ख्यालों के बुरादों से
हर दिन ---
एक मीठा लम्हा तैयार करती हूँ !
पुराने बक्से से,
पुरानी शक्लों को निकाल
लम्हे को मीठी ताजगी से भर देती हूँ.........
ये अलग बात है
कि,
बक्से में पुरानी शक्लों को वापस रखते हुए
मेरी आँखें छलकती हैं,
रश्मि प्रभा
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खुद से डर लगने लगा है !!!
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वो समय भी था
जब अकेले सोने के ख्याल से भी
डर लगता था
अब तो अकेला होना
आदत सी होती जा रही है...
खालीपन -
कुछ इस तरह मेरे साथ रहने लगा है
कि मेरे आस-पास के लोग
मुझे अच्छे नहीं लगते ...
भीड़ में घबराहट !
शुरू से ही आदत थी
पर भीड़ में कोई दिखे ही नहीं
ऐसा अब होने लगा है...
शोर तो शुरू से ही खलता था
पर आवाजों की भीड़ में
कुछ ना सुनाई देना
ये अब होने लगा है ...
हँसी तो जैसे गुम है कहीं
वो जो चेहरे पे रहती है हर वक़्त
उसे आईने में देख
खुद डर लगने लगा है ...
ये तो लोगों को दिखाने के लिए है
कि मैं खुश हूँ
पर खालीपन ने मुझे छोड़ा नहीं है ...
डरती हूँ
कहीं खुद को ही ना झूठी हँसी से
समझाती रह जाऊँ ...
भ्रम में उलझ कर
घुट घुट के मन ये मरने लगा है ...
खुद से डर लगने लगा है !!!
खुशबू प्रियदर्शिनी
मन के अंतर्द्वंद को दर्शाती खूबसूरत रचना ..
ReplyDeletekashmakash
ReplyDeletesundar rachna/ ehsaaso se purn
बहुत बढ़िया खुशबू !
ReplyDeleteBAHUT BADHIYAA
ReplyDeleteभीड़ में घबराहट !
ReplyDeleteशुरू से ही आदत थी
पर भीड़ में कोई दिखे ही नहीं
ऐसा अब होने लगा है...
ओह! बेहद दर्द ही दर्द भरा है………………सारे जहाँ का दर्द उतार कर रख दिया।
अंतर्द्वंद को दर्शाती बेहतरीन रचना ..
ReplyDeleteबढ़िया है………………
ReplyDeletesanvedanaaon kee dharaatal par upaji ek shreshth kavitaa ...badhaayiyaan !
ReplyDeleteअंत:करण की व्यथाओं से सरावोर है यह कविता, अच्छा लगा पढ़कर !
ReplyDeleteखालीपन , सूनापन , उदासी जैसे हर शब्द से टपक रही है ...
ReplyDeleteकविता अच्छी है...
मगर ऐसा क्यूँ खुशबू ....!
बक्से में पुरानी शक्लों को वापस रखते हुए
ReplyDeleteमेरी आँखें छलकती हैं,
ख्यालों का भ्रम बहता जाता है...
मन की व्यथा की बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...
खालीपन -
कुछ इस तरह मेरे साथ रहने लगा है
कि मेरे आस-पास के लोग
मुझे अच्छे नहीं लगते ...
अंतर्द्वंद की बहुत मार्मिक अभिव्यक्ति....शुभकामनाएं
cute photograph:-) sketch bhi khusboon ne hi kiya hai kya ?
ReplyDeletehaan khalipan salta to bahut hai
This comment has been removed by the author.
ReplyDelete"भीड़ में घबराहट !
ReplyDeleteशुरू से ही आदत थी
पर भीड़ में कोई दिखे ही नहीं
ऐसा अब होने लगा है."
भीड़ तो बस भीड़ होती है, इसका कोई चेहरा नहीं होता क्योंकि ये चेहरों के ढेर से बना होता है. इसके भयानक और डरावना होने का एक कारण यह भी .ये एक कटु सत्य हैं की आज की भीड़ में अजनबीपन बढ़ा है. घबराहट लाजमी है. ईमानदारी से महसूसी गई कविताके लिए धन्यवाद.
अकेलापन भी एक सच्चाई है ... और इसमें जीना पड़ता है न चाहते हुवे भी ....
ReplyDeleteउद्वेलित करती है आपकी रचना ....
बक्से में पुरानी शक्लों को वापस रखते हुए
ReplyDeleteमेरी आँखें छलकती हैं,
ख्यालों का भ्रम बहता जाता है...
बहुत ही सुन्दर शब्द रचना ।
LOve U Babu ...!
ReplyDelete@ all
ReplyDeletethank u nahi kahna hai mujhe qki thanks likhna bahut formal lagta bas itna kahungi ki i feel blessed :)
bahut ache bhav
ReplyDeletebahut hi sundar rachna..man ki halchal darshaati hui..
ReplyDeleteman kaa aik roop - ajab see vismay kane vaali - sab kuch hote huve bhi kuch nahi darsaata hai... man me uthalputhal ko darsaati huvi sundar rachnaa..
ReplyDeletebliss in solitude
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