जीने के लिए सहना होता है
असंतुलन को ही संतुलित करना होता है ...
रश्मि प्रभा
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आजकल मेरे सिर का बोझ
मेरी गर्दन से सहन नहीं होता,
सिर से अलग तो हो नहीं सकती,
मेरे घुटनों से सहन नहीं होता
आजकल मेरे बदन का बोझ,
साथ रहना तो मजबूरी है,
बस दर्द से परेशान रहते हैं.
मेरी ज़रूरतों का बोझ नहीं उठता
आजकल मेरी मेहनत से,
मेरी ख्वाहिशों का बोझ
मेरे ईमान से सहन नहीं होता.
इन दिनों मैं संतुलन में नहीं हूँ,
लड़ रहा हूँ अपने आप से,
आजकल मेरे ही दो हिस्से
एक दूसरे के विरोध में हैं.
ओंकार
इन दिनों मैं संतुलन में नहीं हूँ,
ReplyDeleteलड़ रहा हूँ अपने आप से,
आजकल मेरे ही दो हिस्से
एक दूसरे के विरोध में हैं.
अक्सर क्यूँ होता ऐसा ??
शायद इसी संतुलन को बनाते हुए चलते जाने का नाम ही ज़िंदगी है...
ReplyDelete~सादर !!!
प्रायः सभी के साथ ऐसी परिस्थिति आती है , जब किसी मुद्दे पर अपने ही मन में वाद-विवाद गहरा जाता है |
ReplyDeleteसादर