अनुभवों की चाभी अपनी होती है
आगत के लिए ख़ास होती है ...
रश्मि प्रभा
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भय - भय जरुरी है जीवन में
वह हमें आँधियों के प्रति सजग रखता है
जानबूझकर आग में हाथ नहीं डालने देता ....
जानबूझकर आग में हाथ नहीं डालने देता ....
पर लगातार भय होने से
या सोचने से
वो हमारा संस्कार बन जाता है
और यही चिंतन का विषय है !
और यही चिंतन का विषय है !
भय सही अनुपात में हो तो कोई मुश्किल नहीं
पर अक्सर हम इससे बहुत ही प्रभावित होते हैं
खास कर भूतकाल की आंधियां लौट ना आएँ
यह सोचकर थर्राते हैं ....
- सतर्कता , सजगता , कान खुले रख कर जीना ज़रूरी है
पर कई बार भय
पर कई बार भय
इतना गहरा उतर जाता है हमारी जेहन में
कि हम भूतकाल की सोच सोच कर ही डरते रहते हैं .
उदाहरण के लिए मैं अपनी बात बताऊँ ---
कि हम भूतकाल की सोच सोच कर ही डरते रहते हैं .
उदाहरण के लिए मैं अपनी बात बताऊँ ---
तीन बार मेरे लाइफ पर मर्डर के अटेम्प्ट हुए .
उसके बाद मैं घर से निकलने में डरने लगा .
सोचता -
उसके बाद मैं घर से निकलने में डरने लगा .
सोचता -
पुरुष हूँ , घर की जिम्मेदारियां हैं ...
कैसे काम चलेगा ?
पर घर से निकलते ही घबराहट शुरू ,
पर घर से निकलते ही घबराहट शुरू ,
रास्ते से लौट आता ...
डॉक्टर आते , दवा देते , फायदा भी होता ,
पर घर से निकलने की सोचते ही वही काले बदल ...
लगभग एक साल बीमार रहा
फिर मुझे याद आई अपने बच्चों की बात
चलना शुरू किया तो बारी बारी सब गिरे
और खूब गिरे
रो कर कहते - नहीं चलना ... गोद में ले लो
और मैं उन्हें समझाता - पापा हैं ना ऊँगली पकड़ने को
इस बार चल के देखो नहीं गिरोगे
पहले दो कदम चले फिर चार फिर दस ....
और आज सब दौड़ रहे !
पर आज वही मैं , सब भूल गया !.
अरे अटेम्प्ट ही हुए ना ?
कुछ कर तो नहीं पाए न
बचपन से सुना
डॉक्टर आते , दवा देते , फायदा भी होता ,
पर घर से निकलने की सोचते ही वही काले बदल ...
लगभग एक साल बीमार रहा
फिर मुझे याद आई अपने बच्चों की बात
चलना शुरू किया तो बारी बारी सब गिरे
और खूब गिरे
रो कर कहते - नहीं चलना ... गोद में ले लो
और मैं उन्हें समझाता - पापा हैं ना ऊँगली पकड़ने को
इस बार चल के देखो नहीं गिरोगे
पहले दो कदम चले फिर चार फिर दस ....
और आज सब दौड़ रहे !
पर आज वही मैं , सब भूल गया !.
अरे अटेम्प्ट ही हुए ना ?
कुछ कर तो नहीं पाए न
बचपन से सुना
मारनेवाले से बचाने वाला बड़ा होता है
बच्चों को कितनी बार चींटियों की कहानियां सुनायीं
बताया - मकड़ा कितनी बार चढ़ा - गिरा ...
और आज वही मैं !
मैं कल तक दूसरों के लिए एक मजबूत कन्धा था
आज मुझे ही ये क्या हो गया ?
फिर मैं उठा
दो चार बार जरुर लड़खडाया
पर फिर कभी मुड़ कर पीछे नहीं देखा
......................
मैंने माना कि भय जरुरी है
पर नमक भर .
अधिक हुआ और खाना ख़राब
कम हुआ और खाना बेस्वाद
प्रह्लाद और द्रौपदी अपवाद नहीं
बच्चों को कितनी बार चींटियों की कहानियां सुनायीं
बताया - मकड़ा कितनी बार चढ़ा - गिरा ...
और आज वही मैं !
मैं कल तक दूसरों के लिए एक मजबूत कन्धा था
आज मुझे ही ये क्या हो गया ?
फिर मैं उठा
दो चार बार जरुर लड़खडाया
पर फिर कभी मुड़ कर पीछे नहीं देखा
......................
मैंने माना कि भय जरुरी है
पर नमक भर .
अधिक हुआ और खाना ख़राब
कम हुआ और खाना बेस्वाद
प्रह्लाद और द्रौपदी अपवाद नहीं
सच्चाई हैं
..........
कृष्ण के रहते चिरहरण ?
कृष्ण के रहते चिरहरण ?
आवाज़ लगाने भर की देर है
सच पूछो याद करने भर की देर है
सब ढेर हो जायेंगे
आज मेरे जीवन का एक ही बीज मंत्र है -
मारने वाले से बचानेवाला बड़ा है
सच पूछो याद करने भर की देर है
सब ढेर हो जायेंगे
आज मेरे जीवन का एक ही बीज मंत्र है -
मारने वाले से बचानेवाला बड़ा है
जो मैं तुम्हें सौंप रहा हूँ .......
स्वीकार करो
सुमन सिन्हा
मैंने माना कि भय जरुरी है
ReplyDeleteपर नमक भर .
सत्य.. सत्य.. बस परमसत्य यही है ..
आभार इस बेहतरीन प्रस्तुति के लिये ।
गहरे में उतरती हुई..
ReplyDeleteभय सही अनुपात में हो तो कोई मुश्किल नहीं
ReplyDeleteपर अक्सर हम इससे बहुत ही प्रभावित होते हैं
खास कर भूतकाल की आंधियां लौट ना आएँ
यह सोचकर थर्राते हैं ....
सार्थक आलेख ....
बहुत सुंदर..!!! आपकी सभी रचनायें बहुत गहरी होतीं हैं..!!!!
ReplyDeletekhubsurat rachna.....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना , बधाई
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना , बधाई
ReplyDeleteइसी भय की दशा से गुजरते लोगों को उबारने का काम करेगी यह रचना... शुभकामनायें!
ReplyDeleteजिस दिन ये समझ आ गया कि जीवन की डोर ऊपर वाले के हाथ में है जहाँपनाह...सारा डर जाता रहता है...बचने वाला तो बहुत ही बड़ा है...
ReplyDeletegahan bhaavo se paripurn rachna....
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