एक जीवन से दूसरा जीवन
रश्मि प्रभा
अमित श्रीवास्तव
संतुलन बनाने के लिए बहुत कुछ इधर उधर होता है
ठीक उसी तरह - जैसे किसी के आने पर कमरे की साज सज्जा बदलती है
पर .... स्पर्श और प्यार नहीं बदलता
हर रिश्तों का अपना अर्थ होता है ...
रश्मि प्रभा
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"संतुलन"
अबोध था मै भी कभी,
उंगलियां भी नन्ही रही होंगी जरूर,
पर धीरे धीरे वक्त के साथ,
कब मां की उंगलियां छूटी और,
मेरी नन्ही उंगलियां बड़ी होने लगीं,
याद नही,
वक्त और बीतता गया,
मां ने अपनी पसंद के दो हाथ थमा दिये और,
कहा यह जीवन संगिनी है,
ये नये हाथ ज्यादा रास आये,
सो ज्यादा मजबूती से थाम लिये,
क्रमशः स्वभाविक रूप से,
चार नन्हे हाथ और जुड़ गये,
इसी आपाधापी और जीवन की,
रिले रेस के बहाव में,
मां को लगा शायद,
मैं उनकी उंगलियों का स्पर्श,
कंही भूल गया हूं,
ऐसा कदापि नही हो सकता,
पर हां थोड़ा "संतुलन" बना पाने में,
जरूर विफ़ल रहा हूं,
नई और विरासत की उंगलियों में।
अमित श्रीवास्तव
Bahut achhee rachana hai!
ReplyDeletebehtreen lajabaab rachna.jo ek bete ki maa bakhoobi samajh sakti hai.
ReplyDeleteसंतुलन की मार्मिक पर सच्ची अभिव्यक्ति!!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर....
ReplyDeleteसच है..हर रिश्ते का अपना अर्थ होता है..
और संतुलन बेहद ज़रुरी है..
बहुत ही अच्छी प्रस्तुति।
ReplyDeleteमां को लगा शायद,
ReplyDeleteमैं उनकी उंगलियों का स्पर्श,
कंही भूल गया हूं,
ऐसा कदापि नही हो सकता,
पर हां थोड़ा "संतुलन" बना पाने में,
जरूर विफ़ल रहा हूं,
नई और विरासत की उंगलियों में।
रिश्तों का सच बयाँ कर दिया।
इस बात का ज्ञान ही सबसे महत्वपूर्ण है कि संतुलन जरूरी है। और जिसे यह ज्ञान है, वह संतुलन बना ही लेगा.. भावुक हृदय के उद् गार!
ReplyDeletesach main santulan bannaye rakhna bahut hee zaruri hai mamsparshi rachna ...
ReplyDeleteबहुत मर्मस्पर्शी प्रस्तुति...
ReplyDeleteHridaysparshi Rachna
ReplyDeleteछोटी सी चुक और बड़ी सी गलतफहमी से बिगड़ जाए संतुलन , तो ,
ReplyDeleteथोड़ी सी कोशिश और बड़ी सी समझदारी से संभल जाए संतुलन.... :)
सुंदर रचना......
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