सड़क हो या ज़िन्दगी ....... दोनों का सफ़र चलता है
उतार-चढ़ाव,उबड़-खाबड़,पथरीले,कंकड़ से लहूलुहान करते
रश्मि प्रभा
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एक लंबी सड़क सी ज़िंदगी
एक ऐसी सड़क
जिसे तलाश है अपनी मंज़िल की
वो सड़क जिसे अपने आप में ऐसा लगता है कि
कभी तो मिलेगी मंज़िल
मगर वक्त का पहिया हरपल यह एहसास दिलाया करता है कि
एक बार जो चला जाऊन मैं
तो लौटकर फिर कभी वापस नहीं आता
पर क्या यही सच्चाई है ?
नहीं मुझे तो ऐसा नहीं लगता
ज़िंदगी की सड़कें भले ही कितनी भी लम्बी क्यूँ न हो
मगर उस सफर के रास्ते में
उस एक ज़िंदगी के न जाने कितने चक्र
वक्त के साथ गतिमान रहते हुए घूमते रहते है
और
उन चक्रों में गया वक्त भी लौट-लौटकर आता रहता है
क्यूंकि शायद ज़िंदगी कुछ भी अधूरा नहीं छोड़ती
उस अंतिम वक्त में भी नहीं
भले ही यह एहसास क्यूँ न हो सभी के मन के अंदर
कि अभी तो बहुत से काम बाकी है
बहुत सी जिम्मेदारियाँ निभाना बाकी है
अभी अपने लिए तो जिया ही नहीं हमने
अभी तो उस विषय में सोचना तक बाकी है
मगर वास्तविकता तो कुछ और ही होती है
जीवन का लालची इंसान
जीवन पाने के चाह में ही पूरी ज़िंदगी बिता दिया करता है
मगर यह नहीं सोच पाता कभी
की ज़िंदगी अपना चक्र किसी न किसी रूप में पूरा कर ही लेती है
कुछ अधूरा नहीं छूटता कभी,
शायद इसी के आधार पर
ऊपर वाला तय करता है सभी की मृत्यु
क्यूंकि उसने तो पहले से ही सब तय कर रखा है
कब, कहाँ, कैसे क्यूँ और किसका इस रंगमंच रूपी संसार से पर्दा उठेगा
और
एक बार फिर पूरा होगा सफर ज़िंदगी का ......
न वापस लौटना है, न इसे छोड़ना है,
ReplyDeleteहर प्रारम्भ यात्रा को पूरा करना है।
सड़क हो या ज़िन्दगी ....... दोनों का सफ़र चलता है
ReplyDeleteउतार-चढ़ाव , उबड़-खाबड़ , पथरीले-कंकड़ से लहूलुहान करते हैं
होती है तलाश मंजिल की - जिसमें सुकून भरी नींद हो ...... !!
लाजबाब !!
मेरी रचना को यहाँ स्थान देने के लिए आपका आभार...:)
ReplyDeleteये जिन्दगी का है सफर
ReplyDeleteकब कौन मिल जाए यहाँ
किस राह में
किस मोड़ पर ....गंभीर रचना