माँ , तुमने महिषासुर का संहार किया
नौ रूपों में अपने
नारी की शक्ति को समाहित किया !
अल्प बुद्धि - सी काया दी
वक्त की मांग पर तेज़
जब-जब अत्याचार बढ़ा
तुमने काया कल्प किया !
पर यह महिषासुर हर बार क्यूँ सवाल बन खड़ा होता है ?
()रश्मि प्रभा







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हे महिषासुरमर्दिनी ! क्या महिषासुर मारा गया था ?
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हे महिषासुरमर्दिनी ! क्या महिषासुर मारा गया था ?
लगता तो नहीं.....
तो आश्विन शुक्ल पक्ष/महाल्या से विजयदषमी /नवरात्र/नवदुर्गा/
शक्ति की उपासना/विजय पर्व
सब यों ही हैं माँ ?..?..?
गली-कूचे,राजपथ, धर्मसभा ,धर्मरथ;
बाढ़ग्रस्त इलाके या सूखाग्रस्त मैदान
खुली सड़क,मकान या धूम्रसकट यान;
निठारी से अजमेर घूमता है काल
बेर-कुबेर, शाम -सबेर रात गए या ब्रह्मबेर
महिष कहाँ नहीं घूमता....! और ..... एकवचन नहीं रहता
दुर्भाग्य का उत्कर्ष..........!
कि उड़ती चिड़िया के पर गिनने वाले महारथियों की दृष्टि भी -
उन्हें जान नहीं पाती,पहचान नहीं पाती.......
पर तुम्हारी दृष्टि उन पर कैसे नहीं जाती ???
माँ ...! क्या अब तुम हर बरस धरती पर नहीं आती ???

-‘मैं क्यों आऊँ ? तुम बताओ।
सारी सामग्री जुटाते हो ,कलश बिठाते हो , मंडप सजाते हो , दोनों हाथों से अर्थ लुटाते हो
पर शक्ति की उपासना तो नहीं करते
पाप की ग्लानि से जब स्वयं नहीं श्रते तो दूसरों पर उँगली क्यों उठाते हो ?
सातवें सुर से आगे जाकर रात-रात श्र चिल्लाते हो
और यह भ्रम पाले बैठे हो कि मुझे बुलाते हो !
महिष सदा पुनर्जीवित होता है - तुम्हे नहीं पता ?
और वह हर एक के अंदर है।
अब महिष तो महिष को मारने से रहा ........!
विजय का पर्व मना सको ,उसके लिए जो शक्ति अपेक्षित है
उसे अपने अंदर जगाओ ,फिर मुझे बुलाओ।
जब मैं न आने का दुस्साहस जुटा नहीं सकती तो महिषासुर क्या है!
तुम शस्त्र उठाओ इसके पहले, वह स्वयं आत्मदाह करेगा
......... विश्वास नहीं होता ?
जब करोगे नहीं , नहीं होगा।

()नीलम प्रभा
डीपीएस, पटना

3 comments:

  1. sundar, sach, ab gahr gahr me jagha jagha , rakshash baith ehue hain,
    maa aayegi to bachega kaun, samul sharshti ka nash abashyambhavi he

    sundar kavita

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  2. महिष कहाँ नहीं घूमता और एक वचन नही होता ....
    जब तक विश्वास नहीं करोगे , नहीं होगा ....

    इस कविता की गहराई मस्तिष्क को झिंझोड़ रही है ...
    बहुत शानदार .. !
    असत्य पर सत्य के विजय पर्व की हार्दिक शुभकामनायें ...

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