निकट दृष्टि दोष ...
अब तो पुराने हर कदम ,
जाने की तैयारी में हैं ...
{सच है , यूँ किसी की ज़िन्दगी का कोई ठिकाना नहीं }
रोने में वक़्त बर्बाद मत करना ...
वैसे ये मेरे जज़्बात हैं ...
तुम क्या करोगे ,
इसे दावे से कहना ...
मुमकिन नहीं ...
हाँ एक बात होगी
तुम भी होगे अकेले
वक़्त मौन जगह घेरे खडा होगा ...
तब ,
ये सारे वृक्ष एक बार याद आयेंगे ...
रश्मि प्रभा
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राज कुमार शर्मा
उपनाम : ”राजेशा“
जन्मतिथि : 27 मई 1972
जन्मस्थान : गुरदासपुर, पंजाब
वर्तमान पता : 67, जोन- 1, एम पी नगर, भोपाल 462011
प्रकाशित पुस्तकों और उनके प्रकाशकों के नाम : कोई भी पुस्तक प्रकाशित नहीं।
प्राप्त पुरस्कार/सम्मान : कोई भी पुरस्कार अथवा सम्मान प्राप्ति नहीं।
संक्षिप्त जीवनी :
जन्म 7 मई 1972 को गुरदासपुर, पंजाब में। सम्पूर्ण स्कूली एवं कॉलेज शिक्षा भोपाल में ही सम्पन्न हुई। उच्च शिक्षा में एम.ए. (हिन्दी साहित्य) और बी.एड. (हिन्दी भाषा शिक्षण) की उपाधि भोपाल विश्वविद्यालय से प्राप्त की।
हमारे जीवन में काव्य का उदय, हमारे जीवन में सोच-विचार की क्षमता आने के साथ ही हुआ। नवीं कक्षा में अध्ययन के समय से ही कविताएं और शेर दिमाग में आने लगे। स्कूली किताबों कॉपियों के पिछले पन्नों पर मिली कविताओं पर शिक्षकों और सहपाठियों की प्रेरणास्पद टिप्पणियों से उत्साह बढ़ा। इसी के साथ चित्रकला और मूर्तिकला की ओर भी रूझान रहा। बचपन से ही हिन्दी साहित्य में रूचि थी। स्कूली पाठ्यक्रम की पुस्तकों से इतर भी पुस्तकालयों और पुरानी साहित्य सामग्री क्रय कर पढ़ते रहे, रूचि बढ़ती रही। पढ़ाई लिखाई, रोजगार संघर्ष और जीवन की अन्य गतिविधियों को एक तरफ रखते हुए काव्य और कलायात्रा जारी है।
चूंकि महाविद्यालयीन जीवन से ही कम्प्यूटर संचालन कार्य के सम्पर्क में आ गये इसलिए एमए बीएड की उपाधि उपरांत जीवकोपार्जन की शुरूआत भोपाल से प्रकाशित एक मासिक पत्रिका ओजस्विनी में ‘‘ग्राफिक्स डिजाइनर’’ के रूप में की। विभिन्न निजी विज्ञापन एजेंसियों में कार्य करते हुए बने सम्पकों से भोपाल शहर के निवासियों में कुशल ग्राफिक्स डिजाइनर के रूप में जाने जाते हैं।
संप्रति : निवर्तमान में भोपाल की एक विज्ञापन एजेंसी में वरिष्ठ ग्राफिक्स डिजाइनर के रूप में कार्यरत।
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निकट दृष्टि दोष
हो गया है निकट दृष्टि दोष
दूर का सब दिखता है स्पष्ट और आकर्षक
पास का सब हो गया है धुंधला विकर्षक
दूर का सब स्पष्ट, चित्ताकर्षक
और हष्ट पुष्ट दिखता है
जी करता है मिल जाए
हर दूर स्थित कल्पना का,
बस एक अनुभव एहसास।
दूर में ही दिखता है,
पाने योग्य समग्र खास।
दूर का हर चेहरा, बहुत सुन्दर है।
दूर की हर काया,
उत्तेजना का लहराता समन्दर है।
दूर का हर रिश्ता बड़ा गहरा है,
दूर का सर्वस्व सपनों में ठहरा है।
पास जो है सब बीत चुका है जैसे
जंग लगा, सब चूक चुका है जैसे
नजर कुछ नहीं आता
बस महसूस होता है बासापन,
जो किसी भी भूख को खा जाता है
ये बासापन
लगता है जैसे सारा भविष्य खा जायेगा।
फफूंद लगे नजारे
बासी कड़ी’याँ
जिन्दगी के सारे उबाल
ठंडे कर देती हैं।
करने को अभी कितना कुछ बाकी है -
फिल्मी हीरोइनें
फिल्मी माई बाप
फिल्मी बच्चे
फिल्मी कारें
फिल्मी रहन-सहन
फिल्मी बाजार
फिल्मी चालाकियाँ, चोरी-डकैती
फिल्मी कत्ल
फिल्मी सजाएं
फिल्मी मौत।
मन के सुरमई अंधकार भरे कोने में
सुविधाओं के गुनगुने ताप पर
लगता है गाँव में -
दादी की गोद की मक्खनी गंध,
मां के चेहरे से टपकता प्यार,
बाप का भविष्य को आकार देता गुस्सा,
मौसी का प्रेरक दुलार,
ताऊ के बच्चों संग कुश्ती,
सब समय नष्ट करना था।
सच और झूठ के छद्म सिद्धांत पढ़े बिना
सच और झूठ की परवाह किये बिना
जो हो रहा है वही सही है जैसे
मां बाप का वृद्धाश्रमों में रहना,
बहू बेटियों का उघड़े बदन बहना।
बच्चों का टीवी चैनलों में गर्क होना।
सब कुछ फलता फूलता नर्क होना।
इंटरनेट पर
हवस की मरीचिका में
हर क्षण लगता है
जैसे कोई अदृश्य रिश्ता
इन ऊब से पके दिनों से
कहीं दूर ले जायेगा
फिर
अचानक अनायास खुल गई
सूनामी, भूकंप, बाढ़ राहत कोश से संबंधित
किसी वेबसाईट को देखकर
मेरा एक खयाल -
कि (मेरे पास हों तो करोड़ों में से...
कुछ लाख तो मैं दूंगा
इन मानवीय कार्यों में।)
बिल गेट्स से ज्यादा।
ये खयाल
मेरे निकट दृष्टिदोष को बेबाक
और दूरदृष्टि को पुष्ट करता
और तैशदार बनाता है।
हालांकि सच और झूठ की
परवाह किये बगैर
एक सांवली बीवी
दो औसत बुद्धि बच्चे
एक अदद बूढ़े मां बाप
हजारों की कमाई से
कुछ सैकड़ा की अपेक्षा किये बिना
इन दुआओं के साथ
कि ”फिल्में देख-देख कर खराब हो चुकी नजर
हकीकत की रोशनी में आ सुलझ जाये
मेरे साथ ही रहते हैं।“
मुझे भी समझना चाहिये
जिन्दगी 3 घंटे से ....
कुछ ज्यादा होती है।
()- राजकुमार शर्मा "राजेशा"
सही कहा ज़िन्दगी सिर्फ़ 3 घंटे का शो नही होती ना ही उस झूठे सच की मोहताज़ होती है ……………ज़िन्दगी इस से भी आगे बहुत कुछ है।
ReplyDeleteजिंदगी सिर्फ तीन घंटे की फिल्म नहीं ...
ReplyDeleteबहुत सही ...!
आज के माहौल पर सटीक कहा है ...मन के भाव जैसे फूट कर बहे हैं ...बहुत सार्थक अभिव्यक्ति
ReplyDeleteदूर का सब दिखता है स्पष्ट और आकर्षक
ReplyDeleteपास का सब हो गया है धुंधला विकर्षक
in do panktiyun me sab sar aagaya
utkrisht rachna , ke liye badhai
बहुत अच्छी प्रस्तुति ...
ReplyDeleteबहुत सार्थक अभिव्यक्ति
ReplyDeleteबहुत सही ...!
ReplyDeleteइंटरनेट पर
ReplyDeleteहवस की मरीचिका में
हर क्षण लगता है
जैसे कोई अदृश्य रिश्ता
इन ऊब से पके दिनों से
कहीं दूर ले जायेगा
सार्थक अभिव्यक्ति
दो औसत बुद्धि बच्चे
ReplyDeleteएक अदद बूढ़े मां बाप
हजारों की कमाई से
कुछ सैकड़ा की अपेक्षा किये बिना
बहुत संवेदनायें समेटी हैं इस कविता मे। दिल से कहीं गहरे मे फूटा है ये झरना । राजेशा जी तो अपने पंजाब से ही हैं।उन्हें बहुत बहुत शुभकामनायें।
jindagi ka anokha tana bana
ReplyDeleteदूर का हर चेहरा, बहुत सुन्दर है।
ReplyDeleteदूर की हर काया,
उत्तेजना का लहराता समन्दर है।
दूर का हर रिश्ता बड़ा गहरा है,
दूर का सर्वस्व सपनों में ठहरा है।
.....सच कहा है...ज़िन्दगी तीन घंटे की कहानी नहीं हो सकती...
बहुत अच्छी रचना लगी.