स्याह रात रहती है अकेली,
ढूंढती है अपना साया -पूरे चाँद को!
सन्नाटा उसके कानों में बोलता है,
अकेली रात सिसकती है ,
चांदनी को तरसती है......
पर अक्सर मैं ही मिल जाती हूँ
और उसके संग अनजानी दिशा में खो जाती हूँ........
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!! पुनरागमन !!
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वर्षों से दबा हुआ ,
एक जीवित ,
मृत व्यक्ति ,
उठ खड़ा हुआ,
वह आज ,
कर रहा था ,
वर्षों से अपनी ,
चेतना का विकास ।
परिपक्व हो उठा ,
नहीं जरुरत उसको ,
किसी के मार्गदर्शन की ,
करके प्रण वह ,
जीवित व्यक्ति हो
उठा है , पुनः जीवित ,
अबकी कर देगा
तहस - नहस , उन लोगों को
जिसने , जीते जी
कर दिया , उसको
मृत सदृश ।
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अकेला कलम .
बहुत सुन्दर रचना ! आत्मविश्वास से सरोबार ! बधाई स्वीकार कीजियेगा ! आदरणीय रश्मि दीदी के इस पुनीत प्रयास को दिल से नमन करता हूँ कि वो नए-नए लेखकों का उत्साह वर्धन करने का ये पवित्र और जिम्मेदार कर्म के लिए ! आभार !!
ReplyDeleteअच्छी लगी ये अभिव्यक्ति
ReplyDeleteachchhi lgi rachna
ReplyDeletenice one...
ReplyDelete..सुन्दर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteनवरात्र के बहुत बहुत हार्दिक शुभकामनाएँ
सुन्दर रचना
ReplyDeleteयही तो है जीजिविषा
Bahut krantikari soch se utpann rachna.Badhai.
ReplyDeleteकविता में कवि की अभिव्यक्ति उत्कर्ष पर है।
ReplyDeleteसुन्दर भावमय उत्साह से भरपूर। पाँडेय जी को बधाई।
ReplyDeleteजीवन को इसी उत्साह की आवश्यकता है ...!
ReplyDeletewell said
ReplyDeletebadhai kabule
sundar rachna!
ReplyDeleteरश्मि प्रभा जी वटवृक्ष पर पुनरागमन को प्रकाशित करने के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया !!
ReplyDeleteबुखार के चलते मैं आपको समय से शुक्रिया अदा ना कर सका जिसके लिए माफ़ी चाहता हूँ।