्रस्तुति |
ReplyDeleteमेरी नई रचना देखें-
**मेरी कविता: हिंदी हिन्दुस्तान है**
वाह!!! बहुत अच्छे विचार अब मैं मुक्त हूँ हर तरह के "मैं" पन से....
ReplyDeleteऐसी सुन्दर कृति हम सबके साथ बांटने के लिए धन्यवाद!
ReplyDeleteयह मुक्त होने का अहम भी तो मैं ही है... जब किसी का लिखा और अपना लिखा एक हो जायेगा..जब कोई दूसरा रह ही नहीं जायेगा तभी होगी असली मुक्ति.. जब किसी की प्रतिभा और साधारणता दोनों सहज स्वीकार होंगी अपने जैसी तब मैं कहीं खो जायेगा ...तब तक जो भी है मैं ही मैं है...
ReplyDeleteवाह ...बेहतरीन प्रस्तुति
ReplyDeleteमैं हूँ तो अहम् है
ReplyDeleteमैं के वर्चस्व की चाह है
ऐसे में सुकून - बस ख्वाब है ....सुन्दर रचना...
behtreen prstuti....
ReplyDeleteअनीता जी की टिप्पणी गौर करने योग्य है ...
ReplyDeleteमुक्त होने की घोषणा भी तो कही मैं नहीं ...
किन्तु मैंपन की यह अभिव्यक्ति भी अच्छी लगी!
अब मुक्त हूं,हर तरह के"मैं" पन से।
ReplyDeleteलाजवाब रचना ।
Rashmi Prabha ji
ReplyDeletesundar rachna ke liye badhai sweekaren.
मेरी १०० वीं पोस्ट , पर आप सादर आमंत्रित हैं
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ब्लॉग पर यह मेरी १००वीं प्रविष्टि है / अच्छा या बुरा , पहला शतक ! आपकी टिप्पणियों ने मेरा लगातार मार्गदर्शन तथा उत्साहवर्धन किया है /अपनी अब तक की " काव्य यात्रा " पर आपसे बेबाक प्रतिक्रिया की अपेक्षा करता हूँ / यदि मेरे प्रयास में कोई त्रुटियाँ हैं,तो उनसे भी अवश्य अवगत कराएं , आपका हर फैसला शिरोधार्य होगा . साभार - एस . एन . शुक्ल
कशमकश से उबरने का अच्छा चित्रण किया है और परिणति तो और भी सुन्दर प्रतीत हो रही है
ReplyDeletebehtreen atiuttam achchi lagi yah rachna.badhaai aapko.
ReplyDeleteये है असली...स्वान्तः सुखाय...इसी के लिए जीना चाहिए...
ReplyDeleteदूसरो की कविताएं पढ़ना भी ..एक कविता हैं
ReplyDeleteखुद कों हम शब्दों के द्वारा या रंगों के द्वारा रचते हैं
यह एक मनुष्य का स्वभाव हैं
मुझे लोग पढेंगे या नहीं ......यह भूलकर साहित्य साधना में jute रहना चाहिए
पर अन्य लेखकों कों पढ़ना जरूर कहिये