कड़ी धूप में भी ,
जिजीविषा की चाह -
हौसले बुलंद कर जाती है
और वृक्षों की छाया आगे बढ़ने का संबल बन जाती है
रश्मि प्रभा
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परिचय:
नाम : रेखा श्रीवास्तव
जन्म: ०७/०७/१९५५
स्थान: उरई (जालौन)
शिक्षा : एम. ए. (राजनितिशाष्ट्र, समाजशास्त्र ), एम. एड. डिप्लोमा इन कम्प्यूटर साइंस .
लेखन बहुत बचपन से शुरू किया था शायद १० साल की उम्र से. प्रकाशन भी स्तरीय पत्रिकाओं साप्ताहिक हिंदुस्तान , धर्मयुग , माधुरी , सरिता , नवनीत , कादम्बिनी aur मनोरमा से आरम्भ किया . फिर एक विराम. अभिव्यक्ति हुई तो डायरी तक सीमित हो गयी. घर और दायित्वों में सब गडमड हो गया. फिर मिला ब्लॉग का एक जरिया और संचित निधि सहित सब कुछ इसी पर आने लगा.
सम्प्रति आई आई टी कानपुर में मशीन अनुवाद प्रोजेक्ट में शोध सहायक के पड़ पर कार्य कर रही हूँ. बहुत तो भागीदारी नहीं हो पति फिर भी ब्लॉग कि दुनियाँ में अपनी उपस्थिति दर्ज करती रहती हूँ।सम्प्रति आई आई टी कानपुर में मशीन अनुवाद प्रोजेक्ट में शोध सहायक के पड़ पर कार्य कर रही हूँ. बहुत तो भागीदारी नहीं हो पाती,फिर भी ब्लॉग कि दुनियाँ में अपनी उपस्थिति दर्ज करती रहती हूँ.
=================================================मानवता शेष रहेगी!
हाँ , मैं मानव हूँ,जुड़ा रहा जीवन भरमानवीय मूल्यों से.कभी बंधा नहीं,अपने और परायों की सीमा मेंजो हाथ बढेथाम लिया,शक्ति रही तोकष्ट से उबार लिया.बहुत मिलेवक्त के मारे हुए,अपनों से टूटे हुए,जो दे सकामन से, धन से या संवेदनाओं से प्रश्रयउबार कर लाया भीलेकिन पार लगते हीसब किनारे हो लिए.फिर चल पड़े कदमऔर गिरे , टूटे हुओं की तरफपर तब तकढोते ढोतेअपने कदम लड़खड़ाने लगेबहुतों का बोझ ढोतेकंधे झुक गए थे,हौंसले भी हो रहे थे पस्तएक दिन जरूरत थीतो कोई नहीं था.अपने आँख घुमा करदूसरी ओर चल दिए,परायों की तो कहना क्या?आँखें भर आयींमानवता की कीमतक्या इस तरह से चुकाई जाती है?तभीहाथ कंधें पर धरासिर उठा कर देखामेरी बेटी खड़ी थीपापा मैं हूँ न,चिंता किस बात की?आपकी ही बेटी हूँआपकी अलखआगे भी जलती रहेगी.फिर कोई और आयेगाइस मशाल को थामनेये जब तक धरती हैऐसे ही चलती रहेगीकभी मानवता न मिटेगी.
() रेखा श्रीवास्तव
09307043451
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sundar rachna!
ReplyDeleteraahein sada raushan rahengi!manavta kabhi na mitegi!
regards,
आपकी अलख
ReplyDeleteआगे भी जलती रहेगी.
फिर कोई और आयेगा
इस मशाल को थामने
ये जब तक धरती है
ऐसे ही चलती रहेगी
कभी मानवता न मिटेगी.
सकारात्मक सोच के साथ एक आशा का संचार करती सुन्दर रचना।
bahot sunder likhin hain aap.
ReplyDeleteखूबसूरत भाव...सार्थक चिंतन !!
ReplyDelete__________________
'शब्द-सृजन की ओर' पर आज निराला जी की पुण्यतिथि पर स्मरण.
achchhi kavita .bahut khub ......
ReplyDeleteजो दे सका
ReplyDeleteमन से, धन से या संवेदनाओं से प्रश्रय
उबार कर लाया भी
लेकिन पार लगते ही
सब किनारे हो लिए.
फिर चल पड़े कदम
और गिरे , टूटे हुओं की तरफ
पर तब तक
ढोते ढोते
अपने कदम लड़खड़ाने लगे
this is my true life experience
well panned
अच्छी कविता है.. सकारात्मक सोच !
ReplyDeleteमानवता की मशाल सदा रोशन रहेगी.... सुन्दर प्रस्तुति..
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ।
ReplyDeleteमानवता की मशाल सदा प्रज्ज्वलित रहनी चाहिए...आशावादिता की ओर प्रेरित करने वाली सुंदर कविता।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर सकारात्मक रचना। रेखा जी को बहुत बहुत शुभकामनायें।
ReplyDeleteयथार्थ की भावपूर्न अभिव्यक्ति जो पहले निराशा पैदा करती है फिर हौसलों की परवाज़ निराशा को उड़ा ले जाती है, रचनाकारा को बधाई।
ReplyDeleteरचना बहुत सुन्दर लगी, आभार.
ReplyDeletereharding rekha mem ,
ReplyDeletenamaskaar !
sunder rachnaha sunder abhivyakti ,
badhai !
saadar!