सबकुछ बदल गया
प्यार,शालीनता .... घर के मायने
और लोग कहते हैं
सब सही है ........
रश्मि प्रभा
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मेरा झूला टूट गया है, पुराना लकड़ी का
जो था मेरे आँगन में नीम के नीचे
पीछे का मैदान जहाँ हम दिन भर खेलते थे
वो बूढ़े दादा जो चश्मा सम्हालते हुए
लकड़ी के सहारे खड़े होकर हमारा खेल देखते थे
अब कुछ नहीं है वहां
और लोग कहते हैं कुछ ख़ास नहीं बदला
हमारे छोटे-छोटे हाथों में दस-बीस पैसे
जो बचा कर रखे थे कि दोपहर में कुल्फी वाला आएगा
वो झाड़ियों के झुण्ड में सेतूस के पेड़ के नीचे
कुछ पके सेतूस मिलने की ख़ुशी थी कहीं
अब कुछ नहीं है वहां
और लोग कहते हैं कुछ ख़ास नहीं बदला
वो छुपम-छाई में हांडी फोड़ने के लिए
एक दुसरे की कमीज़ बदलना
कभी गीली रेती में सुरंग बना कर हाथ मिलाना
वो रात के अँधेरे में लोगों के पतरों पर पत्थर बजाना
और हाँ वो तालाब जहाँ ढेर सारे कमल खिलते थे
हम दिन भर जहाँ बैठ कर बस बातें करते थे
अब कुछ नहीं है वहां
और लोग कहते हैं कुछ ख़ास नहीं बदला
वो लड़की जिसे मैं देख कर बस हँस दिया करता था
आगे के दो दांत जो नहीं थे उसके
और गर्मी की रातों में वो छतों की महफ़िल
कभी निभाया नहीं वो सुबह जल्दी उठने का वादा
कभी साईकिल से करतब दिखाते थे सड़कों पर
कभी गिरते तो हँसते थे अपने ही ऊपर
अब कुछ नहीं है वहां
और लोग कहते हैं कुछ ख़ास नहीं बदला
बहुत कुछ बदल चुका
ReplyDeleteबेहतर लेखनी, बधाई !!
ReplyDeleteबहुत बढ़िया प्रस्तुति ..आभार
ReplyDeleteSabkuch badla...par anmol yaadein aaj bhi jyon ki tyon hain...
ReplyDeletebahut sundar
बचपन का जो रूप सजा था आँखों में,
ReplyDeleteकहाँ मिल सका बच्चों को मेरे तेरे।
पुरानी यादों का एक बेहतरीन संयोजन लेकिन कहते हैं न 'परिवर्तन ही समाज का नियम है', इसमें कभी इस बात का उल्लेख नहीं होता कि परिवर्तन सकारात्मक है कि नकारात्मक |
ReplyDeleteसादर