ज़िन्दगी के संकरे रास्तों पर
रश्मि प्रभा
मयंक सक्सेना
यथार्थ के कंकड़ इतने नुकीले होते हैं
कि मायूस एहसास हाथ से छूटने लगते हैं ....
रश्मि प्रभा
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मोहभंग....
प्रेम कविताओं के बीच के
संक्षिप्त अंतराल में
याद आती रही
बच्चों की फीस
घर का राशन
पेट्रोल के दाम
मां की दवा
पिता का इलाज
पत्नी की फटी साड़ियां
अपने पुराने गल चुके जूते
दफ्तर के दोस्तों से लिया गया
उधार
गली का बनिया
बॉस का गुस्सा
कागज़ों के बढ़ते दाम
प्रकाशक की अकड़
और फिर स्याही
हल्की पड़ने लगी
कलम रुक के चलने लगी
और
एक दिन घर पर
खिलौने की ज़िद करते
अपने बच्चे को
पीटने के बाद
उसने तय किया
कि अब वो प्रेम कविताएं
नहीं लिखेगा....
मयंक सक्सेना
कितनी सच्चाई से आपने बात कह डाली...प्रेम जमीनी हकीकत पर उधड़ने लगता है...
ReplyDeleteमन की सहजता जीवन की कठिनाईयों के आगे कभी कभी असहज हो जाती है ....किन्तु ये क्षणिक ही होता है ...प्रेम ऐसा भाव है जो आपको छोड़ कर कहीं जायेगा नहीं .....आप भले ही थोड़ी देर को उसे छोड़ दें ...
ReplyDeleteबहुत सुंदर अभिव्यक्ति है ...
बधाई ..एवं शुभकामनायें ...
बहुत कुछ कह दिया.अब क्या प्रेम और क्या कविता सीधे जमीन पटक दिया. भावमयी प्रस्तुति
ReplyDeleteरश्मि और मयंक जी अभिवादन ..सार्थक रचना सुन्दर मूल भाव ..एक एक शब्द जीवन का यथार्थ दिखाते ...मन को छू गये ....धन्यवाद
ReplyDeleteभ्रमर ५
मां की दवा
पिता का इलाज
पत्नी की फटी साड़ियां
अपने पुराने गल चुके जूते
दफ्तर के दोस्तों से लिया गया
उधार
गली का बनिया
बॉस का गुस्सा
truth of life...really...all happens simultaneously//
ReplyDeleteकुछ कच्ची-सच्ची कलिया, मखमली ख्वाब बुनती हैं.
ReplyDeleteजीवन की कड़वी सच्चाईयां उन्हें शीशे सा तोड़ देती हैं.
इन दों द्वंदों के बीच, असहाय, अत्प्रभ खड़ा मैं.
सोचता हूँ, जिधर दिमाग चाहे उधर जाऊ.
या जिधर दिल धडके उधर जाऊ.
अभी अभी आँखों से कुछ पानी
लाल रंग लिए ढलका हैं.
अभी अभी, अलसुबह कोई ख्वाब फिर टुटा हैं.
अभी अभी कोई मुझमे में ही, मुझसे फिर रूठा हैं.
This is duality of life. One end hopeless, other end full of potential. Life is balance in between.....
jo kahana tha kah dala aap ki kavitha may
ReplyDeletesundar
सशक्त अभिव्यक्ति!!
ReplyDeleteशानदार प्रस्तुति
this is fine one , better effort .
ReplyDeletethanks .
अपने आसपास स्पंदित होती रचना...
ReplyDeleteसशक्त अभिव्यक्ति...
सादर...
सशक्त रचना
ReplyDeleteसच्ची और सशक्त रचना
ReplyDeleteबहुत बढ़िया !!
प्रेम खूबसूरत एहसास है , मगर जीवन तो दाल रोटी से चलता है !
ReplyDeleteतल्ख़ सच्चाई ...
Badhai shandarprastuti ke liae ..
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