ईश्वर ने सत्य का स्वरुप हर बार दिखाया है तो फिर उलझन कैसी ?
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पानी का कैनवस
तुम्हें कौन सी अदभुत वस्तु चाहिए '
मैंने सोचा -
प्यार करके मैं प्यार पा लूँगा
ख्याल करके ख्याल पा लूँगा
अपनी दौलत ...
अपने हाथों पर भरोसा था
... तो मैंने कहा
' प्रभु मुझे पानी का कैनवस चाहिए
जिस पर मैं अपनी इबारत लिख सकूँ '
क्योंकि भावना थी प्रबल -
कि
'बिन पानी सब सून '
.....
प्रभु मुस्काए
पकड़ाया कैनवस
और चले गए .........
फख्र से मैंने कैनवस को
अपने कमरे में सजाया
लिखा - अपना बचपन , अपने सपने
अपनों का अपनत्व , नन्हें क़दमों की मुस्कान
और सुकून से सो गया ...
डूबते उतराते नींद खुली
पानी के कैनवस से बहते एहसास
मुझो डुबोने को तत्पर थे
कमरे से बाहर
दहलीज़ से बाहर
अपनी धरती खोज रहे थे ..........
मैंने बाँध बनाने की कोशिश की
एक नहीं , दो नहीं - कई साल
............
प्रभु की मुस्कान का अर्थ समझ में आया
पानी का कैनवस ठहरता कहाँ है !
सुमन सिन्हा (पटना )
पानी को पकड़े और जकड़े रहना हर तरह से मुश्किल होता जा रहा है। न वह आंखों में है,न चेहरे पर,न जमीन में और न सपनों में। समन्दर की अतल गहराई की कविता।
ReplyDeleteमेरे ख़याल से इतनी गहराई से भरपूर कविता बहुत ही कम पढी है.... "वटवृक्ष" जब से शुरू हुआ है, उनमें प्रकाशित श्रेष्ठ रचनाओं में भी यह अव्वल होगी | श्रीमान सुमन सिन्हा साहब ! बस समझ लिजिएँ यह कविता ईश्वर का सक्षात्कार ही है आपके लिएँ ! बधाई |
ReplyDeletebahut hi gehrai se bhavo kovyakt karti hui aapki ye rachna
ReplyDeletejivan ka sar samjhati hui si,
"Sancha ek naam, jhoothi sari duniya"
बहुत उम्दा...देर तक सोचने पर मजबूर करती हुई रचना.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ..पानी का कैनवास ..नया बिम्ब ..
ReplyDeletekalpna ki paridhi ko bhi chhota kar diya achhi rachna badhai
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteबहुत बहुत गहन!!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति !
ReplyDeleteबहुत उम्दा ...!
ReplyDeleteaapaki yah kavitaa vaakayi apane bhitar asim gaharaayi ko samete huye hai , badhaayiyaan !
ReplyDeleteाद्भुत सुन्दर रचना। बधाई।
ReplyDeleteadbhut vimb...
ReplyDeletepani ka canvas... bahte bhaav aur bandh banane ka prayas!!!!
sundar!!
बेहद गहरे अर्थों को समेटती खूबसूरत और संवेदनशील रचना. आभार.
ReplyDeleteसादर
डोरोथी.
Heart touching expression!
ReplyDeleteपानी के कैनवस से बहते एहसास
ReplyDeleteमुझो डुबोने को तत्पर थे
कमरे से बाहर
दहलीज़ से बाहर
अपनी धरती खोज रहे थे ..........bahut gahre arth hai aapki rachna me...
गहरा अर्थ लिए बड़ी ही सुन्दर कविता !!
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