पाप पुण्य की परिभाषा भी स्वार्थी होती है
रोग , बुढापा , मृत्यु -
सबसे अपना फायदा निकाल लेती है ...

रश्मि प्रभा

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पाप या पुण्य (लघु कथा)


चाचा राम खिलाड़ी अपनी बूढ़ी गाय को बुरी तरह खींचते हुए भागे जा रहे थे.
मैंने उन्हें रोककर पूछा, "चाचा इतनी जल्दी में कहा जा रहे हो?"
वह बोले, "अरे बेटी यह गाय बूढ़ी हो गई है जाने कब ऊपर चली जाए. अगर यह खूँटे पर ही मर गई तो पाप चढ़ेगा. सोच रहा हूँ कि बाजार में जाकर बेच दूँ."
मैं मन ही मन सोचने लगी, "अगर खूँटे पर इनकी गाय मर गई तो इन्हें पाप लगेगा और बाजार में इनकी गाय को खरीदकर जब कसाई काटेगा तो क्या इन्हें पुण्य मिलेगा?"


संगीता तोमर

13 comments:

  1. हमारी आत्‍मा ही है जो ... इन सब बातों का दुख मनाती है ... ईश्‍वर न तो पुण्‍य से खुश होता है न पाप से दु:खी ..

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  2. Kaisee,kaisee mansikta leke log jeete hain!

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  3. कलम घिस्सी की रचना यहाँ देख कर अच्छा लगा...

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  4. पाप और पुन्य सोच की उपज है..

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  5. जैसे भाव,वैसी सोच।

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  6. पाप और पुण्य सब हमारी सोच पर निर्भर है..

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  7. खुद से बाहर निकलें तो सोचें पाप पुण्य की...

    अच्छी कथा..या कहें व्यथा !!!

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  8. पाप और पुण्य , जैसे भाव,वैसी सोच।

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  9. sahi likha aap ne aap aur punat hum khub hi tay kar lete hai

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  10. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!

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  11. मनुष्य अपने स्वार्थ को किस खूबसूरती से पाप-पुण्य का आवरण चढ़ा परम संतुष्टि पा लेता है और उसकी ओट बन जाते हैं पुरखों के रीति-रिवाज़ ! अपने तर्क को अत्यंत सहजता और सुविधा से तिलांजलि दे देता है वह !
    बहुत छोटी मगर करूणा और बड़ा संदेश लिए मन को छूती लघु कथा।

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  12. धन्यवाद रश्मि आंटी!जो आपने मेरी रचना को इतना सम्मान दिया......आपकी बिटिया कलम घिस्सी.

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