भौतिक सुख इतने प्रबल हो गए
कि पैसे के सिवा कुछ रहा ही नहीं
गर्व है लाखों की पेंटिंग पर
इसमें मुफ्त प्यार - भला कोई मोल है !!!
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आज के इस भौतिकवादी युग में हमारे सामाजिक मूल्यों व रहन-सहन में अत्यधिक बदलाव आया है जहाँ पहले इन्सान अपने दिन की शुरुआत बड़े-बुजुर्गों के आर्शीवाद से करता था वहाँ आज का इंसान अपने दिन का शुभारम्भ इन्टरनेट पर माथा टेक कर करता है.पहले वह रिश्तों की गरिमा को बनाए रखने के लिए जद्दोजहद करता था और अब उन रिश्तों से छुटकारा पाने के लिए छटपटाता है क्योंकि आज उसका रिश्ता व अपनत्व उसके अकेलेपन से जुड़ता जा रहा है .हालही में एक न्यूज चैनल पर प्रसारित ‘आप पर असर क्यों नहीं होता ?’ नामक स्पेशल रिपोर्ट ने मेरे दिल-दिमाग पर गहरा असर कर दिया.इस रिपोर्ट में दिल्ली व मुम्बई जैसे महानगरों में उन लोगों के जीवन पर प्रकाश ड़ाला गया जो अकेलेपन के साये में जीवन व्यतीत कर रहे हैं .ताजुब की बात यह रही कि इन लोगों का हरा-भरा परिवार होने के बावजूद उनका साथी अकेलापन व खौफनाक सन्नाटा ही है.इसमें सबसे पहले नोएडा में रह रही दो बहनों सोनाली व अनुराधा के बारे में दिखाया गया जिनके भाई ने माता-पिता की मृत्यु के बाद उन्हें अकेला छोड़ दिया और दोनों बहनों ने उसी अकेलेपन को अपना सहारा बनाकर खुद को घर में नजरबन्द कर लिया.वे केवल परिवार ही नहीं बल्कि समाज से भी कटकर दो जिन्दा लाशों में तब्दील हो गई .जब पुलिस ने छानबीन की तो अनुराधा कमरे में एक कोने पर मृत मिली और सोनाली भी मौत की कगार पर खड़ी थी.जब इनके पड़ोसियों से बात की गई तो उन्होंने प्राईवेसी यानि दखलअंदाजी न देने की बात करते हुए अपना पल्ला छाड़ लिया.इसी तरह मुबंई में रहने वाली ‘पल्लवी पुरकायस्थ ’ की हत्या भी उसका अकेला रहना बताया जाता है और तो और दिल्ली के रजौरी गार्डन में रह रही मशहूर प्रोफेसर तारा जोकि ड़ॉस टीचर्स भी थी जिनके घर कभी मशहूर अभिनेत्रियाँ जैसे रेखा,हेमामालिनी नृत्य सीखने आया करती थी.आज उन्हीं प्रोफेसर तारा का वास्ता केवल घर में रखे कबाड़ ,सन्नाटे ,धूल ,मिट्टी व बदबू से है .इन सभी दिल दहला देने वाली सच्ची घटनाओं ने पारिवारिक और सामाजिक स्तर पर प्रश्नचिह्न लगाया है जिनके तले इंसान सम्बन्धों को स्थापित करते हुए परिवार व समाज का निर्माण करता है .दिल्ली और मुम्बई जैसे भीड़भाड़ वाले इलाकों में भी इंसान अभावग्रस्त जीवन व्यतीत करने को आखिर मजबूर क्यों हो जाता है ?
आज सोनाली,अनुराधा,पल्लवी या प्रोफेसर तारा आदि जैसे लोगों की गिनती में इजाफा हो रहा है.पर इनकी इस बद से बदत्तर जिन्दगी का जिम्मेदार आखिर कौन है ? वे खुद ,उनका परिवार या समाज ? अगर देखा जाए तो सच्चाई यह है कि इन्सान कामयाबी के इस दौर में पहले स्वयं को इतना व्यस्त कर लेता है कि वह परिवार व समाज से दूरीयाँ बनाने लगता है.परन्तु वह अकेलापन उसके जीवन को गर्त की ओर ले जाने लगता है तो उसका जीवन नरक बन जाता है और जब उसे परिवार या समाज की कमी महसूस होती है तब तक बहुत देर हो चुकी होती है .आज इन्सान दिनभर की व्यस्तता के बाद फेसबुक पर तालमेल बनाना तो पसंद करता है परन्तु पारिवारिक व सामाजिक गतिविधियों से मुँह मोड़ लेता है जोकि रिश्तों की नींव के चूलें हिला देने में काफी है.इसलिए महानगरों में स्थिति गम्भीर होती जा रही है.यदि आज इंसान समय रहते इस समस्या के प्रति न जागरूक हुआ था तो वह दिन दूर नहीं जब यही समस्या महामारी बनकर लोगों के जीवन को लील जाएगी
ये अकेलापन जोंक की तरह जब चिपकता है ..............
ReplyDelete*आज इन्सान दिनभर की व्यस्तता के बाद फेसबुक पर तालमेल बनाना तो पसंद करता है परन्तु पारिवारिक व सामाजिक गतिविधियों से मुँह मोड़ लेता है जोकि रिश्तों की नींव के चूलें हिला देने में काफी है .........*
पूरी तरह सहमत नहीं हूँ , परन्तु नकार भी नहीं रही हूँ ..............
बढ़िया,
ReplyDeleteजारी रहिये,
बधाई !!
स्तिथि तो वाकई दुखद है ...लेकिन यह कहना की इन्टरनेट इसके लिए ज़िम्मेदार है ....इससे मैं सहमत नहीं ...बल्कि मुझे तो यह लगता है की ऐसे बहुत से लोग होंगे जो अपने अकेलेपन को इन्टरनेट के ज़रिये दूर करते हैं बाहर की दुनिया से संपर्क साधकर . यही उन्हें दुनिया से जोड़े है ...जहाँ तक हमारी जिम्मेदारियों की बात है तो उन्हें निभाकर ही हम इन्टरनेट की तरफ रुख करते हैं .....वैसे आपका आर्टिकल सोचने पर मजबूर भी करता है .....
ReplyDeleteअकेलेपन को बखूबी उकेरा है ,
ReplyDeleteलेकिन कभी कभी इंसान अपनी मर्जी से अकेला नहीं होता , समाज उसे अकेला कर देता है |
सादर
"फेसबुक पर तालमेल बनाना तो पसंद करता है परन्तु पारिवारिक व सामाजिक गतिविधियों से मुँह मोड़ लेता है जोकि रिश्तों की नींव के चूलें हिला देने में काफी है."
ReplyDeleteमैं पूरी तरह से सहमत हूँ ,आजकल मैं भी समय निकलने की कोसिस कर रहा हु पर नाकामयाब हूँ .
<a href = "khotej.blohspot.in>हैकिंग सीखो </a>
बेहद नाज़ुक और ज़रूरी विषय पर सार्थक लेख ...वास्तविक समाज से कट कर काल्पनिक समाज से जुड़ाव हमें किस रास्ते पर ले जायेगा भगवान् जाने।।।
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