राह चलते सागर कहाँ मिलता है
नदी यूँ ही लम्बे रास्ते तय नहीं करती
रश्मि प्रभा
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अज्ञात शून्यता...
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एक शून्यता में
प्रवेश कर गई हूँ,
या कि मुझमें
शून्यता प्रवाहित हो गई है,
थाह नहीं मिलता
किधर खो गई हूँ,
या जान बुझकर
खो जाने दी हूँ स्वयं को !
कंपकपाहट है
और डर भी,
बदन से छूट जाना चाहते
सभी अंग मेरे,
हाथ में नहीं आता
कोई ओस-कण,
थर्रा रहा काल
कदाचित महाप्रलय है !
मुक्ति की राह है
या फिर कोई भयानक गुफ़ा,
क्यों खींच रहा मुझे
जाने कौन है उस पार?
शून्यता है पर
संवेदनशून्यता क्यों नहीं?
नहीं समझ मुझे
ये रहस्य क्या है,
मेरा या मेरी इस
अज्ञात शून्यता का!
__ जेन्नी शबनम __
नाम : डॉ. जेन्नी शबनम
जन्म तिथि : नवम्बर १६, १९६६
शिक्षा : एम.ए, एल एल.बी, पी एच. डी
व्यवसाय : अधिवक्ता, समाज सेवा
वर्तमान कार्यरत : कोषाध्यक्ष, अंगिका डेवलपमेंट सोसाइटी, बिहार
सचिव, वी.भी.कॉलेज ऑफ़ एजूकेशन, भागलपुर, बिहार
जन्म-स्थान : भागलपुर, बिहार
स्थायी पता : डी.पी.एस.भागलपुर, दीक्षापुरम, सबौर, भागलपुर- ८१३२१०, बिहार
वर्तमान पता : नयी दिल्ली
इ.मेल : jenny.shabnam@gmal.com
"शून्यता है पर
ReplyDeleteसंवेदनशून्यता क्यों नहीं?"... बहुत सूंदर कविता.. मनोवैज्ञानिक धरातल पर खुद को ढूंढ रही हैं आप.. सुंदर
"शून्यता है पर
ReplyDeleteसंवेदनशून्यता क्यों नहीं?"... बहुत सूंदर कविता.. मनोवैज्ञानिक धरातल पर खुद को ढूंढ रही हैं आप.. सुंदर
मुक्ति की राह है
ReplyDeleteया फिर कोई भयानक गुफ़ा,
क्यों खींच रहा मुझे
जाने कौन है उस पार?
शून्यता है पर
संवेदनशून्यता क्यों नहीं?
....aadhytm ka darshan karati sundar prastuti ke liye aabhar
मुक्ति की राह है
ReplyDeleteया फिर कोई भयानक गुफ़ा,
क्यों खींच रहा मुझे
जाने कौन है उस पार?
शून्यता है पर
संवेदनशून्यता क्यों नहीं?
नहीं समझ मुझे
ये रहस्य क्या है,
मेरा या मेरी इस
अज्ञात शून्यता का!
एक बेहतरीन कविता अध्यात्मिक दर्शन कराती हुई।
रश्मि जी,
ReplyDeleteमेरी रचना को आपने यहाँ स्थान दिया, मेरे लिए और मेरी रचना केलिए सम्मान की बात है| आभारी रहूंगी|
यूँ हीं आप सभी से सदैव प्रशंसा, प्रेम और प्रोत्साहन मिलता रहे अपेक्षा रहेगी| आप सभी का बहुत धन्यवाद|
मुक्ति की राह है
ReplyDeleteया फिर कोई भयानक गुफ़ा,
क्यों खींच रहा मुझे
जाने कौन है उस पार?
uspar शायद चुम्कीय आकार्सन वाला वही है जिसके कारण शून्यता का आभाष हुआ .प्रश्न का उत्तेर पाने के लिए जाना ही चाहिए .अच्छी कविता
जाने कौन है उस पार?
ReplyDeleteशून्यता है पर
संवेदनशून्यता क्यों नहीं?
नहीं समझ मुझे
ये रहस्य क्या है,
मेरा या मेरी इस
अज्ञात शून्यता का!
संवेदनशून्यता क्यों नहीं?"... बहुत सूंदर कविता.. मनोवैज्ञानिक धरातल पर खुद को ढूंढ रही हैं आप..जिसके कारण शून्यता का आभाष हुआ
बहुत सुन्दर !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर कविता !बधाईयाँ.
ReplyDeleteबेहतरीन कविता...
ReplyDeleteसभीने इस कविता को सराहने में कोइ कमी नहीं छोडी, जेन्नीबहन, मैं भी उन सभी दोस्तों के साथ कहता हूँ कि मनोवैज्ञानिक ज़मीन पर शून्यता की इतनी अच्छी कविता के लिएँ बधाई |
ReplyDeleteशुन्यता में ही पूर्णता है... गहरे भाव है इसमें जो शुन्यता को पूर्णता की ओर ले जा रहे है ...
ReplyDeleteशून्यता है पर
ReplyDeleteसंवेदनशून्यता क्यों नहीं?
क्या बात है ..गहन अभिव्यक्ति.
भावनाएं जब शब्दों का रूप लेकर प्रकट होती हैं, तो ऐसी ही उम्दा रचना का सृजन होता है...
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाई.
शून्यता मगर संवेदनशून्यता क्यूँ नहीं ...
ReplyDeleteक्या रहस्य है मेरी अज्ञात शून्यता का ...
खुद को ढूँढने की यात्रा है यह तो ..!
kya bata hai....bhaut gahrayee hai yaha
ReplyDelete@ रश्मि जी,
ReplyDeleteसबसे पहले आपका बहुत बहुत धन्यवाद, आपने मेरा मान बढ़ाया|
@ अरुण जी,
बहुत आभार रचना की सराहना केलिए|
@ कविता जी,
मेरी रचना के मर्म तक पहुँचने केलिए बहुत शुक्रिया|
@ वंदना जी,
सराहना केलिए दिल से आभार आपका|
@ जे.पी तिवारी जी,
रचना की सराहना केलिए बहुत धन्यवाद आपका|
@ अनुपम जी,
बहुत शुक्रिया|
@ मनोज जी,
बहुत धन्यवाद|
@ माला जी,
मन से शुक्रिया|
@ पंकज भाई,
प्रोत्साहन केलिए मन से आभार आपका|
@ प्रीती,
बहुत शुक्रिया सराहना केलिए|
@ शिखा जी,
मन से आभार आपका|
@ शाहिद जी,
सराहना केलिए मन से आभार आपका|
@ वाणी गीत,
तहेदिल से शुक्रिया रचना को समझने केलिए|
@ सखी,
सराहना केलिए बहुत शुक्रिया|