लड़कियां ख्वाब अधिक देखा करती हैं
कोई जान भी नहीं पाता और वे झरना हो जाती हैं
बन जाती हैं कभी ओस की एक बूंद
किसी चाहे हुए चेहरे पर टिक जाती हैं
दर्द के समंदर में भी
वह मछली बन जाती हैं
लड़कियां ख्वाब देखा करती हैं ...
रश्मि प्रभा
======================================================
हसरत --
हर लड़की की चाहत होती
झरने जैसा मैं जी लूँ ...
यहाँ वहां इतराती घूमू
अल्हड सी इठला भी लूँ..
गिरती पड़ती मस्त मगन मैं
हरी चुनरिया ओढ़ के...
अपना उद्गम पीछे छोड़ूं...
भेदूं सब चट्टान मैं...
पर नियत में कुछ और लिखा है..
वो जीती जीवन सागर सा ...
बोझिल,सूना सन्नाटा सा...
बेस्वदा वो खारा सा...
न हरी चुनर कोई हरियाली की,
न जीवन का कोई रंग...
न झरने सा संगीत है ...
बंध सीमाओं में खाली - रीते
जाने कैसे दिन बीते...
मार उछालें कितनी चाहे ..
आती लहरें वापस ही...
छोड़ न पायें..तोड़ न पायें...
बंधन सृष्टिकर्ता के...
-विद्या
http://vidyawritesagain.blogspot.com/
हरी चुनरिया ओढ़ के...
ReplyDeleteअपना उद्गम पीछे छोड़ूं...
भेदूं सब चट्टान मैं...
प्रकृति के सुन्दर उपलाम्भों से युक्त हसरत
छोड़ न पायें..तोड़ न पायें...
ReplyDeleteबंधन सृष्टिकर्ता के...
एक सटीक और सार्थक अभिव्यक्ति।
आपकी रचना दिल में उतर गई है।
ReplyDeleteनारी के लिए मछली का तेल बहुत लाभकारी पाया गया है।
11 लाभ हमारे ब्लाग पर देखिए।
हरी चुनरिया ओढ़ के...
ReplyDeleteअपना उद्गम पीछे छोड़ूं...
भेदूं सब चट्टान मैं...
सटीक अभिव्यक्ति.
जो नारी सब के जीवन में सहज ही अनेकों रंग भरती है...वो अपने ही जीवन में रंग भरने के लिए कितना संघर्ष करती है...
ReplyDeleteमार उछालें कितनी चाहे ..
ReplyDeleteआती लहरें वापस ही...
छोड़ न पायें..तोड़ न पायें...
बंधन सृष्टिकर्ता के...
sunder rachna ....
अच्छी रचना,
ReplyDeleteबहुत सुंदर
मार उछालें कितनी चाहे ..
ReplyDeleteआती लहरें वापस ही...
बहुत बढ़िया रचना...
.... ख्वाब देखा करती हैं...
अपना बड़ी प्यारी भूमिका दी है...
सादर बधाई...
जाने कैसे दिन बीते...
ReplyDeleteमार उछालें कितनी चाहे ..
आती लहरें वापस ही...
छोड़ न पायें..तोड़ न पायें...
बंधन सृष्टिकर्ता के..
....bahut badiya bhavpurn rachna..
sundar prastuti hetu aabhar!
दर्द के समंदर में भी
ReplyDeleteवह मछली बन जाती हैं
लड़कियां ख्वाब देखा करती हैं ...
wah.....kahoon to kya kahoon.....
नारी मन की कोमल भावनाओं का सार्थक प्रस्फुटन और सारगर्भित अभिव्यक्ति. भाव प्रणव और सुन्दर, मन को अन्दर तक छू लेने वाली प्यारी रचना. बधाई..
ReplyDeleteytharyh hai ...yahi hai schchai
ReplyDeleteशुक्रिया रश्मि दी..मेरी कविता "हसरत" को वटवृक्ष में स्थान देने के लिये ..
ReplyDeleteशुक्रिया सभी मित्रों का.
सादर.
विद्या जी की कविता के भाव अच्छे हैं पर काव्य की दृष्टि से प्रवाह की कमी लग रही है. कैप्शन में लिखी रश्मि जी की ये पंक्तियाँ बेहद ख़ूबसूरत हैं.....
ReplyDeleteलड़कियां ख्वाब अधिक देखा करती हैं
कोई जान भी नहीं पाता और वे झरना हो जाती हैं
बन जाती हैं कभी ओस की एक बूंद
किसी चाहे हुए चेहरे पर टिक जाती हैं
दर्द के समंदर में भी
वह मछली बन जाती हैं
लड़कियां ख्वाब देखा करती हैं...
ReplyDeleteगहन भावों की सुंदर कविता।
बेहतरीन भावमयी प्रस्तुति.
ReplyDeleteस्त्री जीवन का यथार्थ चित्रण करती सुंदर कविता।
ReplyDeleteनए साल की हार्दिक सुभकामनायें /
ReplyDeleteआपकी पोस्ट आज की ब्लोगर्स मीट वीकली (२५) में शामिल की गई है /आप मंच पर पधारिये और अपने सन्देश देकर हमारा उत्साह बढाइये /आपका स्नेह और आशीर्वाद इस मंच को हमेशा मिलता रहे यही कामना है /आभार /लिंक है /
http://hbfint.blogspot.com/2012/01/25-sufi-culture.html
वाह...बहुत खूब ।
ReplyDelete