
Amitabh Bachchan
वह चुटकियों में हल निकाल देता है
चालाक है, कीचड़ उछाल देता है ।
घुप्प अंधेरा हर तरफ कायम रहे -
आवरण सूरज पे डाल देता है ।
बात जो करता अमन की,चैन की-
उसको वह घर से निकाल देता है ।
अपना दोगलापन छुपाने के लिए-
मौन-ब्रत में खुद को ढाल देता है ।
आपसी रिश्ता निभाने को प्रभात -
न्याय को भी मुस्कुराके टाल देता है ।
- देश के ऐसे व्यवस्थापक को धिक्कार और देश की बहादुर बेटी दामिनी को भावभीनी श्रद्धांजलि ।

तो क्या जुर्म छुप गया उसमें
क्या करेगा ओ नादान उस दिन
जब तेरा ज़मीर हिसाब करेगा तुझसे
मुझे श्रद्दांजली नहीं चाहिए
एक वादा चाहिए तुम सब से
दुनिया की हर बेटी में मुझे देखना
क्या मै विश्वास करूँ ?नहीं भूलोगे तुम सब
सिर्फ बातें और नारे बन कर न रह जाऊं मै
हर बेटी में मेरा ही अंश देखना ---देखोगे न
उन बारह दिनों का संघर्ष --सार्थक होगा
फिर किसी दामिनी को श्रधांजली न देनी पड़े
मै झकझोर के जगा रही हूँ तुम सब का ज़मीर -------दामिनी
हर बात को भूल जाना क्या इतना आसान है ??
Will not say R.I.P. for "the girl"
The girl has not died..
Instead she has moved to a better world where no rapes happen..
Still being in this world, really feeling sad for her.. :(
"मेरा भी हिस्सा है उस में, सब कुसूर उन का नहीं है
मौत मुझ को दे, मगर उन को भी उन का भाग दे दे
देश मेरा मर गया है, कोई उस को आग दे दे
वो ही मुंसिफ़, वो ही क़ातिल, उन से क्या उम्मीद तुम को
खड्ग उठा, हुंकार कर, भारत को इक नव-राग दे दे
देश मेरा मर गया है, कोई उस को आग दे दे"
मेट्रो उनकी है
इंडिया गेट उनका
दिल्ली उनकी है
सारा देश उनका
फिर राष्ट्र को
क्या समर्पित ?
आप एक ही काम कर सकते हो हाथ मैं मोमबती लेकर मरने वाली बेटी बहु के लिए दुआ और अत्मा की के लिए प्राथना अब बस भी करो और घर से निकल के इस सरकार के कपडे खोल दो अपना दुर्गा रूप दिखा दो कहने को तुम दुर्गा नहीं हो हम देखना चाहते हैं इस दुर्गा रूप को इस इन्टरनेट की और फसबूकिया दुनिया से बहार निकल के कुछ बोलो
वो बच्ची , दामिनी , निर्भया तो नहीं मरी . निश्चिंत ही . वो तो सदा ही जीवित रहेंगी हमारे बीच , हमेशा ही .
बल्कि
मरे तो हम सब है , ये समाज है , ये देश है , यहाँ का कानून है , यहाँ की सरकार है , यहाँ का total system है , यहाँ की सोच मर गयी है . और तो और , यहाँ का सच्चा पुरुष ही मर गया है .

और हमें ये मनना चाहिए कि इस दिन के लिए ये सरकार /व्यवस्था और
समाज सभी लोग दोषी हैं!
जब तक बेगुनाह रूह को न कोई इन्साफ मिलेगा |
If the Govt can send the victim Singapore for better treatment,
why not they send the accused to Saudi Arabia for better justice ?
पुरुष का 'बल' और स्त्री का 'प्रारब्ध'........आखिर कब तक ...... ??


लोग बहुत कुछ लिख रहे है... पर मेरे पास शब्द नहीं... मैं ये नहीं कहूँगा की मुझे उसके मौत का गम है, क्योंकि हाँ है... पर उसकी हालत के हिसाब से उसकी मौत की ख़ुशी ज्यादा है... पर न मैं खुश हो पा रहा हूँ और न मैं दुखी हो पा रहा हूँ... क्योंकि मैं सही मायनों में बहुत डरा हुआ हूँ...
दुनिया वाले मरते हुए को बचाने की बजाए उसे तमाशा बनाके देखते हैं फिर जब वो मर जाए तो वही लोग धरना प्रदर्शन करके तथाकथित इन्सानियत का ड्रामा करते हैं...परमात्मा एसे बुद्धीजीवियों को सद्बुद्धि दे!

अरे सब बेकार की बातें हैं, तुम्हारी जान, तुम्हारी कुर्बानी सब ख़त्म...
सच्चाई ये है कि जब आधी दिल्ली तुम्हारे लिए बावरी हुयी जा रही थी, उस समय देश के कई कोनों में बीसियों बलात्कार ज़ारी थे, लोग बलात्कार केकारणों को लेकर ब्लू-प्रिंट तैयार कर रहे थे... देश के नेता अपनी अपनी बेटियाँ गिना रहे थे, और महामहिम का कहना था कि सरकार हर जगह चल के नहीं जा सकती, प्रधानमंत्री के अनुसार सब "ठीक था".... और एक महिला वैज्ञानिक तुमसे ही सवाल कर रही थी कि जब तुम ७ लोगों से घिर गयी थी तो तुमने समर्पण क्यूँ नहीं कर दिया...
मैं तुमसे किस मुंह से कहूं कि तुम्हारे जाने के बाद कोई क्रान्ति आने वाली है, जबकि जानता हूँ ऐसा कुछ नहीं होने वाला... आज और कल देश के लोग तुम्हें आखिरी बार याद करेंगे... एक तरफ तुम्राई अंतिम यात्रा में कुछ लोग आंसू बहा रहे होंगे और दूसरी तरफ इसी शहर के किसी दुसरे कोने में एक बलात्कार हो रहा होगा...
अलविदा, मैं खुश हूँ कि तुम अब ऐसी जगह जा रही हो जहाँ शायद कोई किसी का बलात्कार तो नहीं करता...
mujhe likhanaa nahi aataa ..... lekin jahaan mere jajbaat dikhate hain ......... unhe main apanaa hi samajhati hoon .............
विभा रानी श्रीवास्तव
आन्दोलन होना चाहिए था ,दामिनी या निर्भया जो हो उसका बेहतर इलाज़ हो बेहतर हॉस्पिटल में जहां इलाज़ हो रहा था वहाँ मौत तो निश्चित थी ......... और आन्दोलन ना भड़के इसलिए उन्हें देश से बाहर भेज दिया गया

Rastogi Mangla
Damini- Mai ja raheehun..
meree Aatma to milgaya parmatma.. Mile jakhmo ka hisaab abhee wakee hai ..hai yahee bas kahena ...mita hai shareer mera...sangharsh ye jaree rahe... Lakho ke dilo me gunje yahee awaaj...desh kee har Maa beti rahe surakshit.. gunahgaro hojao sabdhan... Vyarth na jaye sangharsh... Mera Insaaf abhi wakee hai .. Insaaf abhi wakee hai...!

श्रद्धांजलि !!
कि आप इसे एक पीढ़ी जानकर सहेजकर रख लें
कि गंगा में विसर्जन होना ही अंतिम कर्तव्य हो
कि एक तस्वीर बरसी और श्राद्ध पर चुप रह जाए
कि साल में एक बार ही आप कातर हो
लौटें अपनी स्मृतियों में
अबकी बार आप केवल माँ नहीं हैं
अब की बार आप केवल पिता नहीं हैं
अब की बार आप केवल एक भाई या बहन नहीं हैं
अब की बार चिता एक क्षण नहीं है
जो गया तो फिर नहीं आएगा
आप सबकी लाशों में पहली बार
कुछ हिला है
एक कन्धा कंधे की तरह दिखा है
इस बार आप जनता की तरह काबिल हुए हैं
इस बार आप भीड़ नहीं हैं
भेड़ नहीं हैं
इस बार 'मैं' स्त्री
आपको सम्मान और आशाओं से देख सकती हूँ
आपके चेहरे पहली बार शीशे की तरह हुए हैं
और इसमें मैं खड़ी हूँ
शरीर से छलनी
एक रूह
तुझको अग्नि के हवाले कर के ....
कभी अपनी छाती का लहू पिलाया था मैने ..
तेरी वो नटखट आँखें ..
वो चेहरे का भोलापन .
वो प्यारी -सी मुस्कान ?
वो तोतली जुबान ----
अब खामोश है ...
ठंडा- पन लिए ..सर्द ...
**************
मेरा सफ़ेद पडता मुंह
आँखों से बहती अश्रु धारा
बिदा की अंतिम घडी
तेरे नाम की अंतिम अरदास ...!
*************
मैं स्तब्ध ! आवाक ! तुझे जाते हुए देखती रही ....
होठ कांपकपाये ..शरीर थरथराया ..
दिमांग शून्य ...???
************
खप्पचियों से बंधा, सफ़ेद कफ़न ....
ये लिबास तो मैने कभी चाहा नहीं था ?
फिर क्यों आज तेरे लिए यही जोड़ा मुकरर हो गया ?
"राम नाम सत्य हैं "
अचानक ! इस कर्कश ध्वनी से मेरे कान बजने लगे ..
"अरे , कोई रोको उसे "रॊ- ऒ- ओ- को
"यह उम्र है जाने की ....?"
अभी उसने देखा ही किया है ..?
अभी तो उसके दूध के दांत भी नहीं टूटे ..?
और जालिमो ने उसके अंगो के टुकड़े -टुकड़े कर दिए ...?
अभी तो हाथो में मेंहदी भी नहीं लगी ...?
और राक्षसों ने उसे चिता पे लिटा दिया ...?
" कोई रोको उसे ..कोई रोको ..यह उम्र है जाने की ..."
क्यों नहीं थूक कर निकल गयीं उनके चेहरों पर ?
कौन जाने औरतें तुम्हे ही अपना आदर्श मान बैठतीं .......
तुम फिर भी खुशकिस्मत थीं तुम्हें उस दौर के मनमोहन ने बचा लिया
मिलेगी अपराधियों को
दामिनी के जाने के बाद
फिर उस पर हुए जुल्म को
कही हम भूला न दे देशवासी


"सफदरजंग अस्पताल में बहुत काबिल डाक्टर हैं। पर देश का सबसे बड़ा, अपने विशेषज्ञों के लिए अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर मशहूर अस्पताल 'एम्स' है, सफदरजंग से हाथ भर की दूरी पर, सड़क के ठीक उस पार। हम तो पीड़िता (अब मृतका) को वहां तक नहीं पहुंचा सके। ऐसे में कोई क्यों न शुबहा करे कि सारे देश को हिला देने वाले इस दर्दनाक, शर्मनाक, नाजुक और भावुक मामले में भी नेता विदेश में इलाज के नाम पर राजनीति कर गए!"
उसने तिल-तिल तड़पते हुए भी हमें ताकत दी, लेकिन आज हम सब ने (कहीं न कहीं हम भी गुनहगार हैं) उसके परिवार वालीं से उनकी ताकत छीन ली। अब हमारी कोशिश और प्राथमिकता यह होनी चाहिए कि उसके द्वारा दिखाए गए आईने में सरकार और समाज के जो घिनौने चेहरे सामने आए हैं, उन चेहरों का या तो हम इलाज शुरू करें या फिर सर-कलम कर दें। वे चेहरे अपने वर्तमान रूप में तो महामारी की तरह घातक हैं। वक़्त खत्म होने से पहले इस महामारी का कुछ तो करना होगा। नहीं तो हम आने वाले दिनों में इसी तरह शोक व्यक़्त करते हीं रह जाएँगे और फिर किसी निरपराध और मासूम की जीजिविषा और जीवट को देखकर सुखद हैरानी धारण करेंगे और "निर्भया" कहकर सुकून पाएँगे बस...
जाओ "अमानत"... तुम्हें हम सहेज न सके... जाओ... हमें मुआफ़ करना.... RIP
इस तरह इन 6 नामर्दों ने पूरी पुरुष जाती को अपराधी
बना दिया! हमें शर्म है धिक्कार है अपने पुरुष होने पर!

मर तो कब से रही थी ,
मर तो कब की चुकी थी ,
मारा तो कई बार गया था ,
आज तो ज़िंदा हुई हूँ ,
अब न मरूँगी मै,
अब न मरूँगी मै ..........
बलात्कारियों से सामना करके आत्म-सम्मान के लिए संघर्ष करने वाली ,भारतीय समाज को झकझोर देने वाली, दिल्ली पुलिस की अकर्मण्यता को उजागर करने वाली युवती अब हमारे मध्य नहीं रही.आज प्रातः 2:15 बजे उसने अंतिम साँसें लीं. इसके साथ ही वह भारतीय समाज के समक्ष अनेक प्रश्न छोड़ गई है. देखना यह है कि क्या यह मार्मिक बलिदान समाज को कोई सार्थक दिशा देगा?
नम आँखों से विनम्र श्रद्धांजलि !
मैंने पहले दिन ही कहा था -- मैं जिंदा रहना चाहती हूँ !मैं मरी नहीं हूँ ! मुझे मरने देना भी मत ! देह छोड़ी है मैंने , रूह तुम सबके साथ है ! मुझसे पहले भी मुझ जैसी हजारों देहें ज़लील हुई , जलाई गयी , आत्महत्या करने पर मजबूर हुई ! उनकी रूहें भी सामने हैं !
इस लड़ाई को जीतकर , समाज को बेहतर बनाने की एक और शुरुआत हो ! समाज की स्वस्थ मानसिकता बने , उसकी नींव गढ़ने के लिए हम जैसी लाखों बहनों को चाहो तो शहीद कह देना !
-- कविता गुप्ता के साथ हम सब
आज कुछ लफ्ज़ दे दो मुझे
ना जाने मेरी कविता के
सब मायने
कहाँ खो गये हैं
What an Incredible INDIA where a daughter is not safe inside the WOMB or OUTSIDE.What a Shame to Indian Govt.They failed as a leader.
बेटी बचाओ........... किस लिये???????
lekin aaj to sach me kaala din hai.. paapiyon sharm karo doob maro..
Adarsh Gupta
unko itni asani se fnsi nai hona chaiye....unko aisa kare ki wo log khud maut mange
सरकारें ना सही , पर देश शर्मिंदा है ....
यूं तो संजोये ख्वाबों की ये मंजिल नहीं है
पर अब जाने का आगे ....... दिल नहीं है
कुछ तो जी भी भर गया .. हमारा जहां से
कुछ ये दुनिया भी रहने के काबिल नहीं है_______अमित हर्ष
. . . . दिवंगत दामिनी के दर्द को समर्पित ... अश्रुपूर्ण श्रद्धांजलि . . . .
Khalil Pathan
RIP Damini You are at a better place now...
आज हर तरफ इक दुःख व्याप्त है और हर आँख है नम ..........कहा जा रहा है की आज जिंदगी हार गई लेकिनं मैं कहूँगी की आज इक जिंदगी ने अपनी आहुति देकर सब को जगा दिया है इक नींद से .......उस बच्ची की शहादत तभी सार्थक होगी जब हम सभी केवल औपचारिक श्रद्धांजली ना देकर अपने अंतर्मन में झांके आत्मचिंतन करे और अपने से ही शुरुवात करे इक पहल की अपने घर से ही स्त्री को सम्मान देने की उसे सबल बनाने की और साथ ही हरेक स्त्री को खुद अपने लिए लड़ने की शक्ति पैदा करनी होगी स्वयं में इस सोच को निकल फेंकना होगा दिलो से की गर किसी स्त्री की अस्मत लुट जाती है तो वो कलंकित हो गई या उसके लिए कुछ शेष नहीं बचा है ........साथ ही पुरुषो को भी अपनी इस सोच को बदलना है जो इक स्त्री के कपड़ो पर जाके अटक जाती है .......क्या स्त्री के कम कपडे पहनने से उन्हें अपने आप पर नियंत्रण नहीं रह पाता अपने इक अंग अपनी इक वृति उनकी .......लड़की के कपड़ो के अधीन है??.........आज दामिनी ने जो जागृति जो आक्रोश हरेक मन में पैदा किया है उसे बुझने नहीं देना है वरन ताकत बनाना है अपनी और लड़ना है संगठित हो बिना इक दूजे पे दोषारोपण किये बगैर और अपने संस्कारों एवं संस्कृति को साथ लिए लड़ना है ऐसी विसंगतियों से उन्हें उखड फेंकना है जड़ से ! लड़कियों के चलन या शराब को दोष देकर हम पीछा नहीं छुड़ा सकते अपने कर्तव्य से .........इक शराबी नशे में होने पर भी अपनी माँ या बहन के साथ दुर्व्यहार नहीं करता तो फिर बाहर क्यों ??........आज नहीं सोचा हमने आज नहीं झाँका अपनी अंतरात्मा में तो फिर कभी नहीं कर पायेंगे पहल इन विकृतियों इन घिनोनी मानसिकता से लड़ने की ..........तो आये हम सभी मिलकर इक पहल करे अपने घरो से ही ............और दें अपनी उस बच्ची को सच्ची श्रद्धांजली सही मायनों में ..........शुभं
Varron Attrri
And i request to all girls, womens that if they find anybody who is doing wrong things , eve teasing , trying to create trouble to any women girl. Don't just oppose it but also kill that bastard on the spot, or beat him like hell. even he dare to dream about a girl.
,बहुत सही कहा लफ्ज़ ही जैसे चुप हो गये हैं सबके .... हम सब आशंकित थे कुछ भी हो सकता के लिए तैयार भी , फिर भी दिल में एक अपने के जाने सी हुक उठ गयी हैं एक आक्रोश जनम ले रहा हैं बहुत कुछ करने को उतावला हो रहा हैं मन परन्तु यह सिस्टम , यह समाज की रिवायते हमेशा स्त्री का रास्ता रोकती आई हैं .... ख़ामोशी भीतर पाँव पसार रही हैं
अगर अब न चेते तो यह समाज रसातल में चला जायेगा उसके जिम्मेदार हम -तुम होंगे .......दामिनी का बलात्कार नही हुआ सामाजिक मूल्यों का बलात्कार हुआ हैं ......... मन बहुत उद्ववेलित हैं ....

kyonki gunah us ladki ne nahin kiya jo wo sharmindagi se munh chhupae us ne to tab tak jang ki jab tak us ki saans baqi thi ,,,please

Democratic country INDIA............ BY THE PEOPLE, FOR THE PEOPLE, TO THE PEOPLE..........(PEOPLE refers here the REPIST ONLY........)
दामिनी...ज़िंदा है!
जीने की तमन्ना थी उसे ...
मृत्यु सिर पर मंडरा रही थी फिरभी!
आँखें बंद होने जा रही थी फिरभी!
उसे अपने नाम की परवाह नहीं थी...
चाहे 'दामिनी' कहलाई जा रही थी फिरभी!
जब अंत निकट, और निकट आया...
उसे बचाने के की लाख कोशिशें होती रही फिरभी!
विदेश स्थानांतरीत होना भी काम ना आया...
चली गई..हम करते रहे ईश्वर से प्रार्थनाएं फिरभी!
फिरभी..नहीं!...मरकर भी वह ज़िंदा है आज...
न्याय मांग रही है, खामोश हो गई है फिरभी!
चाहती है वह, फिर कोई न कहलाएं दामिनी...
दुष्टों का सर्वनाश हो..खुद चाहे बन गई दामिनी फिरभी!
ये मानवता की मौत है,संवेदनाओं की मौत है,
संस्कारों की मौत है,और मौत है हम सबकी आत्मा की ...
श्रद्धांजलि
एक दर्द भरा हैं सीने में
ReplyDeleteक्या खाक मजा हैं जीने में .......
शब्द ही नही हैं ...... वोह अपनी नही थी पर अपनी सी लगने लगी थी
.
.
.तुम ! हाँ तुम !
मेरी कुछ भी तो नही थी
पर मैंने तुम्हारे
दर्द को ,
हर पल सहा
प्रसव पीड़ा सा!!
ना जाने
कितनी बार
अपने अपनों से
तुम्हारे होने के /
न होने के
प्रश्न पर
विवाद किया
तुम मेरी
कुछ भी तो नही थी !!
फिर भी
मेरी आँखे क्यों
बरस रही हैं
मेरा गला क्यों
रूंध रहा हैं
तेरे जाने से .........
तुम मेरी
कुछ भी तो नही थी !!.............................नीलिमा
जो लोग आज जनता को प्रदर्शन करने से रोक रहे हैं, वे चुनावी दिनों में उसका इंतजार क्यों करते हैं?
ReplyDelete.
.बहुत कठिन समय है!
कौन कहता मर गयी
ReplyDeleteदामिनी
हर धड़कते दिल में जिन्दा
दामिनी
बुझ रही थी आग जो
विद्रोह की
और दहका गयी
दामिनी--------
"ज्योति खरे"
सार्थक रचनाओं का संग्रह-----
ReplyDeleteकाश मेरी भी आज की रचना होती
शब्द है ,अर्थ है पर सब मौन से लगते हैं ..इतना विश्वास कभी नहीं टूटा था हालातों से ..अब हर बात का यकीन होना मुश्किल लगता है ..........
ReplyDeleteशोकमग्न है सारा देश, ऐसे में वटवृक्ष की इस पहल का स्वागत, आशा है यहाँ नारी का स्वर कभी मंद नहीं पड़ेगा !
ReplyDeleteविनम्र श्रद्धांजलि .....
ReplyDeleteयदा यदा ही धर्मस्य ग्लानीभाबती भारता अभ्युथानम धर्मस्या तदाताम्नन
ReplyDeleteभगवान् श्रीकृष्ण ने शिशुपाल की 99 गलती माफ़ कि थी! वो द्वापर युग की बात थी! ये कलयुग है तो इसमें 1099 तक गलतियां माफ़ की जा सकती हैं! युग युग का फर्क तो होता ही है! लेकिन एक बात निश्चित है की पाप के घड़े को भरना ही होता है! और ऐसा लगता है की ये कांग्रेस रुपी शिशुपाल का अब पाप का घड़ा भर चुका है! और ये जनता रूपी श्रीकृष्णा इस शिशुपाल की गर्दन काटने को बेताब है!
जय श्री कृष्णा!
वो अनाम लड़की , जो मेरी कुछ न होते हुए भी मुझ से जुड़ गयी थी . मेरे परिवार से जुड़ गयी थी ... जो अब नहीं रही ...लेकिन मेरा ऐसा विश्वास है की की वो हर भारतवासी के मन में एक अनिश्चित काल के लिए जीवित रहेंगी . मेरा और मेरे परिवार का उस पुन्य आत्मा को प्रणाम .बच्ची ने मन को रुला दिया है .
ReplyDeleteभावभीनी श्रधांजलि |
ReplyDelete:(
ReplyDeleteन्याय की मांग बनी रहे !
usay sacchi shardhanjali tab hi milegi jab andolan jari rahe
ReplyDeleteDoshiyon ko sakht Saja aur samaj ki mansikta mein badlav lana hoga...varna isi tarah damini ki maut hoti rahegi..kahin na kahin
ReplyDeleteab to ye comments study karne me sarm aa rahi hai
ReplyDelete:(
ReplyDeleteभावभीनी श्रधांजलि!!
अब जगाने नहीं सबके जागने का समय है ...
ReplyDelete..जागरूकता भरी सार्थक प्रस्तुति के लिए आपका आभार!
दामिनी के बलिदान को अश्रुपूरित श्रद्धा सुमन!
बेटी दामिनी,
ReplyDeleteहम तुम्हें मरने ना देंगे
जब तलक जिंदा कलम है.
श्रद्धांजलि का एक फूल मेरे परिवार का भी
यह आपने बहुत अच्छा किया। एक साथ सभी के विचार आ गये।
ReplyDeleteशानदार अभिव्यक्ति,
ReplyDeleteजारी रहिये,
बधाई।
यह शानदार अभिव्यक्ति है ? - आह !!!
ReplyDeletebhava bhini sradhanjli
ReplyDeleteतम आज गहनतम हैं।
ReplyDeleteस्तब्ध आम जन हैं।
हौसले अभी टूटे तो नहीं,
हर आंख लेकिन नम हैं।
--http://goo.gl/pRFhY
बलिदान व्यर्थ ना जाये अब हमें यही सुनिश्चित करना है. यही श्रधांजली होगी हम सब की तरफ से.
ReplyDeleteसाहस करके पढ़ना पड़ा। हर किसी की अनुभूति भीतर तक उतरती चली गयी ....ताजे रिसते व्रणों को छीलती चली गयी .....किंतु मैं आश्वस्त हुआ कि इस सबके पश्चात् भी चेतना शेष है कुछ लोगों में। मानवता मरी नहीं ......लोगों की करुणा ...लोगों का क्रोध साक्षी है इस बात का। बस! यह ज्योति जलती रहनी चाहिये। किसी ने बताया वेदना था नाम दामिनी का? हमारे लिये तो वह दामिनी भी है वेदना भी और वन्दना भी। अकल्पनीय वेदना को भोगने वाली वीरांगना हमारी वन्दना। जाओ बेटी! जहाँ गयी हो वही सर्वाधिक और एकमात्र सुरक्षित स्थान है तुम्हारे लिये। हम तो कापुरुष निकले। तुमसे क्षमा माँगने के लायक भी नहीं।
ReplyDeleteसंघर्षरूपा को श्रद्धांजलि..
ReplyDeleteहम जितना कहे उतना कम है... हम शोक व्यक्त कर रहे है, हम रोष प्रकट कर रहे है पर उन दरिंदों द्वारा दिए दर्द को जो उसने सहा होगा उसे सोंच के मन काँप जाता है... सिर्फ एक महीने पहले मेरी शादी हुई है और मैं अपनी पत्नी से कहता हूँ की तुम्हे घर से बाहर नहीं निकलना है... जो भी काम हो मुझे बताओ... मैं भी अगर साथ होता हूँ तो दिन ढलने से पहले वापस आने की बात करता हूँ... वो लड़की मेरी कुछ नहीं लगती थी, पर उसकी मौत ने मुझे अन्दर तक भयभीत किया है... मुझे शर्म आती है ये कहते हुए कि मैं मर्द हूँ क्योंकि चाहते हुए मैं कुछ नहीं कर रहा हूँ... क्योंकि मुझे मेरे परिवार का डर सताता है... लोग श्रधान्जली दे रहे है पर मैं उसे अपना सलाम देना चाहता हूँ...
ReplyDelete