माना ज़माने का है दस्तूर अपना
एक कदम उस ओर उठाकर तो देखो ...
रश्मि प्रभा
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ज़माने से रिश्ता बनाकर तो देखो
ज़माने से रिश्ता बनाकर तो देखो
समझ बूझ से तुम निभाकर तो देखो
यह पुल प्यार का एक, नफ़रत का दूजा
ये अन्तर दिलों से मिटाकर तो देखो
गिराते हो अपनी नजर से जिन्हें तुम
उन्हें पलकों पर भी बिठाकर तो देखो
उठाना है आसान औरों पे ऊँगली
कभी खुद पे ऊँगली उठाकर तो देखो
न जाने क्या खोकर है पाते यहाँ सब
मिलावट से खुद को बचाकर तो देखो
न घबराओ देवी ग़मों से तुम इतना
जरा इनसे दामन सजाकर तो देखो
देवी नांगरानी
http://charagedil.wordpress.com/
गिराते हो अपनी नजर से जिन्हें तुम
ReplyDeleteउन्हें पलकों पर भी बिठाकर तो देखो
उठाना है आसान औरों पे ऊँगली
कभी खुद पे ऊँगली उठाकर तो देखो
बहुत बढि़या प्रस्तुति ।
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ।
ReplyDeleteन जाने क्या खोकर है पाते यहाँ सब
ReplyDeleteमिलावट से खुद को बचाकर तो देखो
बहुत खूब
उठाना है आसान औरों पे ऊँगली
ReplyDeleteकभी खुद पे ऊँगली उठाकर तो देखो
जिस दिन ये बात समझ आ जाये जीना आसान हो जाये…………शानदार गज़ल्।
बहुत सुंदर संदेश देती भावपूर्ण पंक्तियाँ!
ReplyDeleteगिराते हो अपनी नजर से जिन्हें तुम
ReplyDeleteउन्हें पलकों पर भी बिठाकर तो देखो
बहुत सुंदर रचनाएँ हैं!
ज़माने से रिश्ता बनाकर तो देखो
ReplyDeleteसमझ बूझ से तुम निभाकर तो देखो
yahi to kar rahe hain......
khubsurati se likha ahsaas...
ReplyDeleteसुंदर संदेश देती पंक्तियाँ
ReplyDeleteगिराते हो अपनी नजर से जिन्हें तुम
ReplyDeleteउन्हें पलकों पर भी बिठाकर तो देखो
उठाना है आसान औरों पे ऊँगली
कभी खुद पे ऊँगली उठाकर तो देखो
वाह, बहुत सुन्दर !
बहुत खुबसूरत रचना अभिवयक्ति.........
ReplyDeleteबहुत अच्छी रचना |
ReplyDeleteआशा
राशिम प्रभा जी के स्नेह का जादू है जो सर चढ़ कर बोल रहा है। साहित्य यकीनन जोड़ने का काम करता है पर इसके लिए ऐसे नेक प्रयासों की ज़रूरत है, जो वटवृक्ष के माध्यम से राशिम जी कर रही है। मैं सभी सुधी पाठकों की टहे दिल से शुक्रगुजार हूँ मेरी भावनाओं को अपनाने के लिए। नव व्रश की शुभकामनोन के साथ
ReplyDeleteये कैसा नशा है , ये कैसी खुशी है
नए साल में हर कोई झूमे – गाये
देवी नागरानी