पाप पुण्य की परिभाषा भी स्वार्थी होती है
रोग , बुढापा , मृत्यु -
सबसे अपना फायदा निकाल लेती है ...
रश्मि प्रभा
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पाप या पुण्य (लघु कथा)
चाचा राम खिलाड़ी अपनी बूढ़ी गाय को बुरी तरह खींचते हुए भागे जा रहे थे.
मैंने उन्हें रोककर पूछा, "चाचा इतनी जल्दी में कहा जा रहे हो?"
वह बोले, "अरे बेटी यह गाय बूढ़ी हो गई है जाने कब ऊपर चली जाए. अगर यह खूँटे पर ही मर गई तो पाप चढ़ेगा. सोच रहा हूँ कि बाजार में जाकर बेच दूँ."
मैं मन ही मन सोचने लगी, "अगर खूँटे पर इनकी गाय मर गई तो इन्हें पाप लगेगा और बाजार में इनकी गाय को खरीदकर जब कसाई काटेगा तो क्या इन्हें पुण्य मिलेगा?"
संगीता तोमर
हमारी आत्मा ही है जो ... इन सब बातों का दुख मनाती है ... ईश्वर न तो पुण्य से खुश होता है न पाप से दु:खी ..
ReplyDeleteKaisee,kaisee mansikta leke log jeete hain!
ReplyDeleteकलम घिस्सी की रचना यहाँ देख कर अच्छा लगा...
ReplyDeleteपाप और पुन्य सोच की उपज है..
ReplyDeleteजैसे भाव,वैसी सोच।
ReplyDeleteपाप और पुण्य सब हमारी सोच पर निर्भर है..
ReplyDeleteखुद से बाहर निकलें तो सोचें पाप पुण्य की...
ReplyDeleteअच्छी कथा..या कहें व्यथा !!!
पाप और पुण्य , जैसे भाव,वैसी सोच।
ReplyDeletesahi likha aap ne aap aur punat hum khub hi tay kar lete hai
ReplyDeletemarmik.....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteमनुष्य अपने स्वार्थ को किस खूबसूरती से पाप-पुण्य का आवरण चढ़ा परम संतुष्टि पा लेता है और उसकी ओट बन जाते हैं पुरखों के रीति-रिवाज़ ! अपने तर्क को अत्यंत सहजता और सुविधा से तिलांजलि दे देता है वह !
ReplyDeleteबहुत छोटी मगर करूणा और बड़ा संदेश लिए मन को छूती लघु कथा।
धन्यवाद रश्मि आंटी!जो आपने मेरी रचना को इतना सम्मान दिया......आपकी बिटिया कलम घिस्सी.
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