मन के बादलों में भरे कुछ एहसास
अद्रा नक्षत्र की बारिश की तरह बरसना चाहते हैं
किसी पत्ती पर
दूबों पर
नदी में सागर में
झोपड़ी पर ....
किसी चेहरे पर
किसी के बालों में सुगबुगाते हुए .... कविता बन उतरना चाहते हैं
किसी को इंतज़ार जो है पढ़ने का ...
रश्मि प्रभा
अजय गर्ग
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ज़िंदा कविता की तलाश
बहुत दिनों से नहीं पढ़ी
कविता जैसी कोई कविता
वो कविता
जिसे पढ़कर लगे
मैं हो आया हूं
उन गली-कूचों में
जहां बसते हैं मिट्टी में सांस फूंकते लोग
जहां आज भी ठंडक देती है हवा
जहां नहीं भूले हैं लोग
मनुष्य होने का मतलब
कविता
जिसे पढ़ूं तो लगे
कि छू आया हूं उन संवेदनाओं को
जो अक्सर रह जाती हैं अछूती
आडम्बर परोसने की होड़ में
जो जुड़ी रहती हैं धरती से
और आकाश से करती हैं बात
हाथ बढ़ाकर सहारा देते समय
नहीं देखतीं जो दिन और रात
कविता
जो रची न गई हो
केवल रचे जाने के लिए
जो न तोड़े दम
कवि से आलोचक
आलोचक से किताब तक के सफर में
जो हो शाश्वत इस तरह
कि युगों के सीमाएं भी भूल जाएं अपने अर्थ
ऐसी कविता
जो न हो
आत्ममुग्धि के लिए बुना हुआ शब्दजाल
उस कविता के शब्द
अर्थ गढ़ते हों
और उन अर्थों में
जीवन के असल रंग झरते हों
जिसके शब्द सपनीले न हों बेशक
लेकिन सपनों की बात करते हों
कविता
जो पहुंचे उन तक
जिनकी वो बात करती है
ताकि लगे उन्हें भी
कि उनके दुःख-दर्द का है साझीदार कोई
पहुंच रही है उनकी पीड़ा
उन तक जो कहते हैं कि हमने
उठाया है अपनी कलम चलाकर
क्रांति लाने का बीड़ा
सच!
बहुत दिनों से
नहीं पढ़ी कोई ऐसी कविता
जिसे पढ़कर लगे कि
सचमुच पढ़ी है कोई कविता
अजय गर्ग
सुन्दर कविता। अजय जी की कविता कुछ सोचने पर मजबूर करती है---- कोइ रहे न रहे भाव कभी मरते नही जो जिस तरह देखता है उसमे उसी तरह कविता की धारा बह निकलती है। अजय जी को बधाई ।
ReplyDeletesarthak chintan se upaji rachna ..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर कविता ...बेशक बहुत दिनों से ना पढ़ी हो...मगर आज पढ़ ली...
ReplyDeleteसुन्दर भूमिका रश्मि दी..
सादर.
ख़ूबसूरत प्रस्तुति, आभार.
ReplyDeletekavita ke madhyam se sundar kavita ...bahut badhia.
ReplyDeleteभावो और अक्षर के मेल से कविता का जन्म होता हैं ....और आपकी कविता में ये सब पढ़ने को मिला ...बहुत खूब
ReplyDeletesundar..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर कविता ...
ReplyDeleteकविता की तलाश में,सुंदर कविता।
ReplyDeleteबहुत अच्छी लगी .........
ReplyDeleteवाह!
ReplyDeleteआप सबका आभार इस प्रयास को पसंद करने के लिए... और इस लिंक के ज़रिये मेरे ब्लॉग पर आकर अन्य रचनाओं पर नज़र डालने के लिए...
ReplyDeleteरश्मि जी, सचमुच वटवृक्ष है यह कोना... जिसकी छांव में अनाम पुष्प भी पल्लवित होते रहते हैं। धन्यवाद!!!
wah boht achi kavita
ReplyDeleteकविता के माध्यम से बहुत सुंदर कविता ....
ReplyDeleteजिसके शब्द सपनीले न हों बेशक
ReplyDeleteलेकिन सपनों की बात करते हों..
वाकई आपने बड़ी बेबाक सच्चाई लिखी है। अब न वो कवि रहे, न रही वह कविता। अफसोसजनक लेकिन सच है ये।
एक ऐसी कविता पढ़वाने के लिये आभार!
ReplyDeleteकविता के लिए कविता ---- सुन्दर शब्द रचना
ReplyDeleteआपको सपरिवार होली की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ .....!!
http://savanxxx.blogspot.in