तुम्हारी ख़ुशी ही चाही थी , आज भी वही चाहा है........ तुम्हें फुर्सत हो या ना हो,
दिल ने बस यही कहा है ...
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पूरा नाम : प्रियंका चित्रांशी
शिक्षा : स्नातक, लाईसेनसिएट सर्टिफ़ाइड (भारतीय बीमा संस्थान, मुंबई ), ऍम0 बी० ए0 ( सिमबिओसिस, पुणे )
व्यवसाय : एक प्राइवेट संस्था में प्रोसेस एनालिस्ट के पद पर कार्यरत
निवास स्थान : लखनऊ
अदब, तहजीब, नजाकत नफासत के शहर लखनऊ में ही आँखे खोली. इसी शहर में प्राथमिक शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा ग्रहण की,कविता का शौक कब विकसित हुआ, ठीक से याद नहीं। पर हमेशा से कविताओ ने आकर्षित किया। हमेशा पढ़ते- पढ़ते कॉपी के पीछे के पन्नो पर कुछ लिख दिया करती और कुछ नजदीकी दोस्तों को सुनाया करती थी। वो सुनते और वाह - वाह करते, उनकी प्रशंसा मन में अपार आनंद भर देती ......बस इसी तरह शुरुवात हुई लेखन की। लिखा तो बहुत पर कभी अपनी रचनाओ का संकलन नहीं किया ... कबाड़ी के हाथो बिकी उस नोटबुक्स पर लिखी मेरी कृतियों पर किसी ने समोसे खाए होंगे, तो किसी ने भेलपुरी। वक़्त के साथ ये शौक भी दम तोड़ चुका था, मेरी लेखनी भी सृजन कर सकती हैं पूरी तरह भूल चुकी थी पर वक़्त ने फिर करवट ली ...... एक खूबसूरत इत्तफाक हुआ, डॉ0 कुमार विश्वास से मुलाकात हुई ....छोटी सी मुलकात, गहरा असर डाल गई, दबा हुआ शौक अक्षरों के रूप में बाहर निकला और मेरी लेखनी को गति मिल गई। ब्लॉग की शुरुवात की और लोगों का प्रोत्साहन मिला . इस प्रोत्साहन ने हौसला दिया और आत्मविश्वास भी .ब्लॉग के अतिरिक्त हिन्दयुग्म और परिकल्पना ने मेरी रचनाओ का प्रकाशन किया. तो कुछ इस तरह हुई लेखन की शुरुवात.
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ज़रा संभल के ...
यूँ अचानक
मिले तुम,
फिर अक्सर
मुलाकाते हुई.
हाँ - हाँ
काम के
सिलसिले में ही
बस!
काम की ही तो
बातें हुई
काम ही काम में
और बातों ही बातों में
कुछ बुना
हमारे बीच
वो बंधन नहीं
था कोई
पर नाज़ुक था बहुत
धड़कन की तरह
एक रोज़
कुछ कहा मैंने
शायद कोई
आघात किया
तुम पर
अनजाने में
बेइरादा
चल दिए तुम
रुके ही नहीं
दौड़ी पीछे -पीछे
मैं तुम्हारे
तुम जो सुन लेते एक बार
तो कहाँ जा पाते दूर
कोई कमिटमेंट नहीं मांगती
बस! इतना कहती
" सुनो! आगे राहे पथरीली हैं
जरा संभल के "
() प्रिया
कोई कमिटमेंट नहीं मांगती
ReplyDeleteबस! इतना कहती
" सुनो! आगे राहे पथरीली हैं
जरा संभल के "
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ...
कोई कमिटमेंट नहीं मांगती
ReplyDeleteबस! इतना कहती
" सुनो! आगे राहे पथरीली हैं
जरा संभल के "
यही तो प्रेम है जहाँ बिना कमिटमेंट के सम्बन्ध निभाये जाते हैं।
जरा संभाल के ...
ReplyDeleteआगे राह पथरीली है ...
अच्छी कविता ...!
Lovely lines...
ReplyDeleteLovely lines...
ReplyDeleteहा हा हा क्या लिखूं?ज़िक्र करूं क्या वापस उन्ही पंक्तियों का...जिसे सबने दोहराया है.
ReplyDeleteप्यार,दोस्ती,मानवता,अपनत्त्व सबकी नीव है ये चंद शब्द और उसमे छिपी अपने के लिए चिंता,शुभ कामना कि ...
जरा संभाल के
आगे राह पथरीली है ...
beautifully composed,
ReplyDeletekavita me najdikion ki bhavnaye apne liye kam uske liye jyada, kuch kashmakash si bat kehti panktiyan
"ki apne liye nhi, aap hi ke liye to mene, aapko aawaj di he, ki jara sambhal ke," ek bahut ji najuk mod par aapne, kavita ko chhoda,"
aapko sadhuwad , yun hi likhte rahiye...
अच्छी कविता ...!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति !
ReplyDeleteसुन्दर शब्द रचना ।
ReplyDeletebahut sunder
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