जिंदगी एक खुशनुमा पल है
निर्भर है तुम पर-इस पल को कैसे संवारते हो!
न वक़्त ठहरता है
न लोग..........
पर गर तुमने वक़्त की नाजुकता को जान लिया
तो ज़िन्दगी मेहमान बन जाती है
मेहमानावाजी भी तुम पर----
चाहो तो कांटे बिखेर दो,
या रास्तों को फूलों से सजा दो,
जो भी करना है,जल्दी करो,
कभी भी हाथ आया वक़्त नाउम्मीदी में ढल सकता है,
उसे गंवाकर किस्मत को जिम्मेदार न कहना...

रश्मि प्रभा




========================================================
लफ्ज़ बुनने लगती हूँ


जब जज़्बात उमड़ने लगते हैं,
लफ्ज़ बुनने लगती हूँ

कभी मुस्कराहट की शकल बनाती हूँ,
कभी आसूओं के नमूने बुनने लगती हूँ

कभी कोई रंग हाथ आता है, कभी कोई,
रंगों का ताना-बाना बुनने लगती हूँ

यह जज्बातों का धागा तो ज़िन्दगी के साथ ही ख़त्म होगा,
कहीं फिर उलझ ना जाए, यही सोच लफ्ज़ बुनने लगती हूँ

अंजना (गुड़िया)
Humanitarian Psychologist
Functional Expert - Psychosocial Support
Phones:Cell - 001-787-432-9960/ Home- 001-787-738-6632
Email: anjdayal@gmail.com

एक साधारण स्त्री जिसे आसाधारण परिस्थियों को जीने के अवसर मिले. कभी जीती, कभी हारी, पर ईश्वर की दया और परिवार के स्नेह से हमेशा आगे बढती रही.... अलग-अलग क्षेत्रों में आपदा पीड़ितों के साथ काम किया जिन्होंने सबकुछ खोने के बाद भी हार ना मानने का सबक सिखाया.

जो सीखती हूँ उसे लिख देती हूँ, कभी गद्य या कभी पद्य में कह देती हूँ, ख्यालों को, मुश्किलों को या फिर खुशियों को लफ़्ज़ों में बुन देती हूँ"

22 comments:

  1. जब जज़्बात उमड़ने लगते हैं,
    लफ्ज़ बुनने लगती हूँ

    कभी मुस्कराहट की शकल बनाती हूँ,
    कभी आसूओं के नमूने बुनने लगती हूँ

    बेहद खूबसूरत भाव और अल्फ़ाज़्…………भावप्रवण प्रस्तुति।

    ReplyDelete
  2. कभी मुस्कराहट की शकल बनाती हूँ,
    कभी आसूओं के नमूने बुनने लगती हूँ
    बहुत खुबसूरत रचना
    आभार

    ReplyDelete
  3. कभी मुस्कराहट की शकल बनाती हूँ,

    bahut khoob
    कभी आसूओं के नमूने बुनने लगती हूँ

    ReplyDelete
  4. बहुत ही प्यारी और खूबसूरत रचनाएँ...

    ReplyDelete
  5. bahut hi achha kam kar rahi hain
    isko yun hi aage badhate rahiye
    aur hamse share karte rahiye

    ReplyDelete
  6. अंजना जी तो काफी सुन्दर बुनावट लेकर आई है ..

    आपकी रचना दीदी, अंजना जी की रचना का अनुपूरक है ...

    बहुत खूबसूरत !

    ReplyDelete
  7. कभी कोई रंग हाथ आता है, कभी कोई,
    रंगों का ताना-बाना बुनने लगती हूँ ...

    Bahut khoob ... jeevan jo de use swikaar karn chaahiye ... usi se taana baana bunna chaahiye ...

    ReplyDelete
  8. बहुत खूबसूरत बुनावट ....

    ReplyDelete
  9. लफ़्ज़ों के खूबसूरत ताने- बाने !

    ReplyDelete
  10. कहीं फिर उलझ ना जाए, यही सोच लफ्ज़ बुनने लगती हूँ

    सुन्दर अभिव्यक्ति!

    ReplyDelete
  11. कभी मुस्कराहट की शकल बनाती हूँ,
    कभी आसूओं के नमूने बुनने लगती हूँ

    जिदगी से मिले पलों को सहजता से स्वीकार कर उन्हें सुदर नमूनों के रूप में संवारना और सहेजना.... अद्भुत अभिव्यक्ति.... खूबसूरत और मर्मस्पर्शी प्रस्तुति. आभार.
    सादर,
    डोरोथी.

    ReplyDelete
  12. बहुत ही ख़ूबसूरत तरीके से अभिव्यक्ति के लिए बधाई ! साधुवाद !

    ReplyDelete
  13. बहुत ही सुन्‍दर शब्‍द एवं भावमय प्रस्‍तुति ।

    ReplyDelete
  14. रश्मि जी, बहुत सुंदर रचना से पोस्ट की शुरुआत करी है

    सभी को प्रोत्साहन के लिए शुक्रिया.
    सादर

    ReplyDelete
  15. सुन्दर अभिव्यक्ति!

    ReplyDelete
  16. जब जज़्बात उमड़ने लगते हैं,
    लफ्ज़ बुनने लगती हूँ...... ख़ूबसूरत अभिव्यक्ति!

    साथ ही जिंदगी के बहुमूल्य पलों की महत्ता बताने के लिए भी धन्यवाद.

    ReplyDelete
  17. बहुत खूबसूरत भाव है नज़्म में ... बहुत खूब ..

    ReplyDelete
  18. बहुत खूबसूरत भाव

    ReplyDelete
  19. अच्छी कविता
    पढ़कर कहीं खो गया था
    आपको बधाई

    ReplyDelete

 
Top