तुम्हारे पास लकड़ी की नाव नहीं ,
निराशा कैसी?
कागज़ के पन्ने तो हैं !
नाव बनाओ और पूरी दुनिया की सैर करो..........
तुम डरते हो कागज़ की नाव डूब जायेगी , पर
अपने आत्मविश्वास की पतवार से उसे चलाओ तो
हर लहरें तुम्हारा साथ देंगी.........
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मासूम चिड़िया
एक छोटे से घोसले में मैंने आँखें खोली..जब होश संभाला तो देखाकि माँ चिड़िया की आँखों में नमी थी..माँ चिड़िया ने बहुत कुछ देखा था, सहा थाहमेशा से उसने एक ही बात कही - बेटा, इस दुनिया में बहुत से व्याध हैं.वे तुम्हें पकड़ लेंगे..घोसले से उठा के माँ चिड़िया ने मुझे ज़मीन पे रखा.मेरे पंख कमज़ोर थे.अकेले उड़ने में डर लगता था मुझेमाँ चिड़िया और मेरे भाई-बहनमुझे अपने सहारे उड़ाते थेआसमान में उड़ना अच्छा लगता था,वो ठंडी हवा , वो ख़ुशी से दिन गुज़ारना ...पर...मेरे आस पास कई चिड़िया थीजब भी मैं इधर से उधर फुदकती थी अकेलेतो सुना करती थी..वो हँसी , वो मज़ाक,वो आस्मां में यूँ ही उड़ते रहनाइधर - उधर जाना'वो साथ' मुझे और अकेला कर जाता था.अचानक एक दिन,तुम आईतुम्हारी आँखों में एक प्यार था,सच्चाई थी,तुमने मुझे अपने साथ उड़ने को कहा ..और वो सारी ख़ुशी मुझे मिली ..माँ चिड़िया खुश थी.. क्यूंकि मैं खुश थी.पर जब भी मैं घोसले से निकलती,मुझे कहती - बेटा, व्याध से बचना.तुम्हारे साथ उड़ना मुझे इतना अच्छा लगता था,तुम्हारा प्यार, तुम्हारा साथ..मुझे कुछ ज्यादा ही यकीन हो चला था खुद पे, तुम पेकभी नहीं सोचा कि मैं व्याध के हाथ आउंगी.लेकिन,कई बारबाकी चिड़िया मुझे पत्थर मारती थीमुझे चोट लगी.मैंने तुम्हें पास बुलायातुम कभी थी, कभी नहींतुमने फिर बोला -उड़ो .. दुनिया ऐसी ही है.और मैं उड़ते गयी.माँ चिड़िया ने समझाया - बेटा संभल के जाना.उड़ते उड़ते मैं उस इलाके में आ गयीजहाँ अलग- अलग पंछी थे..उनके पंख विशाल थे .उनकी हँसी मुझे अजीब लगती थी .मैं "मैं" नहीं होती थी वहांपर तुम इन सब के साथ घुल मिल चुकी थी.वे तुम्हें भी चोट पहुंचाते थे,लेकिन मैं तुम्हारे साथ थी .और कुछ वक़्त के बादतुम फिर उनकी दोस्त होती थीमेरे पंख को देख के बाकी पंछी हँसते थे .क्यूंकि मैं अकेले नहीं उड़ सकती थी.उन्होंने मुझे कई तरीके से चोट पहुँचायामैंने तुम्हें पास बुलायाकभी तुम थी, कभी नहींपर तुमने कहा - आओ, मैं हूँ न.और तुम्हारे साथ मैं उड़ती गयी.माँ चिड़िया ने कहा - उड़ो बेटा,लेकिन व्याध के हाथ मत आना.मैंने देखी है दुनिया.. इसलिए कहती हूँलेकिन एक दिन मैं कई व्याध के बीच फँस गयी.उन्होंने मुझे जाल में पकड़ाऔर मेरे पंख को आहिस्ते आहिस्ते काट दियामैं रोई..तुम्हें पुकारालेकिन तुम्हे व्याध गलत नहीं लगे .तुमने मुझे ही समझा दिया"मना किया था व्याध के पास जाने से न".जब मैं वापस आईमाँ चिड़िया घोसले में बैठी रोई मेरी हालत देखउसने कहा - बेटा कहा था, संभल के चलनामुझे दर्द था, दुःख था..मैं बहुत रोई..हिचक हिचक के रोई..पर अब भीउस आस्मां को देख उड़ने की इच्छा होती है.पहले कोशिश करती थी उड़ने की तो उड़ लेती थी.पर..फिर भी तुम कहती हो - उड़ोतुमने तो देखा -मेरे पंख ही नहीं बचे.दर्द होता है मुझे.तुम्हें मैंने पास बुलायातुम कभी थी, कभी नहीं..डर है मुझे,कहीं तुम्हारे साथ भी ऐसा न हो..
क्यूंकि कहीं मैंने तुम में खुद को भी देखा है ..
और उड़ने का मन मेरा भी है ..
बस इतना बता दो - कैसे?
अपराजिता कल्याणीCommunication ManagementBatch 2012Symbiosis Institute of Media and Communication (UG)
मासूम चिड़िया और व्याध .. बहुत सुन्दर कथा कविता ..बहुत दर्द भरी..दुनिया में कदम सावधानी से रखो ऐसी सीख देती.. सुन्दर कविता
ReplyDeleteमासूम चिड़िया और व्याध .. बहुत सुन्दर कथा कविता ..बहुत दर्द भरी..दुनिया में कदम सावधानी से रखो ऐसी सीख देती.. सुन्दर कविता
ReplyDeleteमासूम कविता... बड़ी सीख!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर..
आभार
सहज, और असहज सामाजिक परिस्थितियों को इंगित करती एक भावपूर्ण, सुन्दर व संदेश देती रचना! अच्छी प्रस्तुति के लिये बधाई!
ReplyDeleteसुन्दर कविता . मन को छू गई..
ReplyDeleteबहुत अच्छा लिखा है अपराजिता को ढेरों बधाई.
ReplyDeleteएक माँ की अपनी बेटी के प्रति सुरक्षा की भावना और समाज और उसके दोषों से बचाने की तत्परता की कहानी कहती रचना.
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर काव्य-कथा ... दर्द भरी दास्ताँ ..
ReplyDeleteपर हिम्मत नहीं हारते ... हिम्मत के आगे सब हारते ...
कविता के माध्यम से जीवन की सीख दे दी…………बेहद भावपूर्ण अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteचिड़िया के रूप में माँ , उसकी व्यथा , बेचैनी , चिंताएं ...सबकुछ इतनी अच्छी तरह व्यक्त कर दिया है ...
ReplyDeleteहर माँ इस चिड़िया में अपनी छवि देख रही होगी ...
गहन भावाभिव्यक्ति !
मासूमियत से लिखी खूबसूरत रचना...बधाई.
ReplyDelete_________________
'शब्द-शिखर' पर पढ़िए भारत की प्रथम महिला बैरिस्टर के बारे में...
बहुत ही सुन्दर और मासूम सी रचना है, बेहतरीन, जितनी तारीफ़ की जाए कम है, इस तरह की रचना बहुत ही कम पढने को मिलती है! मेरे पास तारीफ़ के लिए शब्द नहीं है!शुभकामना!
ReplyDeleteअपराजिता को ढेरों बधाइयां...बहुत ही गहराई और कुशलता से मन के सारे भाव उंडेल दिए हैं,कविता में...बहुत ही अच्छी कविता
ReplyDeleteअनुभव की बातें।
ReplyDeleteकभी तुम थी, कभी नहीं...
ReplyDeleteyahi sach hai...
behetreen rachna!
मासूम चिडिया की व्यथा मार्मिक रचना। अपराजिता जी को बधाई। रश्मि जी आपके इन शब्दों मे कितनी प्रेरणा है---
ReplyDeleteअपने आत्मविश्वास की पतवार से उसे चलाओ तो
हर लहरें तुम्हारा साथ देंगी........."
चल रही हूँ कागज़ की काली पगडंडियों पर बालों की स्याही मे डुभो कर कलम ,लिख रही हूँ सुखदुख की लहरों की गाथा--- आने वाले काफिलों के लिये कुछ चित्रपट ,कोई तो पढ कर होगा सावधान जीवन मे आने वाले संघर्षों से। मैं, मेरी कलम--- छोड जायेंगे--- निशाँ\
वट वृक्ष सच मे एक मील पत्थर है साहित्य के क्षेत्र मे।इस अथाह समुद्र मे बिखरे मोती समेट रही हैं आप। बधाई।
bahut sunder abhivayakti ... hats off bitiya rani
ReplyDeletemasoom chidiya ki dard bhari vyatha ko bahut pyare dhang se sajoya tumne..... :)
ReplyDeletegod bless!!
ek chidiya ke madhyam se, jindgi ka saar batati hui aapki apni is rachna ko, mera salaam kabule
ReplyDeletebadhai
हुत सुन्दर ... जीवन के सच को पर्त दर पर्त लिखा है .... चिड़िया के माध्यम से जीने की राह दिखा दी है इस रचना नें ... बहुत लाजवाब ....
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