अपने जब गैर बन जाते हैं ,तो पहले होता है गम ,
फिर मिलता है एक आधार ,जीवन को समझने का,
जाने कितनी गुथ्थियाँ सुलझ जाती हैं ,एक नज़रिया मिलता है जानने का ,
अपनों की पहचान क्या है !
फिर मिलता है एक विस्तार , अनगिनत अनजाने चेहरे अपनेबहुत अपने बन जाते हैं........
यही होता है सत्य !!!

रश्मि प्रभा





=======================================================================

सत्य

सत्य क्या है?
सत्य यानी जो है समकालीन
जो हमने देखा है,
जो हमने समझा है या हम जी रहे हैं
शायद वही सत्य हैं....
सत्य यानी जो गहन हैं,
जिसे किसी कालखंड से कोई भी
लेनदेन नहीं
जो समझ में आता है या फिर
आता ही नहीं !
फिर भी -
जिसका अहसास होता है हमें
जिसे हम बयाँ नहीं कर सकतें
मगर
हमारे बीच जो है, हमारे साथ है
हमें हर पल सीखाता है, गिराता है कभी
और आगे भी बढाता है
सोचने-समझाने पर मजबूर करता है
फिर भी सत्य हैं
असत्य भी तो सत्य हैं
क्यूंकि उसकी उपस्थिति भी सत्य है
आख़िर ये सत्य क्या है?
जो हर पल हमें साथ देकर भी
हम से अलिप्त रहें
निराकार अस्तित्त्व के साथ
पलपल हमें डराता रहे
श्रद्धा, भक्ति और विश्वास को दिखाकर
अपनी मनमानी करें
सत्य, सत्य है या भ्रामक?
ये भ्रामकता के बीच भी अपनी
आँखें दिखाता है हमें
नींद में भी सत्य है और सपने में भी
क्यूंकि सपने कभीकभार सच बन जाते हैं,
तब यही सत्य हंसता हैं
हमारे सामने और साबित करता है
खुद को
मेरा लिखना, आपका पढ़ना भी
सत्य है...
सत्य यानी तुम, सत्य यानी मैं
और, हमारे अंदर रही वह आत्मा
जो ईस सत्य पर सोचने को मजबूर
करता है....
यही सत्य हैं..... कि -
सत्य है, मैं हूँ और
तुम हो....!!

पंकज त्रिवेदी

21 comments:

  1. यही सत्य हैं..... कि -
    सत्य है, मैं हूँ और
    तुम हो....!!
    गंभीर चिन्तन मे जीवन दर्षन का सत्य। पंकज जी को बधाई इस रचना के लिये। रश्मि जी आप गहरे सागर से मोटी निकाल कर लाने की क्षमता रखती हैं। शुभकामनायें।

    ReplyDelete
  2. यही सत्य हैं..... कि -
    सत्य है, मैं हूँ और
    तुम हो....।


    गहन भावों के साथ बेहतरीन शब्‍द रचना, प्रस्‍तुति के लिये रश्मि जी का आभार ।

    ReplyDelete
  3. behad gehrai se satye ko praibhashit kiay he aapne apni is rachna me

    badhai

    ReplyDelete
  4. जीवन दर्शन देती यह कविता उच्च कोटि की है.. सुन्दर रचना..

    ReplyDelete
  5. गंभीर जीवन दर्शन ...अच्छी प्रस्तुति

    ReplyDelete
  6. सत्‍य बोलो गत्‍य है।

    ReplyDelete
  7. सत्य हर युग हर काल हर पल मे सत्य ही होता है…………सत्य हमेशा एक ही होता है और सत्य का होना ही जरूरी है फिर उसका आकार हो ना हो क्योंकि बिना आकार के भी भासता है और सत्य कभी भ्रामक नही होता दिशा प्रदान करता है……………अगर सत्य को जान लिया तो खुद को जान लिया और खुद को जान लिया तो समझिये ब्रह्म को जान लिया क्योंकि अन्तिम सत्य तो वही है।

    ReplyDelete
  8. गहन दार्शनिक चिंतन से उपजी एक सार्थक कविता...बधाई।

    ReplyDelete
  9. यही सत्य हैं.....

    ReplyDelete
  10. असत्य भी तो सत्य हैं
    क्यूंकि उसकी उपस्थिति भी सत्य है
    आख़िर ये सत्य क्या है?
    प्रणाम !
    ऊपर कि पंक्तिया आप को सादर , कितनी गूढ़ है . इक आध्यात्मिक भाव प्रदान वाली अच्छी रचना बोध तत्व लिए है कि ''
    यही सत्य हैं..... कि -
    सत्य है, मैं हूँ और
    तुम हो....!!
    साधुवाद
    सादर 1
    --

    ReplyDelete
  11. सह- अस्तित्व की विद्यमानता ही सत्य है.. और आपने क्या खूब कहा-"
    यही सत्य हैं..... कि -
    सत्य है, मैं हूँ और
    तुम हो....!!"
    सम्पूर्ण सत्य का सार आपकी उक्त पंक्तियों में छुपे दर्शन स्पष्ट हो गया.. "तुझमे मैं और मुझमे तू.." इतने गहन चिंतन को इतनी सहजता से व्यक्त पाना, ये आपकी ही खूबी है...वाह ! साधुवाद श्री पंकज जी का ! आदरणीया रश्मि दी का भी आभार इतनी चिंतनशील रचना पढवाने हेतु. प्रणाम !

    ReplyDelete
  12. एक दर्शन है रचना में.

    ReplyDelete
  13. अतिसुन्दर भावाव्यक्ति , बधाई के पात्र है

    ReplyDelete
  14. बहुत ही खुबसूरत रचना है,...हमें पढवाने के लिए धन्यवाद ..

    ReplyDelete
  15. "वटवृक्ष" के सभी दोस्तों की पवित्र आत्मा को मेरा नमन,

    आप सब ने मेरी इस कविता के "सत्य" को जाना और अपने विचार रखें, मै दिल से आभारी हूँ | खासकर रश्मिजी का भी, जिन्हों ने परखा |

    ReplyDelete
  16. bahut sundar rachnaa... Satya Asatya ke do paato ke beech chalti yah kavita sach par manthan karti hai... aur ujaagar karti hai satya yahi kee mai aur tum .. yaha saty nihit hai... bahut sundar rachnaa hai... Rashmi ji isey share karne ke liye dhanyvaad..

    ReplyDelete
  17. satya satya hai, satya ko pramaan ki zarurat nahin, bilkul satya hai yah. bahut achha likha hai, badhai pankaj bhai.

    ReplyDelete
  18. पंकज जी को गंभीर लखन के लिए बधाई. आदरणीया रश्मि जी सागर में से मोती निकालने का ज़ो पुनीत कार्य कर रही हैं वह प्रशंसनीय है. उनका सम्पादन.....भूमिका लेखन ......विषय चयन......और चित्र संयोजन ......सब कुछ अपने अनूठेपन के साथ पाठकों को आकर्षित करने में सक्षम है ......मेरा सादर नमन उनकी गरिमामयी लेखनी को.

    ReplyDelete
  19. पंकज जी को गंभीर लखन के लिए बधाई. आदरणीया रश्मि जी सागर में से मोती निकालने का ज़ो पुनीत कार्य कर रही हैं वह प्रशंसनीय है. उनका सम्पादन.....भूमिका लेखन ......विषय चयन......और चित्र संयोजन ......सब कुछ अपने अनूठेपन के साथ पाठकों को आकर्षित करने में सक्षम है ......मेरा सादर नमन उनकी गरिमामयी लेखनी को.

    ReplyDelete

 
Top