कहानी एक विस्तार है
धैर्य रखिये तो जीवन समझने का आधार है ...
नागपुर से ट्रेन में सवार हुआ, आरक्षण था नहीं, इसलिए रायपुर तक का जनरल बोगी का ही सफ़र लिखा था। फिर अधिक दूरी भी नहीं है, सिर्फ 5 घंटे का सफ़र यूँ ही कट जाता है। बड़ी मशक्कत के बाद बोगी में घुसने मिला, शर्मा जी ने बालकनी में सीट देख ली थी, चलने की जगह पर भी लोगों का सामान रखा हुआ था। मैं बड़ी जद्दोजहद के बाद बालकनी पर पहुंचा। नीचे की सीटों पर छत्तीसगढ़ से कमाने - खाने बाहर गए परिवार बैठे थे। लम्बी सी एक महिला पहुंची, नीचे सीट न देखकर वह भी बालकनी में चढ़ने का प्रयास करने लगी, लेकिन सफल नहीं हो सकी। सहायता के लिए मेरी और देखा तो मैंने उनका हाथ थाम कर चढाने की प्रयास किया, लेकिन सफलता नहीं मिली। फिर वह सामने की तरफ से सीट पर पैर रख कर बालकनी तक पहुचने में कामयाब हो गयी। अब सभी सवारियां बोगी में ठंस चुकी थी। ट्रेन खुलने में एक घंटा और था।
उस अधेड़ महिला ने मुझसे पूछा कि कहाँ जा रहे हो? मैंने बताया "रायपुर", तो उसने बताया कि वह रायपुर के गर्ल्स डिग्री कालेज से पास आउट है। वर्ष पूछने पर वही वर्ष बताया जिसमे मैंने भी रायपुर से पढाई की थी। मेरे कालेज का नाम सुनकर बोली -" वह तो बड़ा ही फेमस कालेज है, और ठहाका लगा कर कहा - हा हा हा हा आप भी कभी लाइन मारने हमारे कालेज आते होगे? मैं सकपका गया :) कहीं पहचान तो नहीं गयी, मैंने भी ठहाका लगा कर उसका साथ दिया और कहा - मेरे कालेज का रास्ता आपके कालेज से ही होकर जाता था। फिर वहां की कैंटीन और उसके साथ पुरानी भूली बिसरी यादों में गोते लगाने लगे। उस समय के साथियों को याद करने लगे। चर्चा चलते रही। मैं उसे पहचानने की कोशिश करने लगा। परन्तु पहचान नहीं पाया। उसने भी अपनी पहचान छुपा ली, मुझे कुछ नहीं बताया अपने बारे में। एक हाथ में सोने का कंगन और दूसरे हाथ में सोने की घडी पहने थी। शादी के चिन्ह कहीं दिखाई नही दे रहे थे, चेहरे पर विधवा सी उदासी थी। मैंने अधिक जानना ठीक नहीं समझा।
ट्रेन चल पड़ी थी, मैं सोचते रहा कि इस तरह बिंदास होकर किसी ने पुरे जीवन में ही नहीं पूछा कि कभी लाइन मारने हमारे कालेज आते होगे? उसके व्यक्तित्व को लेकर चिंतन चलते रहा। उसने बताया कि उसके परेंट्स नागपुर में रहते थे और वह गर्ल्स डिग्री कालेज के हास्टल में रहकर बायो की पढाई कर रही थी। इससे इतना ही जाहिर हुआ की वह बायो स्नातक है। अगले स्टेशन पर मेरे बगल की सीट खाली हुयी। नीचे बैठी एक मोटी सी अधेड़ महिला उस पर चढ़ गयी। उसे ऊपर चढ़ने के लिए किसी भी सहायता जरुरत नहीं पड़ी। हाथो में सोने की मोटी -मोटी चूड़ियाँ पहन रखी थी, गले में सोने की चैन और कान में सोने के बुँदे भी। रंग धूप में पका हुआ था, चेहरे पर जीवन से संघर्ष की छाया स्पष्ट दिख रही थी। कोई छुई-मुई नहीं थी, मेहनतकश महिला लग रही थी। प्रदेश के लोग मिलने पर अपनी छत्तीसगढ़ी बोली में बात करने का लोभ नहीं छोड़ पाता। छत्तीसगढ़िया मिला और बात शुरू हो जाती है। महिला ऊपर की सीट पर बैठ कर अपने साथियों के साथ छत्तीसगढ़ी में बात करने लगी। इससे जाहिर हुआ कि सब जम्मू से से आ रहे हैं। मैंने सोचा कि महिला इतनी मोटी है कि वह मजदूरी नहीं कर सकती, अपने बेटे बहुओं के बच्चों की रखवारी करने साथ गयी होगी।
मेरा ऐसा सोचना सही नहीं था। उससे पूछ बैठा कि वह जम्मू में क्या काम करती है? मेरा पूछना ही था बस वह शुरू हो गयी, उसने अपने जीवन की कथा ही खोल कर रख दी। मैं मन्त्र मुग्ध उसे सुनता रहा।" मैं जम्मू में अपना धंधा करती हूँ, देह भारी हो गयी और उम्र भी बढ़ गयी इसलिए शारीरिक काम नहीं होते। महीने में 15 दिन जम्मू के पास बड़ी बम्न्हा में रहती हूँ, वहां बहुत सारे छत्तीसगढ़िया रहते हैं, उनको कपडे, सुकसी( सुखाई हुई मछली ), गुड़ाखू, बाहरी, सूपा और भी बहुत सारे सामान ले जाकर बेचती हूँ, इससे ही मेरा गुजर बसर चलता है। बच्चों को पालने के लिए कुछ तो करना पड़ता है बाबू साहब। आप क्या करते हैं? उसने अपनी बात कहते हुए सवाल दाग दिया। मैंने बताया कि घुमक्कड़ हूँ और घुमक्कड़ी पर लिखता हूँ। वह समझ गयी "पेपर लिखैया" है।
बाबू, मैंने भी सरपंची का चुनाव अपने गाँव सरसींवा से लड़ा है। फेर लोगों ने हरवा दिया। ढाई लाख खर्च हो गया। सब सगा लोग खा पी गए, रांड़ी दुखाही का खाने से कौन सा उनका भला होने वाला है? 22 बरस पहले मेरे धनी की मौत हो गयी। मेरे पांचो लड़के छोटे थे। धनी के रहते कभी बाजार नहीं गयी थी सब्जी लेने भी। मुझे बहुत चाहते थे, सिर्फ घर का ही काम करती थी। उनकी किडनी ख़राब हो गयी तो रायपुर के समता कालोनी के बड़े डाक्टर से उनका इलाज करवाया, सब गहना गुंथा बिक गया, लेकिन उन्हें बचा नहीं पाई। बच्चों को पढाना बहुत जरुरी था, इसलिए नए सिरे से जिन्दगी शुरू की। मैंने पहला धंधा दारू बेचने का शुरू किया। उलिस-पुलिस थाना कभी देखा नहीं था। दारू के धंधे में अच्छी कमाई थी।
थाने वालों ने 6 बार छापा मार कर अपराध दर्ज किया, कोर्ट में पेशी में जाती थी। सब में बाइज्जत बरी हो गयी। बस वकील लोगों को डट के पैसा देना पड़ा। बड़े लड़के ने एम् ए किया, उससे छोटे ने बी ए। नौकरी नहीं लगी तो ड्राईवर बन गए। उससे छोटा लड़का पखांजूर से आई टी आई किया है और एक फैक्टरी में नौकरी कर रहा है। 5 बेटा और 3 बहु और 7 पोते -पोती हैं। पक्का घर और 6 दुकान बना दी हूँ, एक बेटे का व्यव्हार ठीक नहीं है इसलिए उसे अलग कर दिया। वह अलग रहता है, उसका महीने का राशन भेज देती हूँ, बहु को कह दिया है कि किसी चीज की कमी हो तो लिस्ट बना कर भेज दिया करे। मैं रिक्शे में राशन भरवा कर भेज देती हूँ। रानी कुंती ने 5 बेटों के लिए एक बेटे कर्ण को त्याग दिया था, मैंने भी 4 बेटों के लिए एक बेटे को त्याग दिया। उसे अलग कर दिया। मेरी सम्पत्ती का बटवारा उसे मेरे मरने पर मिलगा, ऐसा फौती चढवाई तब पटवारी को लिखवा दी थी।
उसकी कहानी शुरू थी और मैं सुन रहा था। गाड़ी अपनी रफ़्तार से स्टेशन पर सवारी उतारते-चढाते चल रही थी। मेरी सफ़र की साथिन के जीवन के उतार चढाव भी कुछ इसी तरह जारी थे। उसने कथा जारी रखी। एक दिन थानेदार ने छापा मारा और कहा - कमला बाई अब दारू का धंधा बंद कर दो। तो मैंने कहा कि साहब अपने घर में झाड़ू बर्तन का काम दे दो। जिससे मैं अपने बच्चों को पाल सकूं। थानेदार साहब चुप हो गए। दारू का धंधा चालू रहा। दिन भर आडर लिखती थी और रात को 12 बजे के बाद हाथ में लोहे की राड लेकर घर से चुपके से निकलती, गाँव से 3 किलो मीटर दारू की गाड़ी बुलवाती और रात भर में आडर का माल सप्लाई करके सुबह 4 बजे घर आकर चुपचाप सो जाती। दारु का धंधा जरुर किया पर कभी भी दारु का एक छींटा मुंह में नहीं लिया। बच्चे बड़े होने लगे तो मैंने दारू का धंधा खुद ही छोड़ दिया। कमाई तो बहुत थी पर ऐसा धंधा भी किस काम का जिससे बच्चे बिगड़ जाएँ।
गाँव के आस पास से काफी लोग जम्मू कमाने खाने जाते हैं, मैंने सोचा कि उनके लिए छत्तीसगढ़ में प्रयोग होने वाली जरुरत की चीजे वहां ले जाकर बेचूं तो अच्छी कमाई हो सकती है। तब से मैंने यह धंधा शुरू कर दिया।यहाँ से जम्मू तक सामान ले जाने में समस्या बहुत आती है, लगेज में बुक करके ले जाने में बहुत खर्च होता है। सारी कमाई लगेज में ही खप जाती है। इसलिए सब सामान जनरल बोगी में ही भर देती हूँ, एक तरफ की लैट्रिन में सामान भर कर दरवाजा लगा देती हूँ और एक सीट पकड़ कर बैठ जाती हूँ। पुलिस वाले सब पटे हुए हैं, कोई 10 तो कोई 20, ज्यादा से ज्यादा 50 रूपये देती हूँ। लेकिन कई बहुत मादर ....... होते हैं। तो उनसे उसी तरह निपटती हूँ, जस को तस। एक बार टी टी ने बहुत परेशान किया। पुलिस बुला लिया। जेल भेजूंगा कहने लगा, तो मैंने उसे समझाया कि जेल से बहर आउंगी तो धंधा यही करुँगी। तेरे से भी निपट लुंगी। अकेली औरत देख कर धमकाता है क्या बे? मेरा भी नाम कमला बाई है। तेरे जैसे पता नहीं कितने देखे। हर महीने आती हूँ बीसों साल से तेरे को जो उखाडना है उखाड़ ले। मैं किसी से से नहीं डरती, कोई चोरी चकारी करुँगी तो डरूंगी। बाकायदा टिकिट लेकर गाड़ी में चढ़ती हूँ। फिर वह टीटी 200 में मान गया। पेट की खातिर सब करना पड़ता है।
उसने ब्लाउज से बटुवा निकला, उसमे मतदाता पहचान पत्र और पैन कार्ड था। ये सब मैंने बनवा रखा है, भले ही पहली दूसरी क्लास पढ़ी हूँ पर हिसाब-किताब सब जानती हूँ, जो भी सामान उधारी में बेचती हूँ उसे डायरी में लिखती हूँ, महीने 5 तारीख तक जम्मू जाती हूँ सामान लेकर और 20 तारीख तक सामान बेच कर उधारी वसूल कर घर आ जाती हूँ। अभी जम्मू में मेरी 2-3 लाख की उधारी बगरी है। वहां काम करने वालों को 7 से 15 तारीख तक तनखा है। उस समय मेरा वहां रहना जरुरी रहता है वर्ना उधारी डूब जाएगी। घर में ए टी एम् है, वहां से बैंक में पैसा जमा करवा देती हूँ और यहाँ निकाल लेती हूँ। जम्मू में एक झोपडी बना रखी है, जिसमे टी वी कूलर सब है। खाना बनाने के सारे सामान की वेवस्था है। कभी आप जम्मू आओगे तो अपने हाथ से बना कर खिलाऊंगी। मुझे उसके बटुए में दवाई दिखाई दी, तो उसने बताया कि बी पी की गोली है। बच्चेदानी का आपरेशन करवाया तब से खा रही है।बीपी की गोली के साथ नींद की गोली भी थी। कहने लगी इसे दिन में खाती हूँ तब अच्छा लगता है। अब आदत हो गयी है।
जम्मू में सब लोग पहचानते हैं, किसी छत्तीसगढ़िया कोई समस्या होती है तो उसका निदान भी करती हूँ, उन्हें अस्पताल ले जाती हूँ, उधारी पैसा कौड़ी भी देती हूँ, किसी का रुपया पैसा घर भेजना रहता है तो अपने एकाउंट से भेज देती हूँ। गाँव में मेरा बेटा एटीएम् से रुपया निकल कर सम्बंधित के घर पहुंचा देता है। मेरे से जितना बन पड़ता है उतना कर भला कर देती हूँ। अब कुछ लोग कह रहे थे कि जम्मू आने के लिए भी लायसेंस लेना पड़ेगा। ऐसा होगा तो बहुत गलत हो जायेगा। इस बात पर कई लोगों से मेरा झगडा भी हो गया। जम्मू से चलते हुए सेब लेकर आई हूँ, नाती पोते लोग इंतजार करते रहते हैं, दाई आएगी तो खई खजानी लाएगी अभी घर जाउंगी तो मेरे लिए नाती पोते पानी लेकर आयेगें, खाट पर पड़ते ही मेरे ऊपर चढ़ कर खूंदना शुरू कर देगें। देह का सारा दर्द मिट जायेगा। फिर नहा कर अपने आस पड़ोस में बच्चों को सेब दूंगी। नाती पोतों के संगवारी भी मेरे आने का इंतजार करते हैं।
गाडी दुर्ग स्टेशन पहुँच चुकी थी। कमला बाई की कहानी ख़त्म होने का ही नाम नहीं ले रही थी। उसके पैन कार्ड में यही नाम लिखा था "कमला बाई", फिर वह कहती है - मेरा बेटा रायपुर आया है, पुलिस में भरती होने। आज उसका नाप जोख है। वह कहता है कि पुलिस की ही नौकरी करेगा। कोई उसे पुलिस की नौकरी लगा दे तो 4 लाख भी खर्च करने को तैयार हूँ, एक बार अपने सगा थानेदार को 3 लाख रुपया दी थी, पर वह नौकरी नहीं लगा सका। 5 हजार रुपया काट कर बाकी वापस कर दिए। 5 बेटा हे महाराज, नोनी के अगोरा मा 5 ठीक बेटा होगे। अब एक गरीब की लड़की को पाल पोस रही हूँ, वही मेरी बेटी है। उसकी शादी करुँगी। जब तक जांगर चल रही है। जम्मू की यात्रा चलते रहेगी। मेरा गंतव्य समीप आ रहा था, कमला बाई का साथ छूटने का समय था। उससे मोबाईल नंबर लिया और अपना कार्ड दिया। सामने बैठी महिला से कमला बाई ने पूछा कि वह कहाँ जाएगी? तो उसने कहा कि जहाँ फोन आएगा वहीँ उतर जाउंगी, बिलासपुर, जांजगीर, खरसिया इत्यादि। मुझे वह चारों तरफ से बंद और बड़ी रहस्यमयी महिला लगी। कमला बाई के जीवन संघर्ष की गाथा सुनते हुए रायपुर कब पहुँच गया, पता ही नहीं चला। गाडी से उतरते हुए कमला बाई को सैल्यूट किया और कभी जम्मू में मिलने का वादा करके आगे बढ़ लिया।
बहुत ईमानदारी से लिखा गया एक बहादुर महिला का संस्मरण |
ReplyDeleteसादर
पेट की खातिर सब करना पड़ता है।
ReplyDeleteसहज़ सरल शब्दों में सच के साथ-साथ चलती एक अच्छी कहानी
आभार इस प्रस्तुति के लिये
सादर
जीवन एक संघर्ष है को चरितार्थ करता कमला बाई का जीवन
ReplyDeleteमजबूरियां क्या नहीं करवा लेती हैं इंसान से...जीवन की असलियत का सच्चा चित्रण... प्रस्तुति के लिए बहुत-बहुत आभार
ReplyDeleteबेहतर लेखन !!!
ReplyDeleteऐसी कमलाबाईयों के बिना सफ़र कटे भी नहीं कभी...
ReplyDeleteबहुत उम्दा,लाजबाब लेखन ....
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