स्याह रात रहती है अकेली,
ढूंढती है अपना साया -पूरे चाँद को!
सन्नाटा उसके कानों में बोलता है,
अकेली रात सिसकती है ,
चांदनी को तरसती है......
पर अक्सर मैं ही मिल जाती हूँ
और उसके संग अनजानी दिशा में खो जाती हूँ........
रश्मि प्रभा








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!! पुनरागमन !!

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वर्षों से दबा हुआ ,
एक जीवित ,
मृत व्यक्ति ,
उठ खड़ा हुआ,
वह आज ,
कर रहा था ,
वर्षों से अपनी ,
चेतना का विकास ।
परिपक्व हो उठा ,
नहीं जरुरत उसको ,
किसी के मार्गदर्शन की ,
करके प्रण वह ,
जीवित व्यक्ति हो
उठा है , पुनः जीवित ,
अबकी कर देगा
तहस - नहस , उन लोगों को
जिसने , जीते जी
कर दिया , उसको
मृत सदृश ।
--
सत्यप्रकाश पाण्डेय
अकेला कलम .

13 comments:

  1. बहुत सुन्दर रचना ! आत्मविश्वास से सरोबार ! बधाई स्वीकार कीजियेगा ! आदरणीय रश्मि दीदी के इस पुनीत प्रयास को दिल से नमन करता हूँ कि वो नए-नए लेखकों का उत्साह वर्धन करने का ये पवित्र और जिम्मेदार कर्म के लिए ! आभार !!

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  2. अच्छी लगी ये अभिव्यक्ति

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  3. ..सुन्दर अभिव्यक्ति
    नवरात्र के बहुत बहुत हार्दिक शुभकामनाएँ

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  4. सुन्दर रचना
    यही तो है जीजिविषा

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  5. Bahut krantikari soch se utpann rachna.Badhai.

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  6. कविता में कवि की अभिव्यक्ति उत्कर्ष पर है।

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  7. सुन्दर भावमय उत्साह से भरपूर। पाँडेय जी को बधाई।

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  8. जीवन को इसी उत्साह की आवश्यकता है ...!

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  9. रश्मि प्रभा जी वटवृक्ष पर पुनरागमन को प्रकाशित करने के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया !!
    बुखार के चलते मैं आपको समय से शुक्रिया अदा ना कर सका जिसके लिए माफ़ी चाहता हूँ।

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