किसी व्यभिचारी की नज़र में क्या होगी नारी 
सतयुग द्वापर कलयुग ...
गाँव,शहर,देश - देश 
दरिंदों के एक से परिवेश !
नहीं होती इनकी अपनी कोई माँ ,बहन .पत्नी 
ये क्षण में जल देनेवाले कूड़े हैं 
देर किया तो बदबू गहरी-जानलेवा होगी ...



रश्मि प्रभा 
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पढ़ा है महाभारत में
द्रौपदी का चीर हरण हुआ था सभा में
सभी मर्द थे ,पर चुप थे ,भय से ,अचरज से ,
कोई न आया बचाने द्रौपदी को
लाज बचाया केवल कृष्णा ने।

आज" भारत महान" की राजधानी ....
दिल्ली - पुरातन इन्द्रप्रस्त में
हो रहा है पुनरावृति वही  कहानी की
पर राजसभा अब धृतराष्ट्र की नहीं
अब यह  है गांधारी की।
नारी का राज है
नारी के राज में
नारी ही बेआबरू है
सभा में नहीं
अब सड़क  पर।

नारी बेआबरू है ,
उसकी इज्जत जर्जर है
सड़क पर ,बस में, कार  में ,
रक्षा के आस्था स्थल , थाने में ,
कोई कृष्ण नहीं  आया उसे बचने में,
क्योंकि सड़क से राजसभा तक
दु;शासनों का राज है।
सड़क पर,
थाने पर
दू;शासन का ही प्रहरी है
इसलिए नारी निर्वस्त्र होने के लिए
मजबूर है।

कृष्ण हीन द्वारका में
नहीं बचा पाया अर्जुन
गोपियों का मान ,
जल समाधी लिए गोपियाँ
बचाने आत्म सम्मान।

नारियों !जागो !!
यह नहीं  है द्वापर युग
जल समाधी कभी न लेना
यह है कलियुग ,
सशरीर कृष्ण नहीं आया
तो क्या ?
दुर्गा, काली की शक्ति है तुम में
उसका क्या हुआ ? 
जगाओ उस शक्ति को
ललकारो दू;शासनों को ,
न रक्तबीज रहा न महिषासुर
दुराचारी दू;शासन भी नहीं रहेगा।
आओ निकलकर घर से
वध करो सब दू;शासनों को
तीर ,तलवार ,बन्दुक न बुलेट से
अपना अमुल्य मतपत्र "वैलेट" से।



कालीपद "प्रसाद "

4 comments:

  1. रश्मि प्रभा जी,बहुत बहुत आभार,मेरी रचना को परिकल्पना में स्थान देने के लए .आभार.

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  2. बढ़िया, साधुवाद !!

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  3. बहुत अच्छा लिखा है।

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  4. जितना अच्छा शीर्षक , उतनी ही अच्छी रचना |

    सादर

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