हिंदी की व्यथा
धुंआधार अंग्रेजी की गिटपिट धुंध में
अपने बच्चों की ऊँगली थाम चल रही है
भारत के गौरव से गौरवान्वित भारतीय
हिंदी के लिए हर सुबह प्रार्थना करते हैं
.......... कई तीखी कलमें हैं इस राह में
आज लायी हूँ एक उदाहरण
रश्मि प्रभा
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सदा देश की पीड़ा को कविता के पट पर लिखता हूँ ।
भारत माँ के वक्षस्थल की हर धड़कन को पढ़ता हूँ ।।
विचलित पथ पर भटक रहे हैं हम भारत की व्यथा लिए ।
दंभ खोखले लेकर फिरते इतिहासों की कथा लिए ।।
संस्कार के दीपक की बाती बुझती है अब तेल बिना ।
अंधकार पसरा है जग में भाषाओँ के मेल बिना ।।
लोकतंत्र के इस उपवन में बोलो अब मर्यादा क्या है ।
दुनिया हम से पूछ रही है भारत तेरी भाषा क्या है ?
हम गुलाम की प्रबल निशानी को अब गले लगा बैठे ।
राष्ट्र पंगु है निज भाषा बिन स्वाभिमान गवा बैठे ।।
यहाँ गुलामी के प्रतीक की भाषाओँ से लड़ता हूँ ।
स्वाभिमान के लिए सदा सौ सौ जन्मो से मरता हूँ ।।
सदा देश की पीड़ा ......................................।
भारत मां .............................................।
हिन्दुस्तानी परम्परा है सबका तुम सम्मान करो ।
हक कैसे मिल गया तुम्हें है हिंदी का अपमान करो ।।
आजादी के हर मुकाम पर हिंदी है ललकार बनी ।
बलिदानी के गीतों में वह ओजस्वी अंगार बनी ।।
मंगल या ,आजाद ,हो बिस्मिल सबकी यही कहानी है ।
फाँसी के तख्तो से निकली हिंदी सबकी बानी है ।।
अक्षुण करती देश एकता गरिमा का इतिहास लिए ।
भारत मन की प्यारी बेटी रोती क्यों संत्रास लिए ।।
भाषा की है अमर बेल यह भारत की फुलवारी में ।
हिंदी अब तो पनप रही है दुनिया भर की क्यारी में ।।
भारत के कोने कोने को हिंदी से मैं रंगता हूँ ।
अमर रहे हिंदी भारत में दीप प्रज्वलित करता हूँ ।।
सदा देश की पीड़ा को .................................।
भारत माँ के वक्षस्थल की .........................।।
हिन्दुस्तानी संस्कृति की जननी तो ये हिंदी है ।
संस्कार के खेतो की पावन माटी सी हिंदी है ।।
जन गन मन के राष्ट्र गान को झंकृत करती हिंदी है ।
बन्दे मातरम देश राग के स्वर में ढलती हिंदी है ।।
सेना के कण कण में सबका मान बढाती हिंदी है ।
अग्नि या ब्रह्मोस धनुष पृथ्वी को बनाती हिंदी है ।।
तकनीकी की शब्द श्रृखला रोज बढाती हिंदी है ।
मानवता के खातिर जग को एक कराती हिंदी है ।।
तुलसी सूर कबीर और रसखान पढाती हिंदी है ।
दिनकर मीरा और निराला से मिलवाती हिंदी है ।।
हिंदी का विरोध जो करते राष्ट्र विरोधी कहता हूँ ।
मैं भारत का भाषा प्रहरी भाषा मान सजोता हूँ ।।
सदा देश की पीड़ा को ....................।
भारत माँ के वक्षस्थल की ................।।
भारत की माटी की भाषा का श्रृंगार करा दूंगा ।
हिंदी के खातिर इस जग में अपना शीश चढ़ा दूंगा ।।
यहाँ गुलामी के चिन्हों पर मैं तलवार चला दूंगा ।
हिंदी राष्ट्र शीर्ष पर होगी वह आदित्य दिखा दूंगा ।।
देश मिला है बलिदानों से अभिमान जगा दूंगा ।
हिंदी की मसाल लेकर के हिंदुस्तान जगा दूंगा ।।
देश रहेगा नहीं मूक भाषा का मर्म सिखा दूंगा ।
हिंदी का विरोध करने पर तीखा सबक सिखा दूंगा ।।
सूत्र एकता की हिंदी है क्रांति बिगुल बजा दूंगा ।
हिंदी की गरिमा का मैं तो नव इतिहास लिखा दूंगा ।।
भाषा वादी राजनीति के हर पन्ने को पढ़ता हूँ ।
लोकतंत्र का कला पन्ना छोड़ के आगे बढ़ता हूँ ।।
सारे देश की पीड़ा ..........................................।
भारत माँ के .................................................।।
नवीन मणि त्रिपाठी
तकनीकी की शब्द श्रृखला रोज बढाती हिंदी है ।
ReplyDeleteमानवता के खातिर जग को एक कराती हिंदी है ।।
बहुत ही सार्थक एवं सशक्त अभिव्यक्ति ...
बहुत सटीक मुद्दा उठाया गया है |
ReplyDeleteमुझे ये पंक्ति बहुत पसंद आयी -
"दुनिया हम से पूछ रही है भारत तेरी भाषा क्या है ?"
मैं आपको रोज की जिंदगी का एक उदाहरण देता हूँ -
मेरा इंजीनियरिंग कॉलेज में दाखिला AIEEE exam के जरिये हुआ है , ये परीक्षा अंग्रेजी के साथ साथ हिंदी में भी होती है | काफी बच्चे ऐसे भी हैं जो पूरे साल हिंदी में तैयारी करके विज्ञान की इस परीक्षा को हिंदी में उत्तीर्ण करते हैं , लेकिन फिर क्या ?
आगे की दिशा "अचानक" बदल जाती है , कॉलेज की सारी पढ़ाई पूरी तरह अंग्रेजी में , अगर आपने सवाल भी हिंदी में पूछ दिया तो या तो अध्यापक भड़क जाएगा या आपका मखौल बनाया जायेगा | यहाँ तक कि मेरे कॉलेज में तो पहले सत्र में ही ५० में से १७ बच्चो को सिर्फ इसलिए फेल कर दिया गया कि उन्हें अंग्रेजी नहीं आती थी |
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सर मैं तो इसे शिक्षा व्यवस्था की दोगली नीत कहूँगा | एक तरफ तो आप प्रवेश परीक्षा शुद्ध हिंदी में लेते हैं और दूसरी तरफ एडमिशन मिलते ही अंग्रेजी में कमजोर बताकर अनुत्तीर्ण कर देते हैं | ऐसा ही है तो शुरू में ही बता दिया जाए कि "हिंदी भाषी सावधान , दिया गया विषय पढ़ना आपकी क्षमता से बाहर है " , कम से कम वो बेचारा इस दिशा में अपना भविष्य ही नहीं बढ़ाएगा | वरना ज्यादातर तो ये दशा होती है कि विद्यार्थी हिंदी में जा नहीं सकता और अंग्रेजी में जा नहीं पाता |
"अपना घर तो छोड़ दिया था ,
सनम ने भी ठिकाना न दिया |"
सादर
हिंदी हमारा स्वाभिमान है !
ReplyDeleteसार्थक रचना !
सशक्त रचना
ReplyDeleteभारत के कोने कोने को हिंदी से मैं रंगता हूँ ।
ReplyDeleteअमर रहे हिंदी भारत में दीप प्रज्वलित करता हूँ ।।
नवीन जी की सार्थक ...सशक्त रचना ...
बधाई एवं शुभकामनायें ...
बहुत ही सशक्त अभिव्यक्ति ......
ReplyDeleteहिंदी के दर्द को बखूबी उकेरा है !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और सशक्त अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteसशक्त और सार्थक रचना...
ReplyDeleteलाजबाब रचनाओं का चयन एवं प्रस्तुति,,
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना
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