जो आँधियों में
दूसरे के दर्द से रास्ता निकालते हैं
उन्हें ज़िंदगी मज़ाक लगती है!
वे नहीं समझते उनकी तकलीफ
जो रात के घने अँधेरे में उठकर शब्द टटोलते हैं,
'शब्द' जो उनके दर्द का गवाह बन सकें,'
शब्द' जो दूर से किसी को ले आए
शब्द' जो रातों का मरहम बन जाए ......
दूसरे के दर्द से रास्ता निकालते हैं
उन्हें ज़िंदगी मज़ाक लगती है!
वे नहीं समझते उनकी तकलीफ
जो रात के घने अँधेरे में उठकर शब्द टटोलते हैं,
'शब्द' जो उनके दर्द का गवाह बन सकें,'
शब्द' जो दूर से किसी को ले आए
शब्द' जो रातों का मरहम बन जाए ......
रश्मि प्रभा
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शब्दों से दोस्ती
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न जाने क्यूं,
शब्दों से मेरी दोस्ती नहीं हैं...
इसीलिये शायद
कह पाने में असमर्थ होती हूँ
अपनी बात
हर बार...
और यही असमर्थता
खींच लाती है मुझे,
इस कागज़ की ओर...
और अपनी कलम उठा आ जाती हूँ
हर वो बात कहने
अपनी उँगलियों से
जो मेरी जुबां कह नहीं पाती...
पूजा
बेहद खूबसूरती से दर्द को उकेरा है।
ReplyDeletebahut hi sundar...
ReplyDeleteजुबान से नहीं कह पाने की असमर्थता हमें कागज और कलम तक पहुंचा देती है ...
ReplyDeleteऔर जब हम कलम से कहने से डरने लगते हैं तो शब्द भी खो जाते हैं ...
bahutkhoobsurti se aapne apni unglion se ya sudnar kavita/vichar
ReplyDeletelikhe/ badhai
इस बार मेरे नए ब्लॉग पर हैं सुनहरी यादें...
ReplyDeleteएक छोटा सा प्रयास है उम्मीद है आप जरूर बढ़ावा dengi...
कृपया जरूर आएँ...
सुनहरी यादें ....
कागज़ और कलम बहुत कुछ कह जाते हैं
ReplyDeleteसुन्दर रचना
bahot sunder likhi hain aap.
ReplyDeleteजुबां हर बात बोल नहीं पाती और हर दर्द जो हम पी नहीं पाते , उसे ही तो कागज कलम लेकर उन निवस्त्र कागजों पर उतार देते है और वे सब तक पहुँच कर उस दर्द कोबाँट लेते हैं.
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeletemeri rachna ko yaha samahit karne evam us par itni pyaari kavita dwara utaar dene ke liye abhut bahut dhanyawaad...
ReplyDeleteशब्द किसी दोधारी तलवार के समान होते हैं. तीखे कटु वाक् बाण किसी का भी दिल छलनी छलनी कर देते हैं पर वही शब्द शहद से मीठे मधुर वाणी में ढल कर जलते हुए कलेजे पर ठंडक/ मरहम का लेप धर देते है. अगर हम शब्दों को मरहम की तरह प्रयोग करें तो वही उसकी सार्थकता होगी. गहन संवेदनाओं की मर्मस्पर्शी और संवेदनशील अभिव्यक्ति. आभार.
ReplyDeleteसादर
डोरोथी.