सपनों के अनंत विस्तार में
रश्मि प्रभा
कुछ अपना होता है
आगत की होती हैं कुछ आहटें
कुछ मनचाहा होता है
वक़्त के साथ जो कहो
सपने हैं तो ही हकीकत है .....
रश्मि प्रभा
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सपने
"सपने" एक ऐसा विषय है जिस पर यदि विचार करने जायें तो विचार उलझते ही जाते है और मन दूर कहीं दूसरी दुनिया में चलता चला जाता है। शायद उसे ही स्वप्न लोक कहते हों, मगर कभी-कभी यूँ भी होता है जब यादों के समंदर में दिल की कश्ती डूबती सँभलती जीवन चक्र की तरह चलती चली जाती है। तब कभी हमसे हमारे वह सपने उन यादों के समंदर में लहरों की तरह आकर मिलते हैं तब हमको याद आता है कि यह तो वही सपने हैं, जिनको कभी हमने अपनी आँखों में सँजोया था। मगर आज हमारे अपने वर्तमान में ही उन सपनों का कोई महत्व, कोई अस्तित्व बाक़ी नहीं रह गया है। अब जब हम उन सपनों को छोड़ कर आगे बढ़ चुके तब यदि वही सपने सच हो भी जाते है, तो भी अब हमको कोई फर्क नहीं पड़ता। वैसे तो इस विषय पर लिखने से पहले मैंने खुद कई बार सोचा तो लगा शायद मैंने बहुत ही टेढ़ा विषय चुन लिया हैं। मगर किसी ने मुझसे कहा था कि मेरा अगला विषय यही हो और मैं इस विषय पर जरूर कुछ लिखूँ इसलिए कुछ लिखने का प्रयास किया है, उम्मीद है आप को पसंद आयेगा और आप सभी लोग खुद के अनुभवों से मेरे इस लेख हो जोड़ कर देख सकेंगे, फिर प्रश्न यह उठता है कि आखिर सपने होते क्या हैं, कहाँ से आते हैं, क्यूँ आते हैं। कहाँ से आते यह तो कहना मुश्किल है मगर कभी मनोविज्ञान में पढ़ा था कि अचेतन मन में रहने वाली बातें ही जो चेतन मन तक नहीं आ पाती रात को सपनों के भेष में आया करती है। यदि आपके अंतरमन में कुछ बुरा या भयावह हो तो आप को डरावने सपने आयेंगे और आपके अंतर मन में कोई अच्छी या सुखद भावना है तो उस के अनुरूप आपको वैसे सपने आयेंगे। यह तो थी मनोवैज्ञानिक तौर पर सपनों की परिभाषा।
मगर साधारण शब्दों में सपनों की क्या परिभाषा होगी क्योंकि सपने तो हर कोई देखता है, चाहे बच्चा हो या बूढ़ा, फिर चाहे वो सपना अच्छा हो या बुरा, हर किसी के अलग–अलग सपने होते हैं। हर उम्र का अपना एक सपना होता है। सपनों को दो भागों में बाँटा जा सकता है जैसे एक सपने वो होते हैं, जो हम हमेशा अपने लिए देखते हैं, और एक वो जो हम दूसरों के लिए देखते हैं। कुछ सपने कॉमन होते हैं जो प्रायः सभी के एक जैसे होते हैं। जैसे बचपन में रोज़ नए खिलौनों से खेलने का सपना, पारियों की नगरी का सपना, सुंदर सजीले राज कुमार का सपना, बड़े होकर क्या बनना है और सबसे महत्वपूर्ण सपना जो हर किसी का होता है, गरीब से अमीर बनने का सपना, अमीर होते हुए भी और अमीर होने का सपना। यहाँ मैं आप को एक बात और कहना चाहूँगी कि यह एक ऐसा सपना है कि आज तक कभी किसी का पूरा नहीं हुआ चाहे वो टाटा हों, अंबानी परिवार हो, या मेरे सबसे ज्यादा पसंदीदा कलाकार श्री अमिताभ बच्चन जी हों, ठीक वैसे ही बड़े होने पर मुहब्बत् का सपना, यह भी एक ऐसा सपना है, जो हर कोई देखता है।
यह बात अलग हैं कि यह सपना भी बहुत कम लोगों का ही पूरा होता है और जिनका पूरा होता है वह सभी अपने आप को बहुत भाग्यशाली समझते है। मगर जो लोग इस अनुभव से गुज़रते हैं कहते हैं उन्हें सही मायने में जीवन का अनुभव हो पाता है। क्योंकि प्यार ही जीवन की पूंजी है और जैसा की आप जानते हैं मैंने अपने पहले के कई लेखों में लिखा है और आज यहाँ एक बार फिर लिख रही हूँ। प्यार एक ऐसा जज़्बा है जो सभी के दिल में मुहब्बत् बन कर धड़कता है। प्यार वो है जो हर कोई करता है। कोई भी मन, कोई भी जीवन, इस रिश्ते से अनछुआ नहीं है मगर हाँ यह बात अलग है कि किसी का यह सपना पूरा हो जाता है और किसी का नहीं जिसका हो जाता है, उसका तो ठीक, मगर जिनका नहीं हो पता उनके लिए तो जैसे दुनिया ही खत्म हो जाती है। यहाँ मुझे (जावेद अख़्तर साहब) की कुछ पंक्तियाँ याद आ रही है।
“मुहब्बत् पलकों पर कितने ख़ाब सजाती है, फूलों से महँकते ख़्वाब,
सितारों से झिलमिलाते ख़्वाब, शबनम से बरसते ख़्वाब,
फिर कभी यूँ भी होता है पलकों की डालियों से
ख़्वाबों के सारे परिंदे उड़ जाते है, और आँखें हैरान से रह जाती है”
और उनका दिल बस यही गाता रह जाता है कि
“सारे सपने कहीं खो गये, हाय हम क्या से क्या हो गये,
दिल से तनहाई का दर्द जीता, क्या कहें हम पे क्या-क्या न बीता,
तुम ना आये मगर जो गये, हाय हम क्या से क्या हो गये”
इसी तरह जब यह ख़्वाब पूरा होता है, या नहीं भी होता तो भी जीवन का अगला पड़ाव बच्चों का सपना यह वह सपने हैं जिनका मैंने ऊपर जिक्र किया था। दूसरों के लिए देखे जाने वाले सपने कि हमारा बच्चा बड़ा होकर क्या बनेगा और उसके बाद उसके विवाह से संबन्धित सपना लड़का हो तो घर में बहू आने का सपना, बेटी हो तो कन्यादान का सपना, हर माता-पिता का इस बात से जुड़ा कोई न कोई सपना तो जरूर होता है। यह बात अलग है कि आगे जाकर वह अपने बच्चे की पसंद पर उस सपने से समझौता कर लिया करते है। मगर सपने तो वो भी देखा ही करते हैं। फिर चाहे वो पूरे हों या न हों। मगर क्या आपने कभी गौर किया है जब कभी हम कोई सपना देख रहे होते हैं, जिसमें खास कर हमारी अपनी उपस्थिती हो, तो हमको लगता जरूर है कि हमने खुद को अपने सपने देखा मगर वास्तव में हमने खुद को नहीं देखा होता मगर चूंकि सपना हमारा है और हम ही देख रहे हैं। इसलिए हमको ऐसा लगता है कि हमने खुद को भी अपने सपने में देखा मुझे तो ऐसा ही लगता है आप का क्या विचार है ज़रा सोच कर देखिएगा। खैर यह मेरा अपना मत है। लेकिन सपनों कि सही परिभाषा क्या है, यह कहना बहुत ही कठिन है क्योंकि अपने-अपने सपनों को लेकर सबकी अपनी एक अलग ही परिभाषा होती है। जिसे किसी दूसरे को समझा पाना आसान नहीं होता।
अकसर ऐसा होता है कि सपने टूट जाया करते हैं। पर इंसान जज़बाती होता है, थोड़े दिन सपनों के टूटने की चुभन मे गुज़र जाया करते हैं। मगर उम्मीद का दामन यूँ ही नहीं छूट जाया करता इंसान फिर से नयी आस के साथ सपने बुनना शुरू करता है। टूटता है, बिखरता है, संभालता है, मगर सँजोया हुआ हर सपना पूरा कहाँ होता है। फिर भी हर इंसान सपनों में ही खोया रहता है। क्योंकि वो कहते है न उम्मीद पर दुनिया क़ायम है।
क्योंकि हर कोई अपने सपनों को हक़ीक़त में बदलता हुआ देखना चाहता है। कुछ लोग सपनों में ही जी लिया करते है। उनका मानना यह होता है कि हम जानते हैं जो सपना हमने देखा है वो कभी हक़ीक़त में तबदील नहीं हो सकता। इसलिए हम उस सपने को सपने में ही जी कर खुद को खुश कर लिया करते हैं। कुछ लोग अपने सपनों को पूरा करने के लिए जी-जान लगा दिया करते हैं। कहने वाले कहते हैं यदि जीवन में सफलता पाना है तो सपने देखना बहुत ज़रूरी है और बड़ी सफलता के लिए बड़ा सपना होना चाहिए, तो वही दूसरी और लोगों का मानना यह भी है कि जितनी चादर हो आपको उतने ही अपने पैर फैलाना चाहिए अर्थात् आपको अपने अनुसार(लेवल) के सपने ही देखने चाहिए क्योंकि यदि आपने अपनी ज़रूरतों से, उम्मीदों से, बड़े सपने देख डाले और यदि वो पूरे न हो सके तो बहुत दर्द होता है। यहाँ मेरा मानना यह है कि सपना छोटा हो या बड़ा यदि पूरा न हो तो दर्द तो होगा ही कभी कम कभी ज्यादा, मेरे विचार से तो सपने सुख और दुःख की तरह होते हैं। जिस तरह जीवन भर यह सुख दुःख का सिलसिला चलता रहता है वैसे ही आदमी की अंतिम साँस तक उसके सपने उसके जीवन में निरंतर आते रहते हैं। अगर एक सपना पूरा हो जाए तो नित नई उम्मीद जाग जाती है। वो ग़ालिब का शेर तो आपने सुना ही होगा।
“इंसान की ख़्वाहिश की कोई इंतहा नहीं,
दो गज़ ज़मीन चाहिए दो गज़ कफ़न के बाद”
ठीक सपनों का भी यही हाल होता है। एक पूरा हुआ नहीं की दूसरा अपने आप आँखों में आ जाता है और यही सपने तो इंसान के जीवन जीने की वजह होते हैं। जरा सोचो तो बिना सपनों की बिना किसी उम्मीद की ज़िंदगी भी क्या ज़िंदगी होगी, जैसे कोई ज़िंदा लाश। न कोई उमँग होगी, न कोई तरंग होगी, न बीती हुई रात का अफ़सोस होगा, न आने वाली नई सुबह का जोश होगा। जिसके पास सपने नहीं होंगे उसके पास तो जीवन ही नहीं होगा। क्यूंकि जीने के लिए जीवन में किसी उदेश्य का होना बहुत ज़रूरी है और सपने ही तो जीवन को जीवन का लक्ष प्रदान करते है सपनों को पूरा करने कि उम्मीद में ही तो इंसान जीता है कि आज नहीं तो कल उसका कोई महत्वपूर्ण सपना जिसे लेकर उसे लगता है कि यदि वो पूरा हो गया तो उसका जीवन सफल हो जाएगा। यह बात अलग है कि उस के बाद फिर कोई नया सपना इंसान कि आँखों में घर कर लिया करता है और इसी तरह यह जीवन चक्र चलता चला जाता है। माना कि सपने काँच से भी ज्यादा नाज़ुक होते हैं जिन्हें बहुत सँजो कर रखना पड़ता है मगर तब भी यदि कभी कोई सपना टूट जाये तो तकलीफ तो बहुत होती है। और सदियों तक उन सपनों की चुभन का एहसास दिल में रहा करता है वो शीशे नुमा सपने के काँच के टुकड़े एक बार किसी के दिल कि गहराई में घंस जायें तो उस इंसान को खुद उस चुभन से पीछा छुड़ाना या यूँ कहना ज्यादा सही होगा कि उस उठती हुई टीस से मुक्ति पाना आसान नहीं होता मगर बुज़ुर्गों का कहना है, वक्त में हर बड़े से बड़ा ज़ख़म भरने की ताक़त होती है।
अंततः बस यही कहना चाहूँगी कि हम सभी को सपने जरूर देखना चाहिए और उन सपनों को पूरा करने भी भरपूर कोशिश भी जरूर करनी चाहिए। ध्यान रखें तो केवल इस बात का कि कहीं आपके सपने से किसी और को तो कोई हानि नहीं पहुँच रही है। यदि हाँ तो एक बार अपने सपने के बारे में अपने आपसे अपने अंतर मन से जरूर सोचें और उसके बाद ही अपने उस सपने को उतनी हवा दें जितना कि वो हकदार हो, अन्यथा कोई बात नहीं है जितने चाहे उसे उतने पर लगने दें और उड़ान भर जाने दें, अपने सपनों को स्वप्न लोक की दुनिया में जहां अकसर "जब नींद में सपनों का डेरा होता है सच होने की आस लिए नया सवेरा होता है"।
पल्लवी सक्सेना
बेहतरीन प्रस्तुति ।
ReplyDeleteवक़्त के साथ जो कहो
ReplyDeleteसपने हैं तो ही हकीकत है .....
वाह! एक अलग रंग की प्रस्तुति!अच्छी लगी यह पोस्ट!
बेह्त्रीएन प्रस्तुती....
ReplyDeleteसपने हैं तो ही हकीकत है .....
ReplyDeleteyahi sach hai......
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति ।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteलिखने के लिए भी सपने देखना जरूरी है. सुंदर प्रस्तुति.
ReplyDeleteआप सभी पाठकों ने मेरा यह लेख पढ़ा और पसंद किया इसके लिए मैं आप सभी की आभारी हूँ। साथ ही "रश्मि प्रभा" जी की भी मैं तहे दिल से शुक्र गुज़र हूँ। जिन्होने मेरे इस लेख को यहाँ स्थान दिया। धन्यवाद....
ReplyDeletedono hi prastuti bahut hi shaandaar /pallaviji aur rashmiji aap dono ko bahut badhaai/
ReplyDeleteplease visit my blog
www.prernaargal.blogspot.com
बहुत सुन्दर रचना , आभार
ReplyDeleteकृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधारने का कष्ट करें .
कल 14/09/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
ati uttam...bahut khoob
ReplyDeleteसबसे पहले हिंदी दिवस की शुभकामनायें /
ReplyDeleteमेरी नई पोस्ट हिंदी दिवस पर लिखी पर आपका स्वागत है /
http://prernaargal.blogspot.com/2011/09/ke.html/ आभार/