ये अनकही बातें बोलती हैं,
मैंने इनको सुना है,
समुद्र की लहरों सी होती हैं,
शाख से कोई पत्ता गिरे ,
ऐसा लगता है,
ये अनकही बातें ,
दिल की गहराई तक दस्तक देती हैं.......
तुम इनको अनसुना नहीं कर सकते,
मन की सांकलों को खोलो,सुनो.......
अनकही बातें बोलती हैं!
रश्मि प्रभा
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पृथ्वी के गर्भ में
इन दिनों
पृथ्वी पर नहीं
इसके गर्भ में होने सा
लग रहा है मनु को
कोई द्वन्द है
जिसका लावा
पिघला रहा है
उसके अंतस के इस्पात को
और उसका पौरुष
पिघल पिघल कर
रह जा रहा है
नहीं हो रहा कोई
विस्फोट
ना ही कोई ज्वालामुखी
फूट रहा है भीतर से
न ही हो रहा कोई सृजन
समस्त उथल पुथल
भीतर ही भीतर
हो रहे हैं
मनु के
न जाने
वह कौन सी
वर्जना है
जिसका कोलाहल
इतना मौन है कि
वर्जना का मौन बल
हो गया है
गुरुत्वाकर्षण बल सा
और खींचे ही जा रहा है
अपने गर्भ में भीतर
मनु को
कई बार
फेक दिया जाता है
कई कई प्रकाश वर्ष दूर
आकाशगंगाओं के प्रकाश पुंज के बीच
बल हीन,
विषय हीन
भार हीन सा
किसी अपरिचित अंतरिक्ष में
पाता है स्वयं को
मनु
पृथ्वी के गर्भ में
संघर्षरत मनु
नहीं कर रहा कोई
प्रार्थना,
याचना ,
कामना;
किन्तु
'हे मनु !
लौट आओ मेरे पास '
सुनना चाहता है
श्रद्धा के मुख से
लौटने के लिए नहीं
बल्कि
अपने भीतर के
"मैं" की जीत के लिए
पृथ्वी के गर्भ में
युद्धरत है मनु
अरुण रॉय
'हे मनु !
ReplyDeleteलौट आओ मेरे पास '
सुनना चाहता है
श्रद्धा के मुख से
लौटने के लिए नहीं
बल्कि
अपने भीतर के
"मैं" की जीत के लिए .....
प्रेम संबंधो की मधुर और कातर व्याख्या. शुभकामना
अरुण जी को पढना अच्छा लगता है..बहुत बहुत धन्यवाद...
ReplyDeleteबहुत ही गूढ अर्थ संजोये हुये है ये कविता…………और अरुण जी को हमेशा पढना एक अलग ही अर्थ देता है…………यही उनकी कविताओं की खासियत है।
ReplyDeleteकोई द्वन्द है
ReplyDeleteजिसका लावा
पिघला रहा है
उसके अंतस के इस्पात को
और उसका पौरुष
पिघल पिघल कर
रह जा रहा है
.......bahut sundar prastuti ke saath gaharee arthmayee kavita ke liye aabhar
पृथ्वी के गर्भ में
ReplyDeleteसंघर्षरत मनु
नहीं कर रहा कोई
प्रार्थना,
याचना ,
कामना;
किन्तु
'हे मनु !
लौट आओ मेरे पास '
सुनना चाहता है
श्रद्धा के मुख से
लौटने के लिए नहीं
बल्कि
अपने भीतर के
"मैं" की जीत के लिए
.....
अंतर्मन के संघर्ष और मानव मन के अहम की बहुत ही भावपूर्ण प्रस्तुति..आभार..
"दिल की गहराई तक दस्तक देती हैं.......
ReplyDeleteतुम इनको अनसुना नहीं कर सकते,
ये दस्तक देती रहती है,
मन की सांकलों को खोलो,सुनो.......
अनकही बातें बोलती हैं!"
रश्मिजी की ये पंक्तियाँ और....... अरुणजी की पूरी कविता... लाजवाब....
"पृथ्वी के गर्भ में
युद्धरत है मनु"
वाह...बहुत उम्दा.
ReplyDeleteलाजवाब....
ReplyDeleteअच्छा है..बहुत बहुत धन्यवाद...
ReplyDeleteबहुत ही भावपूर्ण प्रस्तुति..आभार..
ReplyDeletebhaavaatmak abhivyakti hai yah, bahut sundar !
ReplyDeleteश्रद्धा के मुख से
ReplyDeleteलौटने के लिए नहीं
बल्कि
अपने भीतर के
"मैं" की जीत के लिए
yahi mein manu ki parajay hai aur manu ke vartman ke liye jimmedar bhi.....gahre arth .....sunder rachna...
bahut adbhut kriti, sochne keliye vivash karti rachna, shubhkaamnaayen.
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