जुगनू,बादलों में विद्युत् छटा
क्षणिक .... पर प्रभावशाली,अर्थपूर्ण,चमत्कार ...
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१)
मैं
चंदन हूँ
आग हूँ
सबने समझा राख
अंगार हूँ मैं
बर्फ़-सी शीतलता
लावे-सी दहक हूँ
फूल पर शबनम
एक महक हूँ मैं
सबने समझा पीर
एक शमशीर हूँ मैं !
२)
ये तन्हाइयाँ
ये तन्हाइयाँ
परेशानियाँ
दुश्वारियाँ
क्यूँ है गमनशीं
ए हमनशीं
क्या रूका है यहाँ
जो ये रूकेंगी
हो जाएँगी रूखसत
ज़रा पलक उठा के देख
मेरी आँखों में तुम्हें
उम्मीदें दिखेंगी......
३)
बैरन सुबह
बैरन सुबह
कभी ना आए
मुँदी पलकें
पलकों में सजन
कभी ना जाए
४)
ये फ़ासले
ये फ़ासले
नापते हुए तुम
आओगे पास
करोगे सज़दे
छुपा लोगे मुझे
बाँहों के घेरे में
यकीं है मुझे
क्य़ूँकि मैंने
मेरे हमनवा
मुहब्बत नहीं
इबादत की है
५)
मैं और मेरी कलम !
कल्पना की उड़ान के बीच
विचारों को सहेजने-बाँधने के बीच
जो विचार खो जाते हैं
उन्हें पकड़ने की ऊहा-पोह में
अक्सर कहीं खो जाते हैं
मैं और मेरी कलम !
६)
मेरे दोनों बेटों के लिए -
तुम्हीं मेरे चंदा
झिलमिल दो तारे
सूरज से दीप्यमान
नक्षत्र मेरे उजियारे
तुम्हीं बगिया के फूल
हरते जीवन के शूल
मेरी पाक़ दुआ
ख़ुदा का तुममें नूर
तुम्हीं मेरा गुरुर
७)
जब मन एक हों
तन मंदिर हो जाते हैं
आत्मिक हो प्रेम तो
शरीर शिवाले हो जाते हैं
- सुशीला श्योराण ‘शील’
बहुत बढ़िया क्षणिकाएं
ReplyDeleteबहुत सुन्दर क्षणिकाएं , "ये तन्हाइयां" विशेष पसंद आई |
ReplyDeleteसादर
sundar kshanikaayein
ReplyDeleteबहुत प्यारी क्षणिकाएँ...
ReplyDeleteबधाई सुशीला जी..
सादर
अनु
खूबसूरत क्षणिकाएं
ReplyDeleteसभी क्षणिकाएं... अनुपम भाव लिये
ReplyDeleteआभार इस प्रस्तुति का
सादर
बहुत सुन्दर हर क्षणिका
ReplyDeleteबेहतरीन क्षणिकाएं.
ReplyDeleteवाह!
ReplyDeleteरश्मि प्रभा जी सहित आप सभी का ह्रदय से आभार। आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए अनमोल है।
ReplyDeleteहार्दिक आभार।
बहुत सुन्दर क्षणिकाएं....
ReplyDeleteसभी क्षणिकाएं बहुत सुंदर हैं और सुशीला जी के सर्जनशील मन को बेहतरीन ढंग से अभिव्यक्त करती हैं... शुभकामनाएं।
ReplyDeleteबहुत सुंदर भाव ...
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