माना ज़माने का है दस्तूर अपना
एक कदम उस ओर उठाकर तो देखो ...



रश्मि प्रभा


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ज़माने से रिश्ता बनाकर तो देखो


ज़माने से रिश्ता बनाकर तो देखो
समझ बूझ से तुम निभाकर तो देखो

यह पुल प्यार का एक, नफ़रत का दूजा
ये अन्तर दिलों से मिटाकर तो देखो

गिराते हो अपनी नजर से जिन्हें तुम
उन्हें पलकों पर भी बिठाकर तो देखो

उठाना है आसान औरों पे ऊँगली
कभी खुद पे ऊँगली उठाकर तो देखो

न जाने क्या खोकर है पाते यहाँ सब
मिलावट से खुद को बचाकर तो देखो

न घबराओ देवी ग़मों से तुम इतना
जरा इनसे दामन सजाकर तो देखो

devi_nangrani.jpg




देवी नांगरानी
http://charagedil.wordpress.com/

13 comments:

  1. गिराते हो अपनी नजर से जिन्हें तुम
    उन्हें पलकों पर भी बिठाकर तो देखो

    उठाना है आसान औरों पे ऊँगली
    कभी खुद पे ऊँगली उठाकर तो देखो
    बहुत बढि़या प्रस्‍तुति ।

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  2. बहुत ही सुन्‍दर प्रस्‍तुति ।

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  3. न जाने क्या खोकर है पाते यहाँ सब
    मिलावट से खुद को बचाकर तो देखो

    बहुत खूब

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  4. उठाना है आसान औरों पे ऊँगली
    कभी खुद पे ऊँगली उठाकर तो देखो
    जिस दिन ये बात समझ आ जाये जीना आसान हो जाये…………शानदार गज़ल्।

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  5. बहुत सुंदर संदेश देती भावपूर्ण पंक्तियाँ!

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  6. गिराते हो अपनी नजर से जिन्हें तुम
    उन्हें पलकों पर भी बिठाकर तो देखो

    बहुत सुंदर रचनाएँ हैं!

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  7. ज़माने से रिश्ता बनाकर तो देखो
    समझ बूझ से तुम निभाकर तो देखो
    yahi to kar rahe hain......

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  8. सुंदर संदेश देती पंक्तियाँ

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  9. गिराते हो अपनी नजर से जिन्हें तुम
    उन्हें पलकों पर भी बिठाकर तो देखो

    उठाना है आसान औरों पे ऊँगली
    कभी खुद पे ऊँगली उठाकर तो देखो

    वाह, बहुत सुन्दर !

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  10. बहुत खुबसूरत रचना अभिवयक्ति.........

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  11. बहुत अच्छी रचना |
    आशा

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  12. राशिम प्रभा जी के स्नेह का जादू है जो सर चढ़ कर बोल रहा है। साहित्य यकीनन जोड़ने का काम करता है पर इसके लिए ऐसे नेक प्रयासों की ज़रूरत है, जो वटवृक्ष के माध्यम से राशिम जी कर रही है। मैं सभी सुधी पाठकों की टहे दिल से शुक्रगुजार हूँ मेरी भावनाओं को अपनाने के लिए। नव व्रश की शुभकामनोन के साथ

    ये कैसा नशा है , ये कैसी खुशी है
    नए साल में हर कोई झूमे – गाये
    देवी नागरानी

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