अपनी विशालता को पहचानो
कितने पौधे तुमसे ऊष्मा पाते हैं
कितने राहगीर आराम ...
लाभ हानि तो हर रिश्तों में है
तो क्या अपने वजूद से रूठ जाएँ !...
रश्मि प्रभा
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" बरगद –आत्मकथ्य"
एक विस्तृत कानन का वह शहंशाह था ।
अहं था सबका भगवान कहलाने का
लटकी जटाओं में बच्चों का डेरा था ।
कोलाहल आस -पास ,मस्ती घंटों का
चबूतरे पर पंचायत का जमावड़ा था ।
प्रतिद्वंद्वी नहीं ,कोई दूसरा उस परिवेश का
सूखती झाड़ियों और दूब पर रौब था ।
पनप सका न कोई गवाह तात्कालिक इतिहास का
बियाबान के राजा ने तब जाना बांटने में सुख है ।
मोटे तने की बुजुर्गियत सुनती है पीड़ा एकाकी का
उष्णता नस -नस की यूँ ही सूख जाती है ।
अगले जन्म मुझे चंपा बनाना या बबूल काँटों का
दंश अकेलेपन का बरगद बन बहुत झेल लिया है ।
विशाल हो गया रस निचोड़ कर कण -कण का
एकाधिकार नहीं चाहिए ,छोटा होने में भलाई है ।
कविता विकास
बहुत सुन्दर...
ReplyDeleteबिलकुल ऐसे ही भाव लिए मैंने भी लिखा था..वटवृक्ष में वटवृक्ष का आत्मसाक्षात्कार.
सस्नेह..
गहन भाव लिए बेहतरीन अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteउम्दा प्रस्तुति…………बसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनायें।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर,सार्थक प्रस्तुति।
ReplyDeleteऋतुराज वसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएँ।
watwiksh yun falta-fulta rahe yahi aaj hum vasant panchami ke shubh awsar pe kamna karte hain----
ReplyDeleteiski jade'n itni majbut ho ki ye jamee'n jab tak rahe tab tak ye bhi kayam rahe
दंश अकेलेपन का बरगद बन बहुत झेल लिया है ।
ReplyDeleteकलकता में एक बरगद का पेड़ है ,जो अपने जटाओं से उत्पन्न पेड़ों के कारण , गिनीज बुक में है.... !
सुन्दर प्रस्तुति..बसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएँ
ReplyDeleteसार्थक सन्देश
ReplyDeleteसुन्दर!
ReplyDeleteअच्छी रचना
ReplyDeleteआप सभी के सुवचनों के लिए मैं आभार प्रकट करती हूँ । आप के शब्द आगे लिखने की प्रेरणा देते हैं ।
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ।