रेत पर निशान तुम्हारे पैरों के
मैं चलती रही उसी पे अनवरत
अब है जाना,
ये निशान मेरे हो गए हैं !
अनुसरण किया था जिनकी राहों का
उनकी राहें अब
मेरी हो गई हैं,
साईं तुझको कहूं या कहूँ ख़ुद को
मैं तो जन्मों से साईंमय हो गई !
रश्मि प्रभा
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यज्ञ
यज्ञ भीतर चल रहा है
श्वास समिधा बन संवरती
प्रीत जगती की सुलगती
मोह कितना छल रहा था,
सहज सुख अब पल रहा है !
मंत्र भी गूजें अहर्निश
ज्योति माला है समर्पित
कामना ज्वर जल रहा था,
अहम मिथ्या गल रहा है !
अनवरत यह यज्ञ चलता
प्राण दीपक नित्य जलता
पास न कुछ हल रहा था,
उम्र सूरज ढल रहा है !
खोजता था मन युगों से
छल मिला स्वर्ण मृगों से
व्यर्थ भीतर मल रहा था
परम सत्य पल रहा है !
चाह थी नीले गगन की
मृत्यू देखी हर सपन की
स्नेह घृत भी डल रहा था
द्वैत अब तो खल रहा है !
अनिता निहालानी
पिछले दो दशकों से भी अधिक समय से असम में निवास, पहले उत्तरप्रदेश में पली बढ़ी . तीन पुस्तकें कविताओं की प्रकाशित हुई हैं.इन्टरनेट पर अभी कुछ ही दिनों से लिखना शुरू किया है.
सुन्दर रचना ..
ReplyDeleteयज्ञ भीतर चल रहा है..अद्भुत
adbhut hai yagya... bahut hi achhi rachna...lay aisi ki klisht shabd (mere liye) hone ke baawazood rachna jabaan par fisalti gayi... :)
ReplyDeleteसुन्दर रचना ..
ReplyDeleteअंतर्मन के कहीं भीतर विराजती पवित्रस्थली उपासना के उजास से आलोकित है, जबकि बाहर अंधेरों की बयार चल रही है, जिसके मायाजाल में उलझे मन की बैचेनी और व्यथा को बेहद खूबसूरती से उकेरा गया है.आभार.
ReplyDeleteसादर,
डोरोथी.
बहुत ही खूबसूरती से हर शब्द प्रस्तुत हुआ है इस रचना में अनुपम ...।
ReplyDeleteअनवरत यह यज्ञ चलता
ReplyDeleteप्राण दीपक नित्य जलता
पास न कुछ हल रहा था,
उम्र सूरज ढल रहा है ।
इस सुंदर और भावमयी रचना को प्रस्तुत करने के लिए बघाई।
अनीता जी तो बेहतरीन कविता लिखी है ... जितना सुन्दर भाषा का प्रयोग है ... उतने ही गहरे भाव ...
ReplyDeleteऔर दीदी, आपकी कविता भी बहुत सुन्दर है ... समर्पण के भाव से भरपूर ..
एक ही शब्द -बेहतरीन
ReplyDeleteWah! ati sundar
ReplyDeleteअनीता जी की रचना बहुत अच्छी रही.
ReplyDeleteऔर आपने भी बहुत अच्छा लिखा है.
खोजता था मन युगों से
ReplyDeleteछल मिला स्वर्ण मृगों से
भीतर चलते यज्ञ से आत्मिक शुद्धि का एहसास तो होगा ही
बहुत सुन्दर रचना
बहुत ही भावभरी रचना।
ReplyDeleteअनिताजी की अप्रतिम कविता से यज्ञ की पवित्रता का अहसास होता है | बधाई |
ReplyDeleteअद्भुत यज्ञ ..
ReplyDeleteचाह थी नीले गगन की
मृत्यू देखी हर सपन की
स्नेह घृत भी डल रहा था
द्वैत अब तो खल रहा है
बहुत सुन्दर रचना ..हर पंक्ति गहन अर्थ वाली
"चाह थी नीले गगन की
ReplyDeleteमृत्यू देखी हर सपन की
स्नेह घृत भी डल रहा था
द्वैत अब तो खल रहा है"
आदरणीय दीदी,
अनीता जी की इस कविता ने अनायास ही महान छायावादी कवियित्री महादेवी वर्मा जी की याद जेहन में ताजा कर दी है.एक यज्ञ जो निरंतर जारी है वही जीवन को दिशा देता है.ख़ूबसूरत रचना .
सबसे महत्त्व पूर्ण तो अंतस का यग्य है ... लाजवाब रचना है ...
ReplyDeleteसुन्दर रचना अन्तस का यग्य ऐसे ही चलता रहे। अनीता जी को बधाई।
ReplyDeleteसुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ शानदार रचना लिखा है आपने! बधाई!
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