माँ - सुबह का अजान
माँ- रात की लोरी
माँ- जब कहीं कोई राह नहीं तो माँ एक हौसला
माँ कितनी भी कमज़ोर हो जाये , ऊँगली नहीं छोडती
हर दिन नज़र से उतार
एक नया दिन दे जाती है.......
दिखे ना दिखे
माँ साथ चलती है ..........
रश्मि प्रभा
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माँ की बाँहों में
`सुबह की अलसाई नींदबिस्तर से उतरती हैडगमगाते पैरों की मानिंदलेती है टेकआँख खुलने की सच्चाईआईने पर पसर जाती हैऔररौशनदान सेसूरज की पेशीपिता की अदालत मेंजिंदगी भर देता हैऔरएक एक करबेपरवाह होने की वजह सेसिमट जाती हैमेरी उम्मीदमाँ की बाँहों मेंजो किपहली साँस से अनवरतमुझमे जान फूंकती रही हैऔर फिरमाँ की हँसी की डोर थामेचढ़ता हूँ मैंआसमान मेंऊँचा और ऊँचाउस पतंग की तरहजिसकी जिंदगी शाम होने पर भीआसमान से नहीं उतरतीजन्म - १० जनवरी १९७६ , जन्म स्थान - ग्राम - नैपुर, जिला - बेगुसराय , बिहार . शिक्षा - स्नातकोत्तर , पीएचडी .कविता तो छठी कक्षा से ही लिख रहा हूँ मगर छपी एक भी नहीं है . इनदिनों ही एक -एक कर अपनी कविता को अपने ब्लॉग और फेसबुक के जरिये सार्वजनिक कर रहा हूँ. अब यह आपको बताना है कि मैं अपनी कोशिश में कहाँ तक सफल रहा हूँ.
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Om Rajput
Director
Akshara Residential Public School
Rajput Nagar, Hajipur (Vaishali)
Mo- +9190-0638-7400/9334548360
बहुत सुन्दर कविता.. भावुक कर गई.. आप बेहतरीन लिखते हैं..
ReplyDeleteदीदी द्वारा वटवृक्ष पार डाली गई ओम राजपूत जी की कविता का शीर्षक "माँ की बाँहों में"स्वयं सबकुछ कह जाता है.
ReplyDeletetotally speechless...
ReplyDeletejust awesome... both
bahut hi safal.......... apne dil ki bat kah paye ho ...... fir bhi abhi bahut kuch kahna hai aapko ........ shukriya hamare sath share karne ka .......... maa to maa hi hoti hai
ReplyDeleteदिखे ना दिखे
ReplyDeleteमाँ साथ चलती है ....
दी, क्या कह दिया आपने ...क्योंकि उसी से तो ये सांसे चलती हैं ...बहुत ही भावमय करते शब्द
माँ की हँसी की डोर थामे
चढ़ता हूँ मैं
आसमान में
ऊँचा और ऊँचा
ओम जी बधाई हो इस सुन्दर रचना के लिये ....।
बहुत सुन्दर रचना ....आपका चयन कबीले तारीफ़ है
ReplyDeleteचढ़ता हूँ मैं
ReplyDeleteआसमान में
ऊँचा और ऊँचा
उस पतंग की तरह
जिसकी जिंदगी शाम होने पर भी
आसमान से नहीं उतरती
इन शब्दो मे सारी व्यथा उतर आयी……………बेहद उम्दा प्रस्तुति।
ओम राजपूत जी ने एक बहुत सुन्दर और भावुक कर देने वाली कविता लिखी है ... दरअसल माँ एक ऐसी शख्सियत है जिसके बारे में सोचते ही हर कोई भावुक हो जाता है ... और उसपर एक सुन्दर कविता ... आहा क्या कहने ..
ReplyDeleteआपने सही कहा है दीदी माँ भले पास न हो पर उनका आशीर्वाद हर कदम साथ होता है ..
Om jee........"maa" ke liye likha gaya ek shandaar rachna....aapke dwara hame mila...:)
ReplyDeletedhanyawad!!
waise ek baat aur , mera hometown bhi begusarai hai.......:)
माँ की हँसी की डोर थामे
ReplyDeleteचढ़ता हूँ मैं
आसमान में
ऊँचा और ऊँचा
उस पतंग की तरह
जिसकी जिंदगी शाम होने पर भी
आसमान से नहीं उतरती
मां का आशीषमय स्पर्श किसी अमूल्य निधि की तरह हमारे जीवन में सदैव बना रहता है चाहे वो भले साथ न हो. दिल की गहराईयों को छूने वाली, गहन संवेदनाओं की बेहद मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति. आभार.
सादर
डोरोथी.
bahut hi bhavuk rachna hai
ReplyDeletebahut achha likha hai aapne
kabhi yaha bhi aaye
www.deepti09sharma.blogspot.com
माँ की हँसी की डोर थामे
ReplyDeleteचढ़ता हूँ मैं
आसमान में
ऊँचा और ऊँचा
उस पतंग की तरह
जिसकी जिंदगी शाम होने पर भी
आसमान से नहीं उतरती
सच मे माँ पर जितना लिखा जाये कम लगता है। बहुत अच्छी रचना है। ओम जी को बधाई।
kafi achchi likhi hai aapne.
ReplyDeleteमाँ दिखती नहीं , मगर साथ चलती है ...
ReplyDeleteमाँ एक डोर जिसके सहारे पतंग से उड़ाते हैं हम ...
बहुत अच्छी कविता !
वन्दे मातरम , धन्यवाद !
ReplyDeleteमाँ की हँसी की डोर थामे
ReplyDeleteचढ़ता हूँ मैं
आसमान में
ऊँचा और ऊँचा
उस पतंग की तरह
जिसकी जिंदगी शाम होने पर भी
आसमान से नहीं उतरती
....maa kee mamtamayee prastuti bhavvibhor kar gayee....aabhar
माँ तुझे सलाम ... बेहतरीन रचनाएँ ..
ReplyDeleteNi:Shabd.....!
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