खोटे सिक्के रोबोट बनाते हैं
रश्मि प्रभा
अब इन्सान की तलाश किसी को नहीं
रोबोट ही असली पहचान देते हैं
... आलोचना करो
या हंसो
खोटे का बोलबाला है ....
रश्मि प्रभा
===============================================================
ये खोटे सिक्के
आदमी सिक्के को
सिक्के आदमी को
खोटा बनाते हैं।
वो एक दूसरे को
छोटा बनाते हैं।
और आजकल सिक्के
टकसाल में नहीं
आदमी की हथेली
पर ढल रहे हैं।
और बच्चे
मां की गोद में नहीं
सिक्के की परिधि में
पल रहे हैं।
महेन्द्र श्रीवास्तव
ओह कितना कड़बी सच्चाई को शब्दों की मोती पिरो कर कविता की शक्ल दे दी है, आभार।
ReplyDeleteअच्छी कविताआंे से रूबरू कराने के लिए आपका आभार।
bahut sundat rachna sir
ReplyDeleteखूबसूरत कथन .अच्छी कविता
ReplyDeleteआज कल पैसा ही सब कुछ है .. सुन्दर रचना
ReplyDeleteबहुत ख़ूबसूरत प्रस्तुति, आभार.
ReplyDeleteवाह ..बहुत बढि़या।
ReplyDeleteबहुत ही गहन...
ReplyDeleteवाह!!!
ReplyDeleteवाह!!!
ReplyDeleteबेहतरीन रचना महेंद्र जी...और सटीक भूमिका रश्मि दी..
सादर.
बहुत अच्छी बात काही है आपने
ReplyDelete"वो एक दूसरे को
छोटा बनाते हैं।"
पढ़ कर बहुत अच्छा लगा ...ध्न्यवाद |
गागर मे सागर भर दिया महेन्द्र जी ने………सटीक ।
ReplyDeleteकथ्य सुन्दर संप्रेषित है, धन्यवाद ।
ReplyDeletebahut hi sunder bhav liae huae ...
ReplyDeleteछोटी लेकिन धारदार कविता। भौतिकवाद पर करारा प्रहार।
ReplyDeleteआप सभी का बहुत बहुत आभार
ReplyDelete