असुर का साम्राज्य कितना भी बड़ा हो
अगर की खुशबू मन को सुकून देती है ...
रश्मि प्रभा
===============================================================
नन्ही लौ और इंसान...!
नन्ही लौ और इंसान...!
अन्धकार भयावह है...
विस्तार लिए हुए है
रौशनी नन्ही सी है...
एक लौ में सिमटी हुई है
पर,
जब दोनों देखे जायेंगे
तब एक दूरी से
वह नन्ही लौ ही नज़र आएगी
और सिमटी हुई नन्ही सी लौ
अन्धकार पर भारी पड़ जायेगी!
देखने वाले को
दीया
बड़ी दूर से ही दिख जाएगा
विस्तृत होता हुआ भी
अन्धकार
नहीं दिख पायेगा
गुण तो
छोटी-छोटी पुड़िया में ही
आता है
और
अवगुणों की पूरी ज़मात पर
भारी पड़ जाता है
ज़िन्दगी
कुछ एक मूल सिद्धांतों पर भी
अगर अडिग रहे
प्रेम-दया-करुणा के भाव
मन में
सजग रहे
फिर,
जो एक
अप्राप्य सा लक्ष्य (?) जान पड़ता है-
इंसान होना!
दुर्लभ ही है
औरों के आँसुओं को
अपनी आँखों से खोना...;
वह स्वतः ही
सहज हो जाएगा
नन्हा दीया जो बन गया मन
वह साक्षात् पुण्यधाम ब्रज हो जाएगा
इंसानियत की बाती के प्रज्वलित होते ही
यह दीये वाला चरित्र
साकार हो जाएगा
देखना यह कलयुग फिर
स्वयं ही सतयुग का
अवतार हो जाएगा!!!
अनुपमा पाठक
औरों के आँसुओं को
ReplyDeleteअपनी आँखों से खोना...
वह स्वतः ही
सहज हो जाएगा
नन्हा दीया जो बन गया मन
वह साक्षात् पुण्यधाम ब्रज हो जाएगा
बहुत सुंदर संदेश।
अनुपम रचना।
इंसानियत की बाती के प्रज्वलित होते ही
ReplyDeleteयह दीये वाला चरित्र
साकार हो जाएगा
देखना यह कलयुग फिर
स्वयं ही सतयुग का
अवतार हो जाएगा!!!
बहुत ही positive और हौसले वाली कविता
बधाई और शुभकामनाएं अनुपमा जी
धन्यवाद महेंद्र जी!
ReplyDeleteधन्यवाद इस्मत जी!
आपका हार्दिक धन्यवाद रश्मि जी जो वटवृक्ष की छाँव मिली मेरी रचना को...
'असुर का साम्राज्य कितना भी बड़ा हो
अगर की खुशबू मन को सुकून देती है ...'
आपकी इन दो पंक्तियों के सौन्दर्य ने मन अभिभूत कर दिया...!!!
आभार!
बहुत बहुत सुन्दर....
ReplyDeleteरचना भी भूमिका भी..
होनी ही थी सुन्दर..
जब दोनों देखे जायेंगे
ReplyDeleteतब एक दूरी से
वह नन्ही लौ ही नज़र आएगी
और सिमटी हुई नन्ही सी लौ
अन्धकार पर भारी पड़ जायेगी!
सुंदर रचना.....
तब एक दूरी से ,
ReplyDeleteवह नन्ही लौ ही नज़र आएगी ,
और सिमटी हुई नन्ही सी लौ ,
अन्धकार पर भारी पड़ जायेगी.... !
नन्हा दीया जो बन गया मन ,
वह साक्षात् पुण्यधाम ब्रज हो जाएगा.... !!
एक इसी विश्वास से जिन्दगी की सारी दुविधा दूर हो जाती है.... !!!!!!!
प्रभावशाली रचना.....
ReplyDeleteगुण और दीपक की सुन्दर तुलना...गुण तो छोटी-छोटी पूड़ियों में ही आता है...
ReplyDelete'नन्हा दीया जो बन गया मन
ReplyDeleteवह साक्षात् पुण्यधाम ब्रज हो जाएगा
इंसानियत की बाती के प्रज्वलित होते ही
यह दीये वाला चरित्र
साकार हो जाएगा
देखना यह कलयुग फिर
स्वयं ही सतयुग का
अवतार हो जाएगा!!!'
- बहुत सुन्दर ,अनुपमा जी !
अति प्रभावशाली रचना
ReplyDeleteबसंत पंचमी की शुभकामनायें
प्रभावपूर्ण अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteबसंत पंचमी की शुभकामनाएँ