अपने जब गैर बन जाते हैं ,तो पहले होता है गम ,
फिर मिलता है एक आधार ,जीवन को समझने का,
जाने कितनी गुथ्थियाँ सुलझ जाती हैं ,एक नज़रिया मिलता है जानने का ,
अपनों की पहचान क्या है !
फिर मिलता है एक विस्तार , अनगिनत अनजाने चेहरे अपनेबहुत अपने बन जाते हैं........
रश्मि प्रभा
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सत्य
सत्य क्या है?
सत्य यानी जो है समकालीन
जो हमने देखा है,
जो हमने समझा है या हम जी रहे हैं
शायद वही सत्य हैं....
सत्य यानी जो गहन हैं,
जिसे किसी कालखंड से कोई भी
लेनदेन नहीं
जो समझ में आता है या फिर
आता ही नहीं !
फिर भी -
जिसका अहसास होता है हमें
जिसे हम बयाँ नहीं कर सकतें
मगर
हमारे बीच जो है, हमारे साथ है
हमें हर पल सीखाता है, गिराता है कभी
और आगे भी बढाता है
सोचने-समझाने पर मजबूर करता है
फिर भी सत्य हैं
असत्य भी तो सत्य हैं
क्यूंकि उसकी उपस्थिति भी सत्य है
आख़िर ये सत्य क्या है?
जो हर पल हमें साथ देकर भी
हम से अलिप्त रहें
निराकार अस्तित्त्व के साथ
पलपल हमें डराता रहे
श्रद्धा, भक्ति और विश्वास को दिखाकर
अपनी मनमानी करें
सत्य, सत्य है या भ्रामक?
ये भ्रामकता के बीच भी अपनी
आँखें दिखाता है हमें
नींद में भी सत्य है और सपने में भी
क्यूंकि सपने कभीकभार सच बन जाते हैं,
तब यही सत्य हंसता हैं
हमारे सामने और साबित करता है
खुद को
मेरा लिखना, आपका पढ़ना भी
सत्य है...
सत्य यानी तुम, सत्य यानी मैं
और, हमारे अंदर रही वह आत्मा
जो ईस सत्य पर सोचने को मजबूर
करता है....
यही सत्य हैं..... कि -
सत्य है, मैं हूँ और
तुम हो....!!
पंकज त्रिवेदी
यही सत्य हैं..... कि -
ReplyDeleteसत्य है, मैं हूँ और
तुम हो....!!
गंभीर चिन्तन मे जीवन दर्षन का सत्य। पंकज जी को बधाई इस रचना के लिये। रश्मि जी आप गहरे सागर से मोटी निकाल कर लाने की क्षमता रखती हैं। शुभकामनायें।
यही सत्य हैं..... कि -
ReplyDeleteसत्य है, मैं हूँ और
तुम हो....।
गहन भावों के साथ बेहतरीन शब्द रचना, प्रस्तुति के लिये रश्मि जी का आभार ।
behad gehrai se satye ko praibhashit kiay he aapne apni is rachna me
ReplyDeletebadhai
जीवन दर्शन देती यह कविता उच्च कोटि की है.. सुन्दर रचना..
ReplyDeleteगंभीर जीवन दर्शन ...अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteसत्य बोलो गत्य है।
ReplyDeleteसत्य हर युग हर काल हर पल मे सत्य ही होता है…………सत्य हमेशा एक ही होता है और सत्य का होना ही जरूरी है फिर उसका आकार हो ना हो क्योंकि बिना आकार के भी भासता है और सत्य कभी भ्रामक नही होता दिशा प्रदान करता है……………अगर सत्य को जान लिया तो खुद को जान लिया और खुद को जान लिया तो समझिये ब्रह्म को जान लिया क्योंकि अन्तिम सत्य तो वही है।
ReplyDeletebehtareeen............:)
ReplyDeleteगहन दार्शनिक चिंतन से उपजी एक सार्थक कविता...बधाई।
ReplyDeleteयही सत्य हैं.....
ReplyDeleteअसत्य भी तो सत्य हैं
ReplyDeleteक्यूंकि उसकी उपस्थिति भी सत्य है
आख़िर ये सत्य क्या है?
प्रणाम !
ऊपर कि पंक्तिया आप को सादर , कितनी गूढ़ है . इक आध्यात्मिक भाव प्रदान वाली अच्छी रचना बोध तत्व लिए है कि ''
यही सत्य हैं..... कि -
सत्य है, मैं हूँ और
तुम हो....!!
साधुवाद
सादर 1
--
सह- अस्तित्व की विद्यमानता ही सत्य है.. और आपने क्या खूब कहा-"
ReplyDeleteयही सत्य हैं..... कि -
सत्य है, मैं हूँ और
तुम हो....!!"
सम्पूर्ण सत्य का सार आपकी उक्त पंक्तियों में छुपे दर्शन स्पष्ट हो गया.. "तुझमे मैं और मुझमे तू.." इतने गहन चिंतन को इतनी सहजता से व्यक्त पाना, ये आपकी ही खूबी है...वाह ! साधुवाद श्री पंकज जी का ! आदरणीया रश्मि दी का भी आभार इतनी चिंतनशील रचना पढवाने हेतु. प्रणाम !
एक दर्शन है रचना में.
ReplyDeleteअतिसुन्दर भावाव्यक्ति , बधाई के पात्र है
ReplyDeleteबहुत ही खुबसूरत रचना है,...हमें पढवाने के लिए धन्यवाद ..
ReplyDelete"वटवृक्ष" के सभी दोस्तों की पवित्र आत्मा को मेरा नमन,
ReplyDeleteआप सब ने मेरी इस कविता के "सत्य" को जाना और अपने विचार रखें, मै दिल से आभारी हूँ | खासकर रश्मिजी का भी, जिन्हों ने परखा |
bahut sundar rachnaa... Satya Asatya ke do paato ke beech chalti yah kavita sach par manthan karti hai... aur ujaagar karti hai satya yahi kee mai aur tum .. yaha saty nihit hai... bahut sundar rachnaa hai... Rashmi ji isey share karne ke liye dhanyvaad..
ReplyDeletegahan bhaav!
ReplyDeletesundar rachna!
satya satya hai, satya ko pramaan ki zarurat nahin, bilkul satya hai yah. bahut achha likha hai, badhai pankaj bhai.
ReplyDeleteपंकज जी को गंभीर लखन के लिए बधाई. आदरणीया रश्मि जी सागर में से मोती निकालने का ज़ो पुनीत कार्य कर रही हैं वह प्रशंसनीय है. उनका सम्पादन.....भूमिका लेखन ......विषय चयन......और चित्र संयोजन ......सब कुछ अपने अनूठेपन के साथ पाठकों को आकर्षित करने में सक्षम है ......मेरा सादर नमन उनकी गरिमामयी लेखनी को.
ReplyDeleteपंकज जी को गंभीर लखन के लिए बधाई. आदरणीया रश्मि जी सागर में से मोती निकालने का ज़ो पुनीत कार्य कर रही हैं वह प्रशंसनीय है. उनका सम्पादन.....भूमिका लेखन ......विषय चयन......और चित्र संयोजन ......सब कुछ अपने अनूठेपन के साथ पाठकों को आकर्षित करने में सक्षम है ......मेरा सादर नमन उनकी गरिमामयी लेखनी को.
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