पक्ष मौन का भी
पक्ष शोर का भी
पक्ष आतंक का भी
..... शोध उर्मिला,मानवी है तो
शूर्पनखा भी !!!
रश्मि प्रभा
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अब कैसे कैसे शोध के विषय भी हिन्दी की प्राध्यापिकाएं चयनित करती हैं -इसका उदाहरण मुझे एक उच्च महिला विद्यालय में जाने पर दिखा -एक कथित रूप से माडर्न हिन्दी प्राध्यापिका ने अपनी पी एच डी में पंजीकृत छात्र को एक अद्भुत विषय दे रखा था ."शूर्पणखा के व्यवहार एवं उसके अधिकारों का एक समाजशास्त्रीय विवेचन " ...हद है ....मैंने सोचा अजीब खब्ती टीचर है ....अपनी स्टूडेंट का पूरा जीवन चौपट करने वाली है ..मैंने थोडा हस्तक्षेप करना चाहा ...यह कैसा विषय है? जवाब था कि जब कैकेयी पर काव्य लिखा जा सकता है तो शूर्पणखा पर क्यों नहीं? मैं बहस में नहीं पड़ना चाहता था ....मगर इतना कह ही गया कि एक घिनौनी, बदसूरत,बेडौल, बेहद हिंस्र प्रवृत्ति की राक्षसी पर हिन्दी शोध से अगर हिन्दी का कुछ भला होने वाला हो तो जरुर करिए ....
"मेरी माँ ने त्रिजटा पर शोध किया था" ..वे बेसाख्ता बोल पडीं -हूँ तो यह मामला खानदानी था ....तो हिन्दी की रोटी तोड़ने का काम यहाँ पुश्तैनी था ..कितनी भाग्यहीना है बिचारी हिन्दी कैसे कैसों को झेलती आयी है :(
फिर वे तफसील से बताने लगीं ...देखिये शूर्पणखा एक आजाद ख्यालों वाली बम्बाट नारी थी ....अपने विचार बिंदास प्रगट कर सकती थी ....और चेहरे से क्या होता है ...माना वह बड़ी ही बदसूरत थी ,सच कहें तो घिनौनी थी, मगर दिल की स्वतंत्र और साफ़ थी .."ओहो तभी तो सीता जी को कच्चा चबाने को वह उद्यत हो गयी थी .. ?" मैंने हठात रोका ...मगर वे जारी रहीं ....अब क्या करती वह ,राम उसे बरगला क्यों रहे थे ..वह एक आजाद ख्याल वाली नारी थी ..लेकिन राम ने उसे रिजेक्ट कर दिया ...और फिर लक्ष्मण ने उसे रिजेक्ट कर दिया ..भाई साहब आप ही बताईये कुछ ही पलों में दो दो रिजेक्शन भला कोई कैसे बर्दाश्त कर सकता है ...."हूँ यह तो है" ..मैं अब मैदान छोड़ने की मनोदशा पर आ गया था ....वैसे भी इस तरह के उत्साही ऊर्जित नारीवादियों से मुझे डर लगती आयी है ..कब किसी को क्या न कह दे ..कब किसी का चरित्र चौराहे पर नीलाम कर दें -इनका क्या भरोसा -अब इन्हें तो रिजेक्शन की पीड़ा आजीवन सताए रहती है शूर्पणखा की भांति.. इन्हें तो सारी दुनिया ही वैसी दिखती है ...मैंने भी पीछा छुड़ाते हुए कहा कि आप रिसर्च विसर्च तो कराईये मगर एक बात अच्छी नहीं लगी आपने मुझे भाई साहब जो कहा ..मैं दुनिया के हर किसी का भाई बनने का माद्दा नहीं रखता और न ही ऐसी कोई सदाशयता पालता हूँ ..मित्रों का चयन बहुत ढूंढ ढाढ के करता हूँ लाखो में एक ....वे भले छोड़ जायं, मैं कभी किसी को नहीं छोड़ता ....वे हतप्रभ होकर मुझे देखने लगीं और मैं वापस चल पड़ा ..
कई खयालात मन में उभर रहे हैं ....कैसे कैसे शोध के विषय लिए जा रहे हैं ..इसलिए ही तो शोध का स्तर दिन ब दिन गिरता जा रहा है .मैं यह भी मानता हूँ कि शूर्पणखा शायद कोई व्यक्ति भर ही नहीं प्रवृत्ति की परिचायक थी जो आज भी धड़ल्ले से सीना ताने समाज में घूम रही है ...लाख लाख रिजेक्ट हुयी ,अपमानित हुयी ,शील भंग हुआ मगर फिर भी वह नित नए राम की तलाश में दर दर भटक रही है .इस आस में शायद किसी युग में राम अथवा उनके सलोने गौरवर्णी भ्राता उसका उद्धार कर जायं ..मगर आप ही बताईये क्या राम कभी शूर्पणखा का उद्धार करने की सोच भी सकते हैं ..अहल्या तर गयीं ....मगर शूर्पणखा के पाप उसे कभी नहीं तरने देगें ........वह राम की त्याज्य है!
जब ऐसे ऐसे झक्की, साहित्य के खेवनहार होंगे तो सब चौपट क्यों कर न होगा :(
ReplyDeleteबहुत रोचक ...
ReplyDeleteAabhar!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (09-12-2012) के चर्चा मंच-१०८८ (आइए कुछ बातें करें!) पर भी होगी!
सूचनार्थ...!
बहुत सुंदर रोचक ,,,,
ReplyDeleteशूर्पनखा पर शोध , रोचक विचार है |
ReplyDeleteमैंने तो सुना था राम सभी का उद्धार करते हैं , फिर शूर्पनखा का क्यूँ नहीं ?
सादर
रोचक विचार
ReplyDeleteवाह ... बहुत ही अच्छी प्रस्तुति
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