जिंदगी एक खुशनुमा पल है
निर्भर है तुम पर-इस पल को कैसे संवारते हो!
न वक़्त ठहरता है
न लोग..........
पर गर तुमने वक़्त की नाजुकता को जान लिया
तो ज़िन्दगी मेहमान बन जाती है
मेहमानावाजी भी तुम पर----
चाहो तो कांटे बिखेर दो,
या रास्तों को फूलों से सजा दो,
जो भी करना है,जल्दी करो,
कभी भी हाथ आया वक़्त नाउम्मीदी में ढल सकता है,
उसे गंवाकर किस्मत को जिम्मेदार न कहना...
रश्मि प्रभा
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लफ्ज़ बुनने लगती हूँ
जब जज़्बात उमड़ने लगते हैं,
लफ्ज़ बुनने लगती हूँ
कभी मुस्कराहट की शकल बनाती हूँ,
कभी आसूओं के नमूने बुनने लगती हूँ
कभी कोई रंग हाथ आता है, कभी कोई,
रंगों का ताना-बाना बुनने लगती हूँ
यह जज्बातों का धागा तो ज़िन्दगी के साथ ही ख़त्म होगा,
कहीं फिर उलझ ना जाए, यही सोच लफ्ज़ बुनने लगती हूँ
अंजना (गुड़िया)
Humanitarian Psychologist
Functional Expert - Psychosocial Support
Phones:Cell - 001-787-432-9960/ Home- 001-787-738-6632
Email: anjdayal@gmail.com
एक साधारण स्त्री जिसे आसाधारण परिस्थियों को जीने के अवसर मिले. कभी जीती, कभी हारी, पर ईश्वर की दया और परिवार के स्नेह से हमेशा आगे बढती रही.... अलग-अलग क्षेत्रों में आपदा पीड़ितों के साथ काम किया जिन्होंने सबकुछ खोने के बाद भी हार ना मानने का सबक सिखाया.
जो सीखती हूँ उसे लिख देती हूँ, कभी गद्य या कभी पद्य में कह देती हूँ, ख्यालों को, मुश्किलों को या फिर खुशियों को लफ़्ज़ों में बुन देती हूँ"
जब जज़्बात उमड़ने लगते हैं,
ReplyDeleteलफ्ज़ बुनने लगती हूँ
कभी मुस्कराहट की शकल बनाती हूँ,
कभी आसूओं के नमूने बुनने लगती हूँ
बेहद खूबसूरत भाव और अल्फ़ाज़्…………भावप्रवण प्रस्तुति।
बहुत खूबसूरत बुनावट ....
ReplyDeleteकभी मुस्कराहट की शकल बनाती हूँ,
ReplyDeleteकभी आसूओं के नमूने बुनने लगती हूँ
बहुत खुबसूरत रचना
आभार
कभी मुस्कराहट की शकल बनाती हूँ,
ReplyDeletebahut khoob
कभी आसूओं के नमूने बुनने लगती हूँ
बहुत ही प्यारी और खूबसूरत रचनाएँ...
ReplyDeletebahut hi achha kam kar rahi hain
ReplyDeleteisko yun hi aage badhate rahiye
aur hamse share karte rahiye
अंजना जी तो काफी सुन्दर बुनावट लेकर आई है ..
ReplyDeleteआपकी रचना दीदी, अंजना जी की रचना का अनुपूरक है ...
बहुत खूबसूरत !
कभी कोई रंग हाथ आता है, कभी कोई,
ReplyDeleteरंगों का ताना-बाना बुनने लगती हूँ ...
Bahut khoob ... jeevan jo de use swikaar karn chaahiye ... usi se taana baana bunna chaahiye ...
बहुत खूबसूरत बुनावट ....
ReplyDeleteलफ़्ज़ों के खूबसूरत ताने- बाने !
ReplyDeleteकहीं फिर उलझ ना जाए, यही सोच लफ्ज़ बुनने लगती हूँ
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति!
कभी मुस्कराहट की शकल बनाती हूँ,
ReplyDeleteकभी आसूओं के नमूने बुनने लगती हूँ
जिदगी से मिले पलों को सहजता से स्वीकार कर उन्हें सुदर नमूनों के रूप में संवारना और सहेजना.... अद्भुत अभिव्यक्ति.... खूबसूरत और मर्मस्पर्शी प्रस्तुति. आभार.
सादर,
डोरोथी.
बहुत ही ख़ूबसूरत तरीके से अभिव्यक्ति के लिए बधाई ! साधुवाद !
ReplyDeleteBahut Sunder .......
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर शब्द एवं भावमय प्रस्तुति ।
ReplyDeleteरश्मि जी, बहुत सुंदर रचना से पोस्ट की शुरुआत करी है
ReplyDeleteसभी को प्रोत्साहन के लिए शुक्रिया.
सादर
सुन्दर अभिव्यक्ति!
ReplyDeleteजब जज़्बात उमड़ने लगते हैं,
ReplyDeleteलफ्ज़ बुनने लगती हूँ...... ख़ूबसूरत अभिव्यक्ति!
साथ ही जिंदगी के बहुमूल्य पलों की महत्ता बताने के लिए भी धन्यवाद.
बहुत खूबसूरत भाव है नज़्म में ... बहुत खूब ..
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत भाव
ReplyDeleteअच्छी कविता
ReplyDeleteपढ़कर कहीं खो गया था
आपको बधाई
bahut achcha buntin hain aap.
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