ज़िन्दगी के परिधान एक से नहीं होते
रश्मि प्रभा
अश्विन
न उसके डायलौग एक होते हैं
कभी खुद बदल देते हैं हम
कभी जाने अनजाने अपने बने निर्देशक ....
रश्मि प्रभा
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धारावाहिक
ज़िन्दगी रोज़ाना टेलीकास्ट होने वाला चौबीस घंटे का धारावाहिक है
यह टेलीकास्ट मेरे दिलो-दिमाग की स्क्रीन पे होता है
कभी कभार ही कुछ एपिसोड्स देखने लायक होते हैं
वरना..अक्सर वही घिसा पिटा
हर वक़्त ये प्रयत्न के कुछ हो ऐसा
कि
यह धारावाहिक बन सके देखने लायक
परन्तु
प्रयत्न..प्रतीक्षा का मज़ा ले लेता है
ज़िन्दगी के इस डेली सोप में हाथ पे हाथ धर
आराम कुर्सी पर बैठ पोपकोर्न खाते हुए
इस धारावाहिक की कड़ियाँ देखना ख़ास बुरा नहीं
बशर्ते यदि आप अच्छे अभिनेता हैं
और
खुद को मुख्य भूमिका में देख के बोर नहीं होते
तो
ये सारा जहान मंच है आपका
उछलिए कूदिये ठहाके लगाइए
और सोच के खुश रहिए की आप निर्देशक भी हैं इसके
पर मेरा यह भ्रम खंडित है
मैं ये स्वीकार करके जीता हूँ कि
एक कठपुतला हूँ मैं
किसी की उँगलियों में बंधी डोर से संचालित
निर्देशक कई और हैं मेरे
और वो सब मुझसे नाराज़ रहते हैं
क्योंकि मैं ज़िन्दगी के इस धारावाहिक में अच्छा अभिनय भी नहीं कर पाता..
अश्विन
सुन्दर भूमिका के साथ सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर....आश्विन जी ने बेहद सार्थक लिखा है..
ReplyDeleteऔर रश्मि दी तो अपने साथ जाने कितने चाँद लिए चलती हैं..जहाँ तहां चार चाँद टांक देती हैं...
सादर.
बहुत खूब...जिंदगी का धारावाहिक और कठपुतलियों का अभिनय जिनकी डोर औरों के हाथ में होती है..बहुत सुंदर कविता और भूमिका भी...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और सार्थक लेख...आश्विन जी को बधाई..
ReplyDeletebadhia likha hai ...!!
ReplyDeleteसब इसी रंगमंच की कठपुतलियाँ हैं
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी प्रस्तुति ।
ReplyDeleteसबका आभार..लिख तो काफी समय से रहा हूँ..पर नज़र में ताज़ा ताज़ा आना शुरू हुआ हूँ..रश्मि प्रभा के वटवृक्ष की छाँव में २ पल बैठ कर अच्छा लगा..
ReplyDeleteबहुत खुबसूरत रचना अभिवयक्ति.........
ReplyDeleteबहुत सच्चा है जिंदगी का धारा वाहिक
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