कोई हो जो साथ चल दे
थाम ले ऊँगली हमारी
और मिश्री घोल दे कानों में कहकर
मैं यहीं अब हम बनकर तुम्हारी ...
खड़ा मैं कब से समुन्दर के किनारे,
देखता हूँ अनवरत, सब सुध बिसारे ।
काश लहरों की अनूठी भीड़ में अब,
कोई पहचानी, पुरानी आ रही हो ।
कोई हो जो मधुर, मन को भा रही हो ।।१।।
कोई कह दे, नहीं अब मैं जाऊँगी,
संग तेरे यहीं पर रह जाऊँगी ।
कोई हो, एकान्त की खुश्की मिटाने,
नीर अपने आश्रय का ला रही हो ।
कोई हो जो बह रहे इन आँसुओं के,
मर्म की पीड़ा समझती जा रही हो ।।२।।
कोई कह दे, छोड़कर पथ विगत सारा,
तुझे पाया, पा लिया अपना किनारा ।
कोई कह दे, भूल जाओ स्वप्न भीषण,
कोई हो जो हृदय को थपका रही हो ।
कोई कह दे, देखता जो नहीं सपना,
कोई हो जो प्रेयसी बन आ रही हो ।।३।।
बहुत सुंदर, बेहतरीन......
ReplyDeletepraveen jee ki kavita, pahlee baar padhi.. behtareen..:)
ReplyDeleteबहुत आभार आपका, हमारी प्रतीक्षा को वाणी देने के लिये।
ReplyDeleteशानदार लेखन,
ReplyDeleteजारी रहिये,
बधाई !!
बहुत बढ़िया रचना प्रवीण जी द्वारा |
ReplyDeleteमेरी नई पोस्ट:-ख्वाब क्या अपनाओगे ?
बेहद सुन्दर! प्रवीण जी की परिष्कृत सोच है और परिष्कृत रचना-कर्म! आभार।
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